बस्तर में है अनोखी अदालत, जहाँ भगवान को भी दी जाती है सजा
छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक अनोखी परंपरा है, जहाँ देवताओं पर मुकदमा चलाया जाता है और उन्हें मौत की सजा तक दी जा सकती हैI
Bastar’s Unique Tradition:आज जहां लोग पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति की तरफ तेजी से भाग रहे हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक ऐसा आदिवासी समुदाय है, जो आज भी अपनी समृद्ध परम्पराओं से जुड़ा हुआ है और यहाँ जुर्म करने पर इंसानों को तो छोड़िए देवताओं को भी सजा देने की अनोखी परंपरा कायम हैI यह बात जानकर यक़ीनन आप चौंक गए होंगे, पर ये सच हैI छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक अनोखी परंपरा है, जहाँ देवताओं पर मुकदमा चलाया जाता है और उन्हें मौत की सजा तक दी जा सकती हैI ये सब होता है कोंडागांव जिले के विशेष क्षेत्र मेंI यहाँ भादो जत्रा उत्सव के दौरान वास्तविक जीवन में खुली अदालत में देवताओं पर मुकदमा चलाया जाता है और फैसला सुनाया जाता हैI
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क्यों देते हैं भगवान को सजा?

दरअसल यहां की आदिवासी जनजाति अपने देवताओं पर असीम आस्था रखती हैंI सदियों से यहाँ किसी भी तरह की प्राकृतिक विपदा, बीमारी या फसल खराब होने पर लोग ग्राम देवताओं की शरण में जाते हैंI इस अनोखी परंपरा का एक और अनूठा पहलू यह है कि अगर उनके अनुसार देवी-देवता उनकी मदद नहीं करते हैं, तो यहां की जन अदालत उन्हें दोषी ठहरा देती हैI यहां की प्रमुख देवी भंगाराम देवी हैंI वह नौ परगना के 55 गांवों के हजारों देवी-देवताओं की प्रमुख आराध्य हैंI हर साल भादों के अंतिम सप्ताह में सभी देवी-देवताओं को यहां उपस्थिति दर्ज करानी होती हैI
भगवान के लिए सजा में क्या होता है?

इस तीन दिन तक चलने वाले उत्सव के दौरान मंदिर की देवता भंगाराम देवी उन सभी मुकदमों की अध्यक्षता करती हैं, जिनको लेकर देवताओं पर आरोप लगाया गया होता है और इन आरोपों की गवाही इंसान नहीं, बल्कि मुर्गियां देती हैंI शिकायतकर्ता ग्रामीण होते हैं और उनकी अधिकांश शिकायतें खराब फसल से लेकर लंबी बीमारी तक किसी भी काम में प्रार्थना करने के बाद भी भगवान की ओर से मदद नहीं करने की हो सकती हैI इसमें दोषी पाए गए भगवान को निर्वासन की सजा दी जाती है और उनकी मूर्तियों को मंदिर के अंदर से निकालकर मंदिर के पिछवाड़े में रख दिया जाता हैI कभी-कभी, यह सजा जीवन भर के लिए भी होती है या जब तक वे अपना रास्ता नहीं सुधार लेते तब तक के लिए होती हैI सुनवाई के दौरान देवताओं को देखने के लिए लगभग 240 गांवों के लोग इकट्ठा होते हैं और उनके लिए यहाँ भोज का आयोजन भी किया जाता हैI
मुकदमे में कौन होते हैं वकील और जज?

इस मुकदमे में गांव के प्रतिष्ठित लोग वकील के रूप में कार्य करते हैं और मुर्गियां इसमें गवाह होती हैंI एक मुर्गी को अदालत में लाया जाता है और मुकदमे के बाद उसे आजाद कर दिया जाता है, जो उसकी गवाही के अंत का प्रतीक होता हैI सजा भी गांव का ही शख्स सुनाता है और ऐसी मान्यता है कि वह भंगाराम देवी के निर्देशों को आवाज दे रहा होता हैI आरोप सिद्ध होने पर दंडित देवताओं को मंदिर से हटा दिया जाता है और कभी-कभी पेड़ों के नीचे भी रख दिया जाता हैI
