Hepatitis Vaccine for Children: लीवर बीमारियों में हेपेटाइटिस एक ऐसा विकार है जिसमें संक्रमित रोगी के लीवर में सूजन आ जाती है। यह विकार हेपेटाइटिस नामक वायरस से फैलता है। हेपेटाइटिस मुख्यतः 5 प्रकार के होते हैं जिन्हें ए, बी, सी, डी और ई नाम से जाना जाता है। बच्चों में ज्यादातर 2 तरह के हेपेटाइटिस मिलते हैं- हेपेटाइटिस ए और हैपेटाइटिस बी।
हेपेटाइटिस ए

कई बच्चों में हेपेटाइटिस वायरस इतनी तेजी से फैलता है कि बच्चों में भी लिवर फैल्योर की संभावना रहती है। बच्चों के लिवर खराब होने के हर साल कई मामले सामने आते हैं जिनमें लिवर ट्रांसप्लांट भी करना पड़ता है। ज्यादातर मामलों में ऐसे बच्चों के पेरेंट्स को अपना लिवर देना पड़ता है। 1-2 प्रतिशत मामलों में लिवर फैल्योर होकर मृत्यु तक हो सकती है। इसलिए बचाव जरूरी है।
इसमें हेपेटाइटिस ए मूलतः हाइजीन की समस्या है। यह पर्सनल हाइजीन मेंटेन न करने के कारण फीको-ओरल रूट से फैलती है यानी गंदे हाथ, शौच के बाद हाथ न धोएं, नाखून न कटे हों, रेहड़ी या खोमचे वालों से खाना खाने, साफ पानी न पीने, कच्ची या कम पका खाना खाने से हेपेटाइटिस ए होता है। बदलते मौसम में बरसात होने, जलभराव होने या पानी गंदा होने, साफ-सफाई का ध्यान न रखने से भी हेपेटाइटिस इंफेक्शन की संभावना ज्यादा रहती है। बुखार आना, उल्टियां आना, पीलिया होना जैसे लक्षण भी मिलते हैं। बच्चे का लिवर खराब भी हो जाता है। समय पर बच्चे मरीज को डाॅक्टर को जरूर दिखाना चाहिए ताकि लिवर खराब होने से बचाया जा सके।
वैक्सीन से बचाव संभव

बच्चे को हेपेटाइटिस ए से बचाने के लिए (HepA ) वैक्सीन लगाई जा सकती है जिसका असर आजीवन बना रहता है। यानी बड़ा होने के बाद वैक्सीन दोबारा नहीं लगानी पड़ती। भारत सरकार के नेशनल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम के तहत बच्चों को हेपेटाइटिस की वैक्सीन लगाने का प्रावधान है। 2 तरह की वैक्सीन मिलती हैं- हेपेटाइटिस ए की इनएक्टिव वैक्सीन आती है जिसकी पहली डोज़ बच्चे को एक साल की उम्र के बाद और दूसरी डोज़ 6 महीने के अंतराल पर लगाई जाती है। हेपेटाइटिस की दूसरी लाइव वैक्सीन है जिसकी एक साल के बाद बच्चे को सिंगल डोज़ लगाई जाती है।
अगर यह वैक्सीन कोई बड़ा बच्चा यानी 10 साल की उम्र के बाद लगवाना चाहता है तो पहले उसके शरीर में हेपेटाइटिस एंटीबाॅडी टेस्ट किया जाता है। टेस्ट नेगेटिव आने की स्थिति में ही बच्चे को वैक्सीन लगाई जाती है। जबकि टेस्ट रिपोर्ट पाॅजिटिव आने पर वैक्सीन नहीं दी जाती। संभव है कि ऐसे बच्चों को कभी न कभी इंफेक्शन हुआ हो। भले ही उनको पता न चल पाया हो या वो एसिम्टोमैटिक रहे हों। शरीर में हेपेटाइटिस वायरस के खिलाफ एंटीबाॅडीज बनने की वजह से उन्हें वैक्सीन नहीं लगाई जाती।
हेपेटाइटिस बी

