Child Gasp During Breastfeeding: हाल ही में बिपाशा बसु ने नेहा धूपिया के साथ इंस्टाग्राम लाइव पर अपनी मदरहुड जर्नी के बारे में खुलासा करते हुए कहा कि जब उनकी बेटी देवी पैदा हुई थी, तब उसके दिल में दो छेद थे। जिसकी सर्जरी 3 महीने में हुई थी। इन छेदों के बारे में डॉक्टर ने जन्म के तीसरे दिन ही बता दिया था। हर महीने देवी को हार्ट स्कैन के लिए डॉक्टर के पास जाना पड़ता था। हार्ट के छेद बड़े होने और सुधार न आने केे कारण डॉक्टरों ने ओपन हार्ट सर्जरी का निर्णय लिया। देवी की 6 घंटे की वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट सर्जरी की गई। सर्जरी कामयाब रही और उनकी बेटी अब बिल्कुल ठीक है।
नवजात शिशु या छोटे बच्चों के दिल में छेद होना बहुत कॉमन बीमारी है। नवजात शिशुओं में 1000 में 9-10 बच्चों में कुछ न कुछ हार्ट संबंधी समस्याएं होती हैं, जिन्हें जन्मजात हृदय रोग या कंजेनाइटल हार्ट डिजीज कहते हैं। यानी गर्भ में शिशु के हार्ट का विकास एक छोटी-सी ट्यूब के माध्यम से होता है। कई मामलों में इस ट्यूब में ट्विस्ट आ जाता है जिसकी वजह से हार्ट-वॉल्व पर छेद बन जाता है। इनमें 60-70 फीसदी बच्चों में हार्ट के अंदर छेद होता है।
हार्ट के होते हैं चैम्बर्स

असल में हमारे हार्ट के 4 चैम्बर होते हैं- 2 ऊपर वाले एट्रिया चैम्बर जिसमें खून आता है और दो नीचे वाला वेंट्रिकल चैम्बर शरीर में ब्लड सर्कुलेशन करता है। लेफ्ट वेंट्रिकल सारे शरीर में खून की सप्लाई करती है और राइट वेंट्रिकल इस खून को साफ करने के लिए फेफड़ों में भेजता है। इन सबके बीच पार्टिशन दीवार होती है जिसे वेंट्रिकुलर सैप्टल कहा जाता है। यह दीवार दोनों ब्लड सर्कुलेशन को अलग रखती है।
इसी तरह राइट एट्रिया में शरीर के सारा गंदा खून आता है जो राइट वेंट्रिकल में जाता है और वहां से पल्मोनरी आर्टीज के माध्यम से फेफड़ों में जाता है। लंग्स में यह गंदा खून साफ या ऑक्सीजनेटिड होता है। यह ऑक्सीजनेटिड खून फेफड़ों से निकल कर लेफ्ट एट्रिया में जाते हैं। यानी राइट एट्रिया में गंदा खून होता है और लेफ्ट एट्रिया में साफ ऑक्सीजनेटिड खून होता है। इन दोनों के बीच भी पार्टिशन दीवार होती है जिसे इंटर एट्रियल सैप्टम कहा जाता है।
हार्ट में छेद
हालांकि यह छेद तब से होता है जब वह मां के गर्भ में होता है। इनके माध्यम से ही गर्भ में पल रहे शिशु के शरीर में ब्लड सर्कुलेशन होता है। जन्मोपरांत कई बच्चों में यह छेद बंद हो जाते हैं, कई बच्चों में बने रहते हैं और बड़े भी हो जाते हैं। कई बच्चों के इंटर एट्रियल सैप्टम की वॉल्व में छेद मिलते हैं। नीचे वाले चैम्बर में मिलने वाले छेद को वीएसडी (वेंट्रिकुलर सैप्टल डिफेक्ट) और ऊपर वाले चैम्बर के छेद को एएसडी (एट्रियल सैप्टल डिफेक्ट) कहा जाता है।
अलग-अलग आकार के होते हैं ये छेद

