इतना बोल कर  वे तेजी के साथ अपने कमरे में घुसे और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। पूरा घर आश्चर्यचकित हो गया कि अचानक पिताजी को यह क्या हो गया है।  पिछले कुछ दिनों से वे ऐसी ही विचित्र हरकतें कर रहे हैं। 

 पिताजी ने जब अपने आप को कमरे में बंद कर लिया, तब राहुल ने जोर-जोर से दरवाजा खटखटाया,  “पिताजी दरवाजा खोलिए!.. देखिए बाहर कोई खतरा नहीं है! . कोई आप को मारने नहीं आया है ।… आपको भ्रम हुआ होगा।…पिताजी, दरवाजा खोलिए… दरवाजा खोलिए!”

 लेकिन पिताजी ने दरवाजा नहीं खोला। पूरा घर घबरा गया; कहीं वे कुछ कर न बैठें। राहुल लगातार दरवाजा खटखटाता रहा।  आधे घंटे बाद दरवाजा खुला । पिताजी बाहर आए। अब वे बहुत गंभीर नजर आ रहे थे। राहुल पिताजी के पास आया और मुस्कुराते हुए बोला, ” कैसे हैं पिताजी ? सब ठीक तो है ? “

पिताजी ने कोई जवाब नहीं दिया।  बस मुस्कुराते रहे और पूरे घर के लोगों को गौर से देखते रहे। फिर खिड़की के  पास खड़े हो कर बाहर कुछ निहारते रहे । 

राहुल  ने पास आकर पूछा, “क्या देख रहे हैं पिताजी ?” लेकिन उन्होंने कोई ज़वाब नहीं दिया बस इतना ही कहा, “बाहर मत निकलना।… बहुत खतरा है। …तुम्हारी जान बहुत कीमती है ।..कोई भी घर के बाहर न निकले ।…कल ही तो टीवी बता रहा था, बाहर निकलने से खतरा है ।”

राहुल ने कहा, “ठीक कहते हैं पिताजी! कोई बाहर नहीं निकलेगा। आप भी बाहर न निकलें। चिंता न करें। सब ठीक हो जाएगा।”

 राहुल की बात सुनकर पिताजी अचानक जोर-जोर से हँस पड़े और राहुल के शब्द दोहराने लगे, ” सब ठीक हो जाएगा… सब ठीक हो जाएगा”।  उनकी हँसी रुक नहीं रही थी। यह देख राहुल उनके पास जाकर बैठ गया और उनकी पीठ थपथपाने लगा। माँ जाकर एक गिलास पानी ले आई । पानी का गिलास देखकर चतुर्वेदी जी की हँसी रुकी। कुछ देर तक वे गिलास को ध्यान से देखते रहे। फिर उसे उठा कर एक बार में गटगट करके पूरा पानी पी लिया। कुछ देर बाद उठे और सबकी ओर देखते हुए कहा, ” कोई भी घर के बाहर निकले ।…सबको घर पर रहना है।… हमारी जान को खतरा है।… दुश्मन कभी भी हमला कर सकता है ।…सावधान रहना!.. मैं  सोने जा रहा  हूँ।”

इतना बोल कर चतुर्वेदी जी अपने कमरे में चले गए और पलंग पर लेट गए। और शून्य में निहारने लगे।

 पिछले कुछ दिनों से पिताजी ऐसा ही कुछ विचित्र व्यवहार कर रहे हैं । कभी अचानक से हँसने लगेंगे तो कभी रोने लगेंगे। कभी घर वालों पर ही चिल्लाने लगेंगे। न जाने उन्हें क्या हो गया है।  क्या यह पागलपन के लक्षण हैं या कुछ और ?..यह सोच कर राहुल ने अपने मित्र डॉक्टर शुक्ला को फोन लगाया और पिताजी की सारी बातें बता दीं। मनोरोग विशेषज्ञ डॉ शुक्ला ने कहा, ” यह कोई बहुत गंभीर चिंता की बात नहीं है। बस सावधानी बरतने की जरूरत है। पिताजी को इस वक्त ‘सिज़ोफ्रेनिया’ के मरीज हो चुके हैं। उन पर किसी चीज का गहरा सदमा पहुंचा है। इस कारण वे ऐसी स्थिति में पहुंचे हैं। पिछले दिनों घर-परिवार में कोई दुःखद हादसा हुआ था क्या ?”