हेपेटाइटिस बी का वायरस ब्लड के जरिये शिशु के शरीर में प्रवेश कर जाता है। यह वायरस शिशु के शरीर में क्रोनिक कैरियर स्टेट के रूप में सालोंसाल शरीर में मौजूद रहता है और धीरे-धीरे लिवर को प्रभावित करता रहता है। यह इंफेक्शन ज्यादातर गर्भवस्था में मां के ब्लड से बच्चे में ट्रांसमिट या संचरित होता है। मां को हेपेटाइटिस इंफेक्शन असुरक्षित यौन संबंध बनाने, ब्लड ट्रांसफ्यूजन, बिना स्टरलाइज किए गए इंजेक्शन या ड्रग नीडल का इस्तेमाल करने से फैलता है। या फिर युवा गर्भवती महिलाओं के शरीर में जन्म के समय हेपेटाइटिस इंफेक्शन अपनी मां से संचारित होता है। प्रभावित बच्चे को हेपेटाइटिस इंफेक्शन का पता 20-25 साल या उससे अधिक की उम्र के बाद चलता है जब अचानक से इसके लक्षण उभर कर आते हैं। क्रोनिक हेपेटाइटिस इंफेक्शन का शिकार हो सकता है। इंफेक्शन न सिर्फ लिवर को डैमेज करता है, बल्कि लिवर सिरोसिस, हेपेटोसेल्युलर कार्सिनोमा कैंसर का कारण भी बन सकता है।
वैक्सीन से बचाव संभव

अगर व्यस्क व्यक्ति को पता है कि उसे हैपेटाइटिस वैक्सीन नहीं लगी है, तो उसे भी जरूर लगवा लेनी चाहिए। फैमिली प्लान कर रही महिलाएं भी वैक्सीन लगवा सकती हैं। डब्ल्यूएचओ के हिसाब से हमारे देश में 1.5-2 प्रतिशत महिलाओं को हेपेटाइटिस बी होने की संभावना रहती है। इसके चलते गर्भवती महिला का पहली तिमाही में का हेपेटाइटिस बी सरफेस एंटीजन (HBsAg) टेस्ट कराया जाता है। अगर टेस्ट पॉजीटिव निकलता है तो वैक्सीन की जरूरत नहीं होती।
बच्चों को हेपेटाइटिस बी वैक्सीन ( HepB) की दो डोज़ लगाना जरूरी है। नेशनल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम में भी सभी बच्चों को जन्म के बाद लगने वाली वैक्सीन लगाने पर बल दिया गया है। वैक्सीन की पहली डोज़ नवजात शिशु के जन्म लेने के 24 घंटे के अंदर लगाई जाती है। दूसरी डोज़ एक महीने बाद और तीसरी छः महीने बाद लगाई जाती है। अगर टेस्ट के दौरान गर्भवती महिला को हैपेटाइटिस बी होने का पता चलता है, तो बच्चे को हेपेटाइटिस वैक्सीन के साथ इम्यूनोग्लोबुलिन यानी हेपेटाइटिस बी इम्यूनोग्लोबुलिन (HBIG) वैक्सीन भी लगानी पड़ती है ताकि हेपेटाइटिस इंफेक्शन का रिस्क कम हो जाए।
रखें ध्यान-

- हेपेटाइटिस ए से बचने के लिए हाइजीन विशेषकर हैंड-हाइजीन का ध्यान रखना जरूरी है। खाना खाने से पहले कम से कम 20 सेकंड तक साबुन से अच्छी तरह हाथ धोएं। गंदगी जमने से बचने के लिए नाखून समय-समय पर काटते रहें।
- पानी उबाल कर पिएं। यथासंभव घर में बना और अच्छी तरह पका पौष्टिक भोजन का सेवन करें। कच्ची सब्जियां या सलाद अच्छी तरह धोकर खाएं। अगर बाहर खाना ही हो तो खोमचे या रेहड़ी वालों पर मिलने वाले किसी भी तरह का भोजन खाना अवायड करें।
- सेक्सुअल ट्रांसमिशन रोकने के लिए गर्भनिरोधक उपायों को अपनाएं।
- ब्लड ट्रांसफ्यूजन को रोकने के लिए पहले ब्लड टेस्ट करना और डिस्पोसेबल नीडल का प्रयोग करना जरूरी है।
- फैमिली में किसी को हेपेटाइटिस बी पोजिटिव है, तो छोटे-बड़े सब हेपेटाइटिस बी और सी के टेस्ट करवाएं। हरेक व्यक्ति को हेपेटाइटिस स्टेटस पता होना चाहिए।
- नवजात शिशु को हेपेटाइटिस वैक्सीन टाइम पर जरूर लगवाएं।
- हेपेटाइटिस संक्रमित व्यक्ति को अपना पूरा इलाज जरूर करवाना चाहिए। इससे एक तो वो स्वस्थ होंगे, दूसरे कोई व्यक्ति संक्रमित नहीं हो पाएगा।
(डॉ शालीमार, प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, एम्स, नई दिल्ली और डॉ पंकज गर्ग, बाल रोग विशेषज्ञ, सर गंगा राम अस्पताल, दिल्ली )
