डॉ. शिवानी वर्मा एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ हैं, जो अस्पताल के साथ-साथ समाज के उत्थान के लिए भी काम करती हैं। लोग आज उन्हें फैशन दीवा के तौर पर जानते हैं। वो कई फैशन शोज और पेजेन्ट्स में बतौर मेंटर तो कभी मुख्य अतिथि बनकर अपनी बात आगे रखती आई हैं।

डॉक्टर भी, दीवा भी

डॉ. शिवानी बताती हैं कि उनके पिता एक एडवोकेट थे और वो चाहते थे कि मैं डॉ. बनूं। वे कहती हैं कि डॉ. बनने की उन्होंने तब ठानी जब उनकी एक दोस्त ने उन्हें यह कह दिया कि बिना परिवार में किसी के डॉ. बने इस क्षेत्र में आना और टिक पाना बहुत मुश्किल है। बस फिर क्या था उन्होंने इसे एक चैलेंज माना और अपनी पूरी मेहनत से एक सफल डॉ. बनकर दिखाया।

काम और जुनून दोनों साथ-साथ

उन्होंने बताया कि एक दिन फेसबुक पर मैसेज पंजाब प्राईड ऑफ नेशन का विज्ञापन देखा तो फार्म भर दिया, क्योंकि डॉक्टरी काम के साथ उन्हें अपने शौक को पूरा करने का मौका जो मिल रहा था। इस तरह ऑडिशन दिया और वहां सिलेक्शन हो गया और तब से एक नए सफर की शुरुआत हो गई। इस पेजेंट को जीतने के बाद इन्होंने कई और पेजेंट जीते और अक्सर फैशन शोज़ में बतौर शोस्टापर व बतौर जूरी भी इन्हें इनवाइट किया जाता है। ऐसे मंच पर डॉ. शिवानी ब्रेस्ट कैंसर के प्रति जागरूकता भी फैलाती हैं। ये पूछने पर कि आमतौर पर एक डॉक्टर की लाइफ में किसी दीवा जैसा ग्लैमर नहीं होता तो वो कहती हैं कि क्योंकि उन्होंने हमेशा मरीजों को भी समाज सेवा की दृष्टि से ही देखा है, इसलिए वो खुद चाहती थी कि वो एक फैशनिस्टा बने तभी लोग आपको ज्यादा ध्यान से सुनते हैं और आप लोगों को जागरूक कर सकते हैं।

खुद को मोटीवेट भी करती हैं

वे कहती हैं कि हर रोज सोने से पहले वे पूरे दिन का विश्लेषण करती हैं कि आज क्या गलत रहा और क्या सही? और जो गलत रहा उसे कैसे सही किया जा सकता है वे हमेशा ईश्वर का धन्यवाद करती हैं। वे हर सुबह की शुरुआत करती है एक नए सफर एक नए हौंसले के साथ।

बेटों के पालन-पोषण पर करना है काम

डॉ. शिवानी खुद दो बेटों की मां हैं और उन्हें ये लगता है कि जैसे आज हम अपनी बेटियों को बचपन से अपने पैर पर खड़े होना, सशक्त होना सिखा रहे हैं, वैसे ही जरूरी है कि हम अपने बेटों को भी सिखाएं कि कैसे लाइफ में हर तरफ से आत्मनिर्भर होना चाहिए फिर चाहे वो किचन में खाना बनाना हो, घर का कोई और काम हो या बाहर का कोई काम हो। वो लड़कों के सही पालन-पोषण पर काम करना चाहती हैं, क्योंकि लड़कियों की ही तरह लड़कों को भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वो भी इमोशनल होते हैं और उन पर भी समाज की ओर से कई तरह के दबाव होते हैं। वो महिलाओं को ही नहीं हर किसी को सम्मान दे और सिर्फ लड़का होने पर नाज न करे।

महिलाओं के लिए उनका संदेश

उनका मानना है कि हर नारी में एक नारायणी है एक आदि शक्ति छुपी है, बस उसे समझने की देर है। नारी में जन्म देने की शक्ति है, उसे पालने व पोसने की कला भी है और साथ-ही-साथ परिवर्तन लाने की क्षमता भी है। तो हर नारी को अपने अंदर छुपी उस प्रतिभा को ढूंढ़ने की जरूरत है।

फैमिली और काम साथ-साथ

उनका कहना है कि उन्हें परिवार के साथ समय बिताना बहुत पसंद है। इसी तरह वे अपने काम को भी इंज्वॉय करती है, जिससे उन्हें काम बोझ नहीं लगता अपितु शौक बन जाता है और ऐसा करने से परिवार और काम को मैनेज नहीं करना पड़ता सब अपने आप हो जाता है। 

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