पद्मश्री शेफ इम्तियाज कुरैशी, जिन्होंने अवधी कुजीन को फलक तक पहुंचाया: Chef Imtiaz Qureshi Death
Chef Imtiaz Qureshi Death

Chef Imtiaz Qureshi Death: हम जिंदगी को जीते हैं और इस राह में चलते- चलते अपने आखिर मुकाम को पा लेते हैं जहां नींद इतनी गहरी आती है कि दुनिया की फिर कोई भी आवाज फिर हमें उठाने का माद्दा नहीं रखती। कुछ ऐसी ही नींद में पद्मश्री से सम्मानित शेफ इम्तियाज भी हैं। आज दुनिया को उन्होंने अलविदा कह दिया। लेकिन कहते हैं न कुछ लोग ऐसा काम करके चले जाते हैं कि वो उन कामों की वजह से याद रह जाते हैं। अवधी कुजींस को अपनी पाककला के जादू से फलक तक पहुंचाने वाले इम्तियाज कुरैशी भी कुछ ऐसे थे।

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2 फरवरी 1931 को जन्म लेने वाले इम्तियाज को खाने बनाने का पैशन अपने पिता से विरासत में मिला था। 1979 में उन्होंने आईटीसी को जॉइन किया और उसके बाद वो इतिहास लिखते चले गए। तो चलिए खाने की दुनिया के बादशाह की कुछ रेसिपाज को हम जानते हैं। वैसे भी उन्हें याद करने और श्रृद्धांजलि देने का इससे बेहतर जरिया क्या हो सकता है?

काकोरी कबाब

अगर कुरैशी के खाने की बात करें तो वह कोकोरी कबाब के बिना अधूरी है। इन कबाबों का जन्म लखनऊ से 15 किमी दूर काकोरी गांव में हुआ था। इम्तियाज जिन्हें कबाबों का बादशाह कहा जाता था। उन्हें काकोरी कबाब से एक अलग ही लगाव था। वे कहते हैं मैंने एक बार एमएफ हुसैन को 101 कबाब खिलाए थे लेकिन उन्होंन कहा था कि सभी कबाब अच्छे हैं लेकिन बादशाह काकोरी कबाब है। इस कबाब की खासियत है कि यह गले हुए होने नहीं चाहिए लेकिन स्टिक पर से गिरने नहीं चाहिए।

लहसुन की खीर

चावल की और साबुतदाने की खीर हमने सुनी हैं लेकिन शेफ इम्तियाज लहसुन की खीर बनाने में माहिर थे। वे कहते हैं खीर और रबड़ी में साबुत लहसुन की कलियां डाली जाती थीं। खैर अब तो ढाबे वाले भी लहसुन की खीर बनाने लग गए। लेकिन उसमें कलियां कोई नहीं डालता। हम लहसुन भी डालते हैं लेकिन उसमें उसका फ्लेवर इतना सा भी नहीं आता।

सिकंदरी रान

नॉनवेज लवर्स को रोस्टेड रान काफी पसंद आती है लेकिन इम्तियाज का यूएसपी उनकी सिकंदरी रान थी। इस रान का नाम शोराब मोदी की 1941 में आई फिल्म सिकंदर से रखा गया था। इस रान में को रम के साथ धीमी आंच पर बनाया जाता है।

दाल बुखारा

सिर्फ नॉनवेजीटेरियन ही नहीं अवधी खानों में वेज की वैराइटी भी भरपूर होती है। शेफ की दाल बुखारा की रेसिपी भी बहुत पसंद की जाती थी। इसमें काल उड़द की दाल को 8 से 10 घंटे भिगोया जाता था। इसके बाद इसे टमाटर और अदरक-लहसुन के साथ लो फ्लेम पर बनाया जाता है।