मौजूदा आंकड़ो के अनुसार भारत में लगभग 2 लाख लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। इसके बावजूद देश में अधिकांश लोग “मल्टीपल स्केलेरोसिस” रोग से बिलकुल अंजान है और इस बीमारी का सबसे दुखद पहलू यह है कि अब तक इसका कोई ठोस उपचार उपलब्ध नहीं हैं। तो आइये हम आपको बताते हैं “मल्टीपल स्केलेरोसिस “के बारे में विस्तार से।
क्या है मल्टीपल स्केलेरोसिस बीमारी
“मल्टीपल स्केलेरोसिस” केंद्रीय तंत्रिका तंत्र अथवा सेंट्रल नर्वस सिस्टम से जुडी एक बीमारी है। साथ ही यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसके चलते मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी, आंखों की नसों, एंटीबाडी और ऑप्टिका तंत्रिका पर बुरा प्रभाव पड़ता है। पुरूषों की तुलना में, “एमएस” रोग महिलाओं में अधिक पाया जाता है। 20 से 30 वर्ष की महिलाओं को इसका बहुत अधिक खतरा होता है।
कारण
व्यक्ति किन कारणों के चलते “एमएस” बीमारी से पीड़ित होता है या हो सकता है उन सटीक कारणों का अभी तक किसी भी रिसर्च में पता नहीं चल पाया है। क्योंकि यह एक आॅटोइम्यून बीमारी है,जिससे इम्यून सेल्स “म्येलिन म्यान” पर आक्रमण करती है। (म्येलिन एक वसायुक्त पदार्थ होता है, जो तंत्रिका कोशिकाओं को कोट करता है और मस्तिष्क में किसी भी आवेग और उत्तेजनाओं को प्रेषित करने में मदद करता है।) परिणामस्वरूप, जब व्यक्ति को यह बीमारी होती है तब उसका मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और आॅप्टिक बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। इन्हीं कारणों के चलते व्यक्ति के कोआर्डिनेशन और बैलेंस में कमी आ जाती है। व्यक्ति ठीक से चलने-फिरने में असमर्थ हो जाता है।
एमएस बीमारी के लक्षण
वैसे इस बीमारी का बहुत जल्दी से पता नहीं चल पाता है क्योंकि बीमारी के लक्षण कई अन्य बीमारीयों के लक्षणों से मिलते-जुलते हैं। लेकिन फिर भी कुछ मुख्य लक्षणों से इस बीमारी को आसानी से डिटेक्ट किया जा सकता है। वो लक्षण हैं
- आंखों की रोशनी में गड़बड़ी,
- पैरों में कमजोरी,
- चलने में लड़खड़ाहट,
- बच्चों में मोटापा बढ़ना,
- इंफेक्शन होना,
- पेशाब का रूक -रूक कर आना,
- शरीर में विटामिन डी की कमी
ये सभी लक्षण व्यक्ति में “मल्टीपल स्केलोरिसिस” बीमारी की तरफ इशारा करते हैं। क्योंकि इस बीमारी में मरीज को बार-बार अटैक आते रहते हैं इसलिए इस बीमारी को “मल्टीपल स्केलेरोसिस” कहा जाता है।
क्या है उपचार
डाॅक्टर के अनुसार इस बीमारी के अलग-अलग स्तर पर इलाज करने पर लक्षणों से राहत मिलती है। लेकिन जब लक्षण समय के साथ-साथ खराब हो जाते हैं तो इलाज करना काफी मुश्किल हो जाता है। क्योंकि इस बीमारी की दवाइयां तो हैं लेकिन कोई ठोस उपचार मौजूद नहीं है। इस बीमारी में सालभार दवाइयों का खर्च 3 से 5 लाख के बीच होता है। साथ ही दवाइयां लंबे समय के लिए चलती है। यदि शुरूआत में ही लक्षण दिखने पर टेस्ट करवाएं जाएं और उपचार शुरू कर दिया जाए तो इस बीमारी को ठीक करने में काफी सहायता मिल सकती है।