Summary : 'धड़क 2' में रोमांस कम है लेकिन अखरेगा नहीं

सिद्धांत और तृप्ति की इस फिल्म को थिएटर में देख सकते हैं क्योंकि काफी चमक-दमक के साथ इसे पेश किया गया है...

Dhadak 2 Review: ‘धड़क 2’ में होना सिर्फ रोमांस की चाहिए, लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, दर्द, संघर्ष और सच्चाई हावी होने लगती है। ठीक पहले वाली ‘धड़क’ की तरह। ये वो बातें हैं जिन्हें अक्सर पर्दे पर जगह नहीं मिलती। अगर यह केवल प्यार की कहानी होती तो सैयारा जैसे नाम के साथ रिलीज होती… तो तैयार रहिए परेशान कर देने वाले झटकों के लिए।

फिल्म मुद्दे तो कई उठाने की कोशिश करती है लेकिन अफसोस है कि उतनी गहराई से पेश नहीं कर पाती। सतही मामला है। कोई अच्छा डायलॉग बोला गया, लेकिन असर अगले पल ही खत्म हो जाता है। जबकि उसे कायम रहना चाहिए.. कम से कम दो मिनट तो उम्मीद कर ही सकते हैं। ‘धड़क 2’ इसी से परेशान है कि यहां कई को सेमेटने के चक्कर में कुछ भी हाथ नहीं आता।

शाजिया इकबाल इसकी निर्देशक हैं। मारी सेल्वराज की तमिल फिल्म ‘परियेरुम पेरुमाल’ से यह  इंस्पायर है। कहानी इंदौर जैसे शहर की ही लगती है। लॉ कॉलेज में नीलेश (सिद्धांत चतुर्वेदी) और विधि (तृप्ति डिमरी) एक ही क्लास में पढ़ते हैं, लेकिन उनके बीच की दूरी नाम, जाति और पहचान से तय होती है। नीलेश को अपना सरनेम बोलने में डर लगता है, जबकि विधि को कभी इसकी जरूरत ही नहीं पड़ती क्योंकि वह ऊंची जाति से है।

फिल्म अच्छी तब होती है जब कड़वी सच्चाइयों को दिखाने की कोशिश करती है। हीरो पर पेशाब किया जाता है, कीचड़ फेंका जाता है। उसके पिता (विपिन शर्मा) डांसर हैं, उन्हें नीचा दिखाया जाता है। कॉलेज की राजनीति, साथियों का भेदभाव और एक सीनियर की मदद… ये सभी घटनाएं याद रहने वाली है। सीन वो भी अच्छा है जिसमें हीरो अपनी बस्ती में हीरोइन को ले जाकर हालात दिखाता है। बुरा यह है कि नीलेश और विधि के बीच प्रेम पनपता तो है, लेकिन वो यहां आप सैयारा जैसा कुछ महसूस नहीं करेंगे। एक जल्दबाजी बुरी तरह हावी है। थोड़ी भावनाएं जरूर हैं, लेकिन बार-बार कैमरा खूबसूरती दिखाने में लग जाता या बेकार की डायलॉगबाजी डिस्टर्ब कर देती है।

इस फिल्म में नेता आदित्य ठाकरे भी है। इस फिल्म का हासिल उन्हें बोल लीजिए क्योंकि ‘वासु’ का किरदार बढ़िया किया है। वो कॉमेडी से गंभीर एक्टिंग की ओर दादागिरी से जाते हैं, ऐसा देखना भी अच्छा लगता है। सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी से आप ज्यादा उम्मीद ना करें। ये औसत ही हैं। कुछमिलाकर इस फिल्म में आपको एक कंधा ऐसा नहीं मिलेगा जो इस पूरे जमावड़े का बोझ ले सके। कहानी को ये जिम्मेदारी लेना थी लेकिन वो कमजोर बना दी गई है। 

फिल्म ‘धड़क’ और ‘सैराट’ से तुलना की जाए तो ‘धड़क 2’ आपको आगे नहीं तो पीछे भी खड़ी नहीं दिखेगी। ये एक जैसी ही हैं। ‘धड़क’ केवल एक ग्लैमरस प्रेम कहानी बनकर रह गई थी,वो ही इसके साथ भी होता दिखेगा। खराब डबिंग जैसी मामूल बातें अब जुर्म मानी जाना चाहिए। यहां इसे भी झेलना है। संगीत ठीक-ठाक ही है। ‘सैयारा’ का प्रचार इसके गानों को औसत ही रहने देगा। ‘धड़क 2’ दिल को पूरी तरह नहीं तोड़ती, दर्द जरूर उभरता है लेकिन इसे आप मौज-मस्ती में भूल सकते हैं। हां, जिन्हें ‘सैयारा’ में बाल्टी भर-भरकर रोना आया वो इसे टंकी लेकर देखने जाएं।

ढाई दशक से पत्रकारिता में हैं। दैनिक भास्कर, नई दुनिया और जागरण में कई वर्षों तक काम किया। हर हफ्ते 'पहले दिन पहले शो' का अगर कोई रिकॉर्ड होता तो शायद इनके नाम होता। 2001 से अभी तक यह क्रम जारी है और विभिन्न प्लेटफॉर्म के लिए फिल्म समीक्षा...