हार्ट मे मिलने वाले ये छेद छोटे या बडे़ किसी भी आकार के होते हैं-
छोटे छेद
इनमें वीएसडी चैम्बर में अगर छेद बहुत छोटे होते हैं, तो वो बच्चों को ज्यादा परेशान नहीं करते हैं। अमूूमन एक साल की उम्र तक आते-आते 50-80 प्रतिशत बच्चों में अपने आप बंद भी हो जाते हैं। लेकिन हार्ट के ऊपरी एएसडी चैम्बर में छोटे छेद अगर महीने-दो महीने में बंद नहीं होते, तो अधिकतर बच्चों में वो बने रहते हैं ।
बच्चे को किसी तरह की परेशानी न होने के कारण हार्ट के छोटे छेदों के बारे में पता नहीं चल पाता। जब कभी बीमारी की स्थिति में मेडिकल जांच के दौरान डॉक्टरों द्वारा स्टेथोस्कोप से चैक करते हुए सांस की अलग आवाज से पता लगाया जा सकता है। इनकी वजह से बच्चे को परेशानी नहीं होती, वो बच्चा नॉर्मल जिंदगी जी पाता है।
बड़े छेद
हार्ट में छेद बड़े या एक से अधिक भी होते हैं। जिनकी वजह से गंदा और साफ किया खून मिक्स होने लगता है। पल्मोनरी प्रेशर बढ़ जाता है और बच्चों को जन्म के साथ ही परेशानी शुरू हो जाती है। ऐसे बच्चे जल्दी बीमार होते हैं। ये छेद अपने आप बंद नहीं हो पाते, उनके लिए ओपन हार्ट सर्जरी करनी पड़ती है।
क्या होते हैं लक्षण

जिन बच्चों के हार्ट में छेद बड़े आकार के होते है, उनमें ये लक्षण देखने को मिलते हैं-पैदा होने के कुछ दिन के बाद से ही बच्चों का सांस फूलना, 5-7 मिनट से ज्यादा देर तक मां का दूध भी नहीं पी पाना, दूध पीते-पीते थक जाना, बहुत ज्यादा पसीना आना, स्तनपान ठीक तरह से न हो पाने की वजह से समुचित विकास नहीं हो पाना, वजन कम बढ़ना, बार-बार सर्दी, कफ जैसे रेस्पेरेटरी ट्रेक इंफेक्शन होना।
क्या है खतरा
इस छेद के कारण दिल से फेफड़ों तक होने वालें ब्लड सर्कुलेशन की स्पीड बहुत बढ़ जाती है। अमूमन यह स्पीड एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर के ब्लड प्रेशर के हिसाब से होती है-बड़ों में 120 और नवजात शिशु में 80-100 के आसपास। दिल से फेफड़ों तक जाने वाला ब्लड केवल 25 की स्पीड से जाता है। किसी भी कारण से जब हार्ट के अंदर छेद होता है तो दिल से फेफड़ों में होने वाले ब्लड सर्कुलेशन की स्पीड बढ़ जाती है यानी 25 के बजाय 100 तक पहुंच जाता है। इसका असर फेफड़ों पर पड़ता है और फेफड़ेधीरे-धीरे सख्त होने लगते हैं। आमतौर पर बच्चे के फेफड़े 1-2 साल तक स़ख्त हो जाते हैं, इसलिए इस उम्र में सर्जरी करके हार्ट के छेद बंद करने जरूरी होते हैं।
कैसे होता है डायगनोज

इन लक्षणों के आधार पर पेरेंट्स को जल्द से जल्द हृदय रोग विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए। डॉक्टर इकोकार्डियोग्राफी करके हार्ट में छेद का पता लगाते हैं।
क्या है उपचार
हार्ट के छेद का उपचार सिर्फ सर्जरी से मुमकिन है। एक बार ये छेद बंद होने के बाद हार्ट पूरी तरह ठीक हो जाता है, बच्चा पूर्णतया स्वस्थ हो जाता है और भविष्य में नॉर्मल जिंदगी गुजार पाता है। छेद के साइज और लोकेशन के आधार पर इलाज किया जाता है। खासकर बड़े आकार के छेद के लिए जन्म के 3 महीने के अंदर-अंदर सर्जरी करना जरूरी है ताकि बच्चे को कम नुकसान हो।
इसके लिए परंपरागत तरीके से ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है जिसमें हार्ट के छेद को बंद कर दिया जाता है। इसके अलावा क्लोेज़्ड टेकनीक या एंजियोप्लास्टी भी की जाती है। इसमें हाथ या पैर की नसों के माध्यम से डिवाइज की मदद से छेद पर पैच लगाकर बंद कर दिया जाता है।
(डॉ एस सी मनचंदा, सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट, सर गंगा राम अस्पताल, दिल्ली)