Diabetes and Obesity: मोटापा वैसे तो स्वयं एक रोग के समान है, परन्तु अन्य बहुत सारे रोगों को निमंत्रण देकर बुला लेता है। ये रोग मोटे मनुष्यों से ऐसे चिपकते हैं कि मरते दम तक साथ नहीं छोड़ते।
मोटे व्यक्तियों को सामान्य लोगों की अपेक्षा दिल की बीमारी कहीं ज्यादा होती है। दिल की बीमारी के साथ मधुमेह रोग को लाने में मोटापा पूरी तरह से समर्थ है। मोटे मनुष्यों में मधुमेह रोग समान व्यक्तियों के मुकाबले 50.7 प्रतिशत अधिक होता है तथा सामान्य भार वाले मधुमेह रोगियों से मोटे या अधिक भार वाले मधुमेह रोगियों की मृत्यु अधिक होती है।
अपितु अत्यधिक मात्रा में मीठे पदार्थों के आवश्यकता से अधिक सेवन करने से शर्करा चर्बी में रूपांतरित होकर शरीर के विभिन्न अंगों में संग्रहित होती है। यह मेदवृद्धि का वास्तविक कारण है।
शरीर का संपूर्ण विकास हो चुकने से पूर्व (लगभग 25 वर्ष तक) अवश्य ही शरीर के अंग-प्रत्यंगों के पोषक घटक द्रव्यों में मुख्य रूप से प्रोटीन युक्त आहारों की विशेष आवश्यकता होती है परंतु उसके बाद तो शरीर-अवयवों को अपने कार्यों को करने के लिए दहनात्मक (उष्णतात्मक) द्रव्यों यानी कार्बोहाइड्रेट (स्टार्च और शुगर) की ही विशेष आवश्यकता होती है।
प्रोटीन नाइट्रोजन को अलग कर शरीर उसे कार्बोहाइड्रेट में रूपांतरित कर उसका प्रयोग ऊर्जा के रूप में ही करता है। इस प्रकार शरीर का विकास होने के बाद शरीर को आहार द्रव्यों में मुख्य आवश्यकता दहनात्मक द्रव्यों (कार्बोहाइड्रेट) की ही होती है। इस अवस्था में प्रोटीन की जरूरत एक सीमित मात्रा में ही होती है।
दहन या उष्णता को अंग्रेजी में कैलोरी कहते हैं, कैलोरी (बड़ी कैलोरी) से उष्णता की इतनी मात्रा अभिप्रेत है जो एक लीटर जल के उष्णतामान को 16 से 17 डिग्री सेंटिग्रेट पर पहुंचा दे। यह निश्चित है कि शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्तियों को बौद्धिक या मानसिक काम करने वाले व्यक्तियों की तुलना में अधिक कैलोरीज की जरूरत होती है।
कार्बोहाइड्रेट (शर्करा) को (चर्बी) में परिवर्तित करने की क्रिया लैंगरहैंस इंसुलिन। द्वारा होती है। अत: अधिक मीठे पदार्थों से इन द्वीपिकाओं को अधिक कार्य करना पड़ता है। लैंगरहैंस की द्वीपिकाएं अति श्रम का भार मर्यादित सीमा तक ही सहन कर सकती है। जब तक ये अतिरिक्त शर्करा को (चर्बी) में परिवर्तित करती हैं, तब तक इनका संग्रह शरीर में मेदवृद्धि के रूप में उदर, जंघा, नितंब, छाती आदि स्थानों में होता रहता है। बाद में ये द्वीपिकाएं अति श्रम के कारण क्षीण या कमजोर होने लगती हैं, जिससे इनके द्वारा स्रावित इंसुलिन की मात्रा कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में मिष्ठान द्वारा निर्मित अतिरिक्त शर्करा का रूपांतरण पुन: (चर्बी) में नहीं हो पाता और वह मूत्रमार्ग से बाहर निकलने लगती है। इस प्रकार स्थूलता के बाद यदि आहार काम और आदतों में परिवर्तन नहीं किया गया तो मधुमेह रोग की संभावना सदैव बनी रहती है।
मोटापे से बचाव- मधुमेह रोग को उत्पन्न करने में मोटापे की अहम भूमिका होती है। अत: शरीर को स्थूलता से बचाएं। ऐसे आहार पदार्थों का सेवन करें जिससे शरीर न अधिक मोटा हो और न ही अधिक दुबला। साथ ही श्रम या व्यायाम भी नियमित करें। मानसिक तनाव से बचकर रहें। चीनी के बने पदार्थ, तैलीय व गरिष्ठ आहार तथा मिर्च मसाले के अत्यधिक सेवन से परहेज करें।
आहार में ऐसे पदार्थों का होना जरूरी है, जिनमें प्रोटीन, विटामिंस एवं खनिज तत्त्व आवश्यक मात्रा में पाए जाते हों। हर दिन के आहार में प्रोटीन 50-60 ग्रा. कार्बोहाइड्रेट 100 ग्रा., स्टॉर्च युक्त पदार्थ 40-50 ग्राम और उचित मात्रा में विटामिंस होने चाहिए। इसके लिए उचित मात्रा में हरी पत्तेदार सब्जियां, सलाद तथा दूध का सेवन करना चाहिए।