डायबिटीज के कारण आंखों की समस्याएं होने की भी आशंका हो सकती है। इससे आपके ब्लड शुगर (ग्लूकोस) का स्तर ऊंचा हो सकता है क्योंकि डायबिटीज से आपका शरीर इंसुलिन नहीं बना पाता या इसका उपयोग ठीक तरह से नहीं कर पाता। अत्यधिक शुगर एकत्रित होकर नसों और रक्त वाहिनियों को नुकसान पहुंचा सकती है जिसके कारण दृष्टि कम हो सकती है या अंधापन आ सकता है।

यदि आपको डायबिटीज है तो नियमित परीक्षणों के लिए आंखों के डॉक्टर के पास जाना आवश्यक है ताकि आंखों को कोई बड़ी समस्या से न गुजरना पड़े। डायबिटीज 25 से 75 की उम्र के वयस्कों में अंधेपन का प्रमुख कारण है। डायबिटीज ग्रस्त लोगों को तीन तरह की नेत्र समस्याओं के लिए सतर्क रहना चाहिए जिनमें मोतियाबिंद, ग्लूकोमा, और रेटीनोपैथी प्रमुख हैं।

मोतियाबिंद और डायबिटीज

मोतियाबिंद से आंखों के सामान्य स्वच्छ लेंस पर धुंधलका छा जाता है। आंखों के लेंस की बदौलत आप किसी चित्र को देख सकते हैं और उस पर ध्यान भी केंद्रित कर सकते हैं जैसे कोई भी कैमरा करता है। वैसे तो किसी को भी मोतियाबिंद हो सकता है लेकिन डायबिटीज ग्रस्त लोगों को यह कम उम्र में ही हो सकता है और डायबिटीज मुक्त लोगों की तुलना में ज्यादा तेजी से हालत बिगड़ती है। इस नेत्र समस्या का लक्षण है धुंधला या हल्का नजर आना। मोतियाबिंद सर्जरी के दौरान धुंधले लेंस को हटाकर या साफ कर उसकी जगह मानव निर्मित साफ लेन्स लगाया जाता है।

ग्लूकोमा और डायबिटीज

जब डायबिटीज के कारण आंखों के अंदर का द्रव ठीक से नहीं निकलता है तब इसके कारण आंख में अतिरिक्त दबाव होने लगता है। इसके कारण एक और नेत्र समस्या पैदा होती है जिसे ग्लूकोमा कहा जाता है। दबाव बढऩे से नसों और आंख की रक्त वाहिनियों को क्षति हो सकती है जिसके कारण दृष्टि में बदलाव आ जाता है। डायबिटीज ग्रस्त लोगों को नियोवस्कुलर ग्लूकोमा नामक एक असामान्य प्रकार का ग्लूकोमा होने की अधिक आशंका होती है। ग्लूकोमा के इस स्वरूप में नई अतिरिक्त रक्त वाहिनियां आइरिस में विकसित होती हैं, जो कि आंख का रंगीन हिस्सा है। ये रक्त वाहिनियां आंख में द्रवों के सामान्य प्रवाह को रोक देती हैं, जिससे आंख का दबाव बढ़ जाता है। इसका इलाज कठिन होता है। वाहिनियों को घटाने का एक विकल्प है लेजर सर्जरी। द्रव को निकालने में मदद करने के लिए डॉक्टर्स इंह्रश्वलांट्स के उपयोग की कोशिश के लिए अध्ययन कर रहे हैं।

डायबिटिक रेटिनोपैथी

डायबिटिक रेटिनोपैथी दुनिया में ठीक नहीं हो सकने वाले अंधेपन का प्रमुख कारण है। डायबिटीज की अवधि रेटिनोपैथी उभारने के लिए एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण जोखिम है। आपको जितने लंबे समय तक डायबिटीज रहती है, इस गंभीर नेत्र समस्या का जोखिम उतना ही ज्यादा होता है। यदि रेटिनोपैथी का पता जल्द नहीं लगाया जाता या उपचार नहीं किया जाता तो इसके कारण अंधापन आ सकता है।

टाइप 1 डायबिटीज से ग्रस्त लोगों को युवा होने से पहले रेटिनोपैथी होती है। टाइप 1 डायबिटीज ग्रस्त वयस्कों में डायबिटीज की पांच वर्ष की अवधि से पहले रेटिनोपैथी दिख सकती है। डायबिटीज की बढ़ती अवधि के साथ रेटीना को होने वाली क्षति बढ़ती जाती है। ब्लड शुगर लेवल का गहन नियंत्रण करने से रेटिनोपैथी उभरने का जोखिम घट जाएगा।

टाइप 2 डायबिटीज से ग्रस्त लोगों को सामान्य रूप से डायबिटीज का निदान होने पर आंख की समस्याओं के संकेत होते हैं। इस मामले में डायबिटीज के साथ ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर और ब्लड कोलेस्ट्रॉल का नियंत्रण रेटिनोपैथी और अन्य नेत्र समस्याओं की वृद्धि धीमी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

रेटिनोपैथी के प्रकार

मैक्युलोपैथी: मैक्युलोपैथी में व्यक्ति को मैक्युलो नामक एक महत्वपूर्ण क्षेत्र में नुकसान होता है क्योंकि यह ऐसी जगह उभरता है जो दृष्टि के लिए महत्वपूर्ण होती है। इस प्रकार की नेत्र समस्या देखने की क्षमता को उल् लेखनीय रूप से घटा सकती है। 

प्रोलिफरेटिव रेटिनोपैथी: आंख के पीछे की तरफ नई रक्त वाहिनी बननी शुरू हो जाती हैं क्योंकि रेटिनोपैथी डायबिटीज से पैदा हुई माइक्रो वस्कुलर जटिलता है, जो छोटी वाहिनियों का रोग है। प्रोलिफरेटिव रेटिनोपैथी आंख में आक्सीजन की कमी के कारण उभरती है। आंख की वाहिनियां पतली होकर फूल जाती हैं और उनमें बदलाव शुरू हो जाता है।

बैकग्राउंड रेटिनोपैथी या नॉन प्रॉलिफरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथी: कभी-कभी रक्त वाहिनी की क्षति मौजूद होती है, लेकिन इसमें दृष्टि की कोई समस्या नहीं होती। इसे बैकग्राउंड रेटिनोपैथी कहा जाता है। इस चरण में अपनी डायबिटीज को सतर्कता से नियंत्रित करना महत्वपूर्ण होता है ताकि बैकग्राउंड रेटिनोपैथी को ज्यादा गंभीर नेत्र समस्या में रूपांतरित होने से रोका जा सके। 

 

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(द आई एसोसिएट्स, मुंबई के मोतियाबिंद, लेसिक, रिफ्रैक्टिव सर्जरी और ग्लूकोमा स्पेशलिस्ट डॉ. अनीस एम.बी. से बातचीत पर आधारित)