राहुल को सोचता रहा, फिर बोला, ” ऐसा तो कुछ नहीं हुआ। वे तो लॉक डाउन के कारण आजकल घर पर रहते हैं। बाहर घूमने भी नहीं जाते। सुबह-शाम बस टीवी देखते रहते थे।  लेकिन इतना जरूर है कि टीवी देखते हुए अकसर एक बात कहा करते थे  कि ‘यह क्या हो रहा है ।…इस कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को परेशान कर दिया है।…. हमारा शहर भी उसके चपेट में आ गया है ।….पता नहीं क्या होगा ?’ ..हर चैनल में कोरोना वायरस से संबंधित खबरें देख कर वे तनाव में आ जाते थे। फिर चिल्ला कर कहते थे,  ‘बदलो इस चैनल को।…दूसरा लगाओ।’ हम दूसरा चैनल लगाते, तो वहां पर भी कोरोना वायरस वाली कोई -न -कोई ख़बर चल रही होती। उसे देख कर पिताजी  बहुत जोर से चिल्लाते, ‘बदलो इसे’। उस चैनल को भी हम फौरन  बदल देते । चैनल बदलते जाते लेकिन खबरें वही रहती कि कोरोना वायरस से इतने लोग मर रहे हैं… इतने लोग संक्रमित हो रहे हैं …..सरकार ने लॉक डाउन बढ़ा दिया है…. घर से बाहर निकलने वालों को पुलिस डंडे से मार रही है….. मजदूर हजार किलोमीटर की यात्रा करके अपने घर जा रहे हैं…. भूख से मर रहे हैं ……पूरे देश बदहाली छाई हुई है। ऐसी खबरें देख-देख  कर पिताजी धीरे धीरे  बड़बड़ाने लगे कि ‘पता नहीं हम लोगों का क्या होगा…  इस दुनिया का क्या होगा ?… बेटा राहुल, तुम घर से बाहर मत निकलना।… कोरोना वायरस पकड़ लेगा, तो पूरे घर को चपेट ले लेगा।” 

राहुल की बात सुनकर डॉक्टर शुक्ला ने कहा, ” ओह, तो यह बात है।  मैं अब समझ गया । यह बिल्कुल सिजोफ्रेनिया के ही लक्षण हैं। तुम्हारे पिता कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर बुरी तरह भयग्रस्त हो चुके हैं। यह भय उनके दिमाग में इस कदर हावी हो गया है कि बस उसी के बारे में  निरंतर सोच रहे हैं । इस कारण उनके मन में अज्ञात भय समा गया है कि उनका य्य परिवार का कोई अहित हो जाएगा।”

 “इसका उपचार क्या है डॉक्टर ?”

राहुल के प्रश्न पर डॉक्टर शुक्ला ने कहा, ” इसका इलाज यही है कि पिताजी को न्यूज़ चैनल देखने से रोको। उन्हें मनोरंजन प्रधान चैनल दिखाओ, जिनमें पुराने गाने आते हो।  आजकल तो कुछ धार्मिक सीरियल भी आ रहे हैं।  अच्छी फिल्में भी आती रहती हैं। यही सब उनको दिखाओ । पिताजी से कहो कि अपने समय का कोई फिल्मी गाना सुनाइए। उनकी पसंद का खाना बनाकर खिलाया जाए। उन्हें अकेला न रखा जाए। उन्हें इस बात का आभास ही न हो कि कोरोना वायरस जैसी कोई चीज उनके आसपास मंडरा रही है । उनको ऐसी दुनिया में ले जाओ, जहां चारों और सुख शांति हो।.. कोरोना की कोई खबर दूर-दूर तक नजर न आए । अगर तुम लोग ऐसा कर सके, तो पिताजी बहुत जल्दी ठीक हो जाएंगे । तुम मुझसे आकर मिलो। मैं कुछ दवाइयां लिख कर देता हूं । इनका पिताजी सेवन करेंगे, तो उनकी रोग- प्रतिरोधक क्षमता बनी रहेगी। मानसिक रूप से उन्हें कुछ आराम मिलेगा। उन्हें नींद भी अच्छी आएगी।”

 डॉक्टर शुक्ला की बात सुनकर राहुल की जान में जान आई । उसका तनाव कम हुआ । डॉक्टर की सलाह पर पूरे घर ने टीवी के समाचार चैनलों को देखना बंद किया। अब सारे लोग मिलजुल कर मनोरंजक धारावाहिक या फिल्में देखते हैं । पूरा परिवार पिता के साथ ही बैठकर गप्पे हांकता  है। अंताक्षरी खेलता है। और पिताजी भी मूड में आकर पुराने जमाने का कोई गीत सुनाने लगते हैं। उनको कुछ पुराने गीत बहुत प्रिय है । जो अकसर गुनगुनाते रहते हैं। उस दिन राहुल की फरमाइश पर चतुर्वेदी जी ने एक गीत सुनाया, ” जब चली ठंडी हवा, जब उठी काली घटा, मुझको ए जाने वफा तुम याद आए”। गीत गाकर चतुर्वेदी जी हँस पड़े। यह हँसी रोज़ की हँसी से बिल्कुल अलग थी। सामान्य हँसी। 

अब तो रोज का यही सिलसिला बन गया। राहुल ने महसूस किया कि धीरे-धीरे पिताजी सामान्य अवस्था में पहुंचते जा रहे हैं। उनके चेहरे पर अब भय के, तनाव के कोई लक्षण नजर नहीं आते। पिताजी कोरोना की खबरों से दूर हैं। मनोरंजक चैनल देखते रहते हैं। पूरा घर हर वक्त पिता के साथ ही  रहता है। कोरोना वायरस पर कोई चर्चा ही नहीं करता। बाहर भले ही लॉक डाउन है। मगर घर के भीतर कोई लॉक डाउन नहीं। पिताजी खुश  हो कर इधर -उधर टहलते रहते हैं। रह-रह कर वही एक गीत गुनगुनाते रहते हैं, “जब चली ठंडी हवा..जब उठी काली घटा”।

गिरीश पंकज