PCOS and Skin Disorder: पाॅलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) महिलाओं की एक बहुत काॅमन हार्मोनल विकार है जो किशोरावस्था और रिप्रोडक्टिव उम्र (15-35 साल) की युवा महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करता है। डब्ल्यूएचओ के आंकडों के हिसाब से 5 में से 1 महिलाओं में यह समस्या पाई जाती है। हमारे देश में तकरीबन 15-20 प्रतिशत महिलाएं पीसीओएस से जूझ रही हैं जिन्हें इंफर्टिलिटी की समस्या भी हो जाती है।
यह विकार महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन और प्राजेस्टेरोन हार्मोन में असंतुलन आने की वजह से होता है। उनमें टेस्टोस्टेरोन और एंड्रोजन पुरुष हार्मोन बढ़़ जाते है। जिससे ओवरी से हर महीने निकलने वाले और परिपक्व होने वाले एक अंडे की प्रक्रिया गड़बड़ा जाती है।ओवरी में एक के बजाय छोटे-छोटे कई अंडे बनने शुरू हो जाते हैं। ये अंडे परिपक्व होकर ओव्यूलेशन नहीं कर पाते और ओवरी में छोटे-छोटे सिस्ट के रूप में बदल जाते हैं। वैज्ञानिक भाषा में इन्हें पर्ल नैकलेस अपीयरेंस कहा जाता है । महिला का मासिकधर्म चक्र अनियमित हो जाता है और प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है।
क्या हैं लक्षण-
उम्र के साथ पीसीओएस विकार का स्वरूप बदलता रहता है।
किशोरावस्था में-
-मासिकधर्म चक्र में अनियमितता
-पीरियड्स में ब्लीडिंग का फ्लो कम होना
– वजन बढ़ना
– चेहरे और शरीर पर अनचाहे बाल आना
– सिर के बाल झड़ना
– गर्दन का रंग काला पड़ना
-चेहरे-पीठ पर बहुत ज्यादा मुंहासे होना
-मूड स्विंग होना, बेवजह गुस्सा आना
-डिप्रेशन होना
शादी के बाद युवा महिलाओ में-
-इंफर्टिलिटी यानी कंसीव करने और बच्चा ठहरने में दिक्कत होना
40 साल से अधिक उम्र में–
-डायबिटीज, हाइपरटेंशन जैसी गंभीर बीमारियां होना
– डिप्रेशन होना
क्या है कारण-
-आनुवांशिक
-आरामपरस्त जीवनशैली,
-अनियमित दिनचर्या, सही समय पर खाना न खाना, देर से सोना-जागना
– फिजीकल फिटनेस के प्रति लापरवाही,
– अस्वास्थ्यकर खानपान , फास्ट फूड, आॅयली और हाई कैलोरी डाइट के प्रति बढ़ता रुझान
– एल्कोहल या सिगरेट का अधिक सेवन
क्या है खतरा-

रेगुलर ओव्यूलेशन न हो पाने से मासिकधर्म चक्र गड़बड़ा जाता है और पीरियड्स ठीक टाइम पर नहीं आ पाते। समुचित उपचार न किए जाने पर आगे जाकर शादी के बाद ऐसी युवा लड़कियों में एनोव्यूलेशन की समस्या होने का खतरा रहता है। जिसकी वजह से उनमें इंफर्टिलिटी या बांझपन की स्थिति भी आ सकती है।
इसके साथ ही मरीज के शरीर में इंसुलिन की मात्रा बढ़ने लगती है और इंसुलिन रसिस्टेंस हो जाता है। इससे मेटाबाॅलिक सिंड्रोम यानी मोटापा, डायबिटीज, हाइपरटेंशन जैसी समस्याएं शुरू हो जाती हैं।
कब जाएं डाॅक्टर के पास-आमतौर पर शुरूआत में 2-3 साल तक पीरियड्स अनियमित आते हैं। लेकिन 15-16 साल तक की लड़कियों में अगर मोटापा तेजी से बढ़ रहा हो, चेहरे पर मुंहासे या अनचाहे बाल आने लगें, तो महिलाओं को सतर्क हो जाना चाहिए और स्त्री रोग विशेषज्ञ को कंसल्ट करना चाहिए।
कैसे होता है डायगनोज-
डाॅक्टर ब्लड प्रेशर, बाॅडी मास इंडेक्स जैसे फिजीकल चैकअप करते हैं। सिस्ट की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड, हार्मोन के लेवल का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट किए जाते हैं।
उपचार-
मरीज को 21 दिन के लिए साइकोटेराॅन प्रोजेस्टेरोन हार्मोन युक्त ओरल काॅन्ट्रासेप्टिक मेडिसिन दी जाती है। एनोव्यूलेशन की स्थिति में महावारी के तीसरे दिन से अंडा बनाने की दवाइयां 5 दिन के लिए दी जाती हैं। हार्मोन के इंजेक्शन भी लगाए जाते हैं। ओवरी में बने सिस्ट लेप्रोस्काॅपी सर्जरी से हटा दिए जाते हैं।। हार्मोनल बदलाव और इंसुलिन रसिस्टेंस के लिए मैटफार्मिन मेडिसिन और वजन कम करने के लिए न्यूट्रीशनल एडिशनल ड्रग्स भी दिए जाते हैं। Chicnutrix Cysterhood NAC – 20 Effervescent Tablets ये पीसीओएस की समस्या में रामबाण की तरह काम करता है।
लाइफ स्टाइल माॅडिफिकेशन जरूरी-
लाइफ स्टाइल माॅडिफिकेशन करके महिलाएं अगर 5-10 प्रतिशत वजन कम लेती हैं,तो उनके ओव्यूलेशन की प्रक्रिया में सुधार हो सकता है और कंसीव कर सकती हैं।
-जब भूख हो, तभी खाएं। दिन में 3 बार खाना खाने के बजाय 5-6 बार मिनी मील लें।एक बार में 300 ग्राम से ज्यादा खाना नहीं खाएं और चबा-चबाकर खाएं।
-पौष्टिक तत्वों से भरपूर हल्का और सुपाचय आहार लें ।
– कार्बोहाइड्रेट और वसा के बजाय फाइबर, विटामिन्स और हाई प्रोटीन डाइट लें। कच्चे फल, सब्जियां, अंकुरित अनाज, सूखे मेवे भोजन में शामिल करें।
– मैदा, चावल, चीनी जैसे रिफाइंड खाद्य पदार्थ, कोल्ड ड्रिंक, रेडिमेेड जूस जैसी हाई शूगर ड्रिंक्स, तले-भुने आहार से परहेज करें। आहार में नमक और चीनी की मात्रा सीमित रखें।
-सप्ताह में करीब 150 मिनट या ढाई घंटा एक्सरसाइज जरूर करें यानी रोजाना 30 मिनट एक्सरसाइज करें।
-अपनी बाॅयोलाॅजिकल क्लाॅक या दिनचर्या को ठीक तरह फॉलो करें। रोजाना 7-8 घंटे की नींद लें।
– तंबाकू, सिगरेट, एल्कोहल से परहेज रखें।
