Maa
‘‘अब जबकि शिशु आने वाला है तो मुझे उसकी देखभाल के बारे में चिंता होने लगी है। मैंने आज से पहले कभी किसी नवजात को गोद में नहीं लिया।”
अधिकतर महिलाएँ जन्म से ही माँ नहीं होती। रोते शिशु को चुप कराना, डायपर बदलना या फिर नहलाना, यह सब काम तो कुदरतन आ जाते हैं। मातृत्व भी एक कला है, जिसके लिए थोड़ा सा अभ्यास व धैर्य चाहिए।
अब वो समय नहीं रहा जब महिलाएँ दूसरों के बच्चे खिलाती थीं या परिवार में किसी के नवजात को घंटों संभालती थीं।आजकल तो कई गर्भवती माँओं ने इससे पहले किसी नवजात शिशु को गोद में भी नहीं लिया होता। वे शिशु के आने के बाद ही अपनी ट्रेनिंग लेती हैं। आप पेरेंटिंग की किताबों,वेबसाइट या बेबी-केयर क्लास से काफी कुछ सीख सकती हैं। पहले एक-दो सप्ताह में थोड़ी परेशानी होगी लेकिन धीरे-धीरे शिशु की जरूरतें ही आपको बहुत कुछ सिखा देंगी। डर घटने लगेगा, आप पूरी रात उसके साथ जाग सकेंगी और एक जिम्मेदारी का एहसास आ जाएगा। आप बड़े आराम से उसे गोद में बिठा कर कंप्यूटर पर काम करेंगी या फिर उसे एक ओर दबाकर वैक्यूम क्लीनर से घर साफ करेंगी। आप अपने-आप खुद को मम्मी मानने लगेंगी और उसके लिए कविताएँ व लोरियाँ गाने लगेंगी लेकिन दिक्कत यही है कि यह सब अभी महसूस नहीं किया जा सकता । वैसे अभी आप पुरानी मम्मियों से मिलें। ताजा-ताजा माता-पिता बने लोगों से मिलें आप सब कुछ सीख जाएँगी।
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