Criminal Justice Season 4 Review: ‘क्रिमिनल जस्टिस‘ के चौथे सीज़न ‘A Family Matter’ में एक बार फिर लौटे हैं हमारे अपने ‘आम आदमी वकील’ माधव मिश्रा। इस रोल में भी पंकज त्रिपाठी की वही देसी मुस्कान, वही चालाकी भरी दलीलें देखने को मिलेंगी लेकिन थोड़ी कम। क्योंकि महज तीन एपिसोड ही आप उन्हें निहार पाएंगे। इस नए केस में मर्डर और फैमिली ड्रामा के साथ कोर्टरूम टकराव और ढेर सारा इमोशनल झोल शामिल है। इस बार कहानी जितनी दिलचस्प होनी चाहिए थी, उतनी है नहीं… ताजगी थोड़ी कम हो गई है।

मुंबई की एक चमचमाती बिल्डिंग में सुबह-सुबह एक मेड को खून से लथपथ लाश दिखती है। पास ही खड़ा है डॉक्टर राज नागपाल (मोहम्मद जीशान अयूब), जिसके चेहरे पर गिल्ट भी है और सदमा भी। मरने वाली महिला उसकी गर्लफ्रेंड रोशनी (आशा नेगी) है, जो उसकी बेटी की केयरगिवर भी थी। पुलिस को कॉल उसकी अलग रह रही पत्नी अंजू (सुरवीन चावला)  करती है, जो सामने वाले फ्लैट में ही रहती है। अब सवाल ये है कि कातिल कौन है? पति, पत्नी या कोई तीसरा, जो खामोशी से फ्लैट में दाख़िल हुआ और मौका देखकर वार कर गया?

इस बार जीशान अयूब अपनी एक्टिंग से निराश कर जाते हैं। यह शो तो सुरवीन चावला के नाम है। वो एक टूटी लेकिन ठोस मां के रोल में दमदार छाप छोड़ती हैं। बेटी को दूसरे के भरोसे छोड़ने की तकलीफ और उस हादसे का बोझ… ये सब उन्होंने इतने असरदार ढंग से निभाया है कि कैमरा खुद-ब-खुद उनकी ओर खिंचता है। खुशबू अत्रे (रत्ना) और आत्म प्रकाश मिश्रा (दीप) की जोड़ी थोड़ी ‘वेटिंग रूम’ जैसी हो गई है… कभी कोई काम मिलेगा, कभी नहीं। हंसी आती है लेकिन कहानी से कोई लेना-देना नहीं।

शो की जान हमेशा से कोर्टरूम में हुई बहस रही हैं और इस सीज़न में भी जब पंकज त्रिपाठी, मीता वशिष्ठ और श्वेता बसु प्रसाद एक-दूसरे से टकराते हैं, तो असली मज़ा वहीं आता है। माधव मिश्रा का “आम आदमी चेहरा” जब तेज़ दलीलों में बदलता है, तो लगता है कि अब शो में जान आई है। सीज़न में एक बड़ा सवाल ये भी है कि क्या यह देसी वकील अब कॉरपोरेट चमक-दमक के आगे झुक जाएगा? बड़े ऑफिस, बड़ी कारें… क्या माधव इस चकाचौंध में अपनी जड़ों से कट जाएगा? इशारा है कि पंकज त्रिपाठी अब अपने किरदार की मासूमियत को थामे रखने की जद्दोजहद में है।

कुल 8 एपिसोड्स में से पहले तीन ही स्ट्रीम हुए हैं और यह टाइम पास जैसा लगता है। साइड प्लॉट्स, जैसे इंस्पेक्टर गौरी की शादीशुदा ज़िंदगी की दिक्कतें या रोशनी की मां का रोना, कहानी में ज़्यादा मदद नहीं देते। और सबसे बड़ी ग़लती यह कि एस्पर्जर सिंड्रोम वाले किरदार को बिना किसी चेतावनी के ‘हिंसक प्रवृत्ति वाला’ बता देना। ये सिर्फ स्क्रिप्ट की गलती नहीं, ज़िम्मेदारी की भी चूक है।

‘क्रिमिनल जस्टिस: अ फैमिली मैटर’ में वो मासूम जादू गायब है। पंकज त्रिपाठी और सुरवीन चावला की परफॉर्मेंस के लिए इसे एक मौका दिया जा सकता है। हां, आप अगर तेज कहानी की उम्मीद कर रहे हैं, तो धीमी गति थोड़ी खल सकती है। इस बार यह अपराध से ज़्यादा “फैमिली इशूज़” में उलझा हुआ। अदालत की कुर्सियां अब भी गरम हैं, पर दिल को छूने वाली गर्माहट थोड़ी फीकी हो गई है।

ढाई दशक से पत्रकारिता में हैं। दैनिक भास्कर, नई दुनिया और जागरण में कई वर्षों तक काम किया। हर हफ्ते 'पहले दिन पहले शो' का अगर कोई रिकॉर्ड होता तो शायद इनके नाम होता। 2001 से अभी तक यह क्रम जारी है और विभिन्न प्लेटफॉर्म के लिए फिल्म समीक्षा...