Embroidery of India
Embroidery of India

Embroidery of India: भारत की विविधता सिर्फ़ भाषा में नहीं, बल्कि हर राज्य की पारंपरिक कढ़ाई में भी झलकती है। शिल्पकला न केवल देश की सांस्कृतिक विविधता को दिखाती है, बल्कि हर राज्य की अपनी अनूठी पहचान भी बनाती है। फरवरी जो राष्ट्रीय कढ़ाई महीना के नाम से जाना जाता है तो आज हम आपको भारत की वो 5 अलग-अलग कढ़ाई कलाओं से मिलाएँगे, जिसके बारे मे शायद आप नहीं जानते होंगे।

Embroidery of India
Himachal Pradesh

इस कढ़ाई की शुरुआत 17वीं-18वीं शताब्दी में राजपूत और पहाड़ी राजघरानों की महिलाओं ने की थी। इसे मुगल और पहाड़ी चित्रकला से प्रेरणा मिली थी। चंबा रुमाल का उपयोग उपहार देने, धार्मिक अनुष्ठानों और शादी-विवाह में किया जाता था। इसे विशेषकर महिलाओं को दहेज में देने के लिए उपयोग किया जाता है। इसमें रामायण, महाभारत और कृष्ण लीला के दृश्यों को सिल्क धागों से उकेरा जाता था।

इसकी विशेषता है कि यह दो तरफ़ा कढ़ाई की तकनीक से बनाई जाती है, जिससे रुमाल का कोई भी भाग पीछे से अधूरा नहीं दिखता।

Tamil Nadu
Tamil Nadu

इस कला की शुरुआत तमिलनाडु के टोडा जनजाति की महिलाओं ने की थी, जो तमिलनाडु के नीलगिरि पहाड़ियों में रहती हैं। टोडा समुदाय के लोगों के लिए यह कढ़ाई उनकी संस्कृति और पहचान का प्रतीक है। पारंपरिक रूप से यह कढ़ाई पुरुषों और महिलाओं के लिए बनाए जाने वाले वस्त्रों पर की जाती थी, विशेष रूप से शादी और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए।

इसकी विशेषता है कि इसमें काले और लाल धागों से सफ़ेद कपड़े पर ज्यामितीय पैटर्न बनाए जाते हैं, और इसे ‘पुहल’ कहा जाता है। यह मुख्य रूप से शॉल (पोर्थकुल) पर की जाती है।

Bihar
Bihar

यह कढ़ाई मिथिला क्षेत्र की महिलाओं ने शुरू की थी, और इसका उल्लेख प्राचीन काल से मिलता है। इसकी शुरुवात पुराने कपड़ों को फिर से इस्तेमाल करने के लिए हुई। पहले, महिलाएँ पुरानी साड़ियों और धोतियों को एक साथ सिलकर उन पर कहानी कहने वाले चित्रों की कढ़ाई की जाती है। जैसे इसमें कहानियों, देवी-देवताओं, समाज के दैनिक जीवन और महिला सशक्तिकरण से जुड़े चित्र बनाए जाते है ।

Gujarat
Gujarat

यह कला गुजरात और राजस्थान में रहने वाली रबारी जनजाति की महिलाओं ने विकसित की थी। पारंपरिक रूप से यह कढ़ाई शादी के दहेज के लिए बनाई जाती थी, यह भारत के गुजरात के कच्छ क्षेत्र की एक प्रकार की हाथ की कढ़ाई है।

इसकी विशेषता है कि इसमें मिरर वर्क, चमकीले रंग और पशु-पक्षियों के सुंदर चित्र बनाए जाते हैं। रबारी कढ़ाई में डिजाइन को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए बैक स्टिच का प्रयोग किया जाता है, जिसे “बखिया” भी कहते हैं।   

Manipur
Manipur

शमीलामी कढ़ाई मणिपुर की एक दुर्लभ और पारंपरिक कढ़ाई कला है, जो खासतौर पर मैतेई समुदाय से जुड़ी हुई है। यह कढ़ाई युद्ध-कवच से प्रेरित होती है और आमतौर पर कपड़े और चमड़े पर की जाती है। इस अनोखी कला में कपड़े पर धातु या चमड़े के टुकड़े जोड़कर एक मजबूत और रचनात्मक डिज़ाइन तैयार किया जाता है, जिससे यह एक तरह का “कढ़ाईयुक्त कवच” जैसा दिखता है।
इसकी विशेषता है कि इसमें रेशम और सूती धागों से महीन डिज़ाइन बनाई जाती हैं।