'बहनों और भाईयों' एक थे अमीन सयानी और कुछ रोचक थी उनकी रेडियो की कहानी: Ameen Sayani Life Journey
Ameen Sayani Life Journey

Ameen Sayani Life Journey: जिन लोगों ने रेडियो का दौर देखा है उन सभी लोगों के लिए रेडियो पर आने वाली बिनाका गीत माला से एक रिश्ता था। जब अमीन सयानी अपने प्रोग्राम की शुरुआत बहनों और भाईयों के साथ करते थे तो हर किसी को लगता था कि मानों वे उन्हें ही संबोधित कर रहे हैं। 1952 से रेडियो पर शुरु हुआ यह प्रोग्राम केवल एक प्रोग्राम मात्र नहीं था। अमीन सयानी के जरिए लोगों से रेडियो का एक रिश्ता जुड़ा था। उनकी आवाज बात कहने का उनका अंदाज कमाल का था। खैर अब अमीन सयानी की वो जादू वाली आवाज हमेशा के लिए खामोश हो चुकी है। लेकिन उन्होंने अपने समय में जो काम किए वो इतिहास के सुनहरे अक्षरों में लिखे जाएंगे। जब भी बात भारत के रेडियो की बात होगी वो अमीन सयानी के जिक्र के बिना अधूरी होगी। आइए इस लेख में जानते हैं एक रेडियो अनाउंसर के जीवन का फलसफा।

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स्त्रीवादी थे अमीन सयानी

आपने कभी गौर किया है कि अक्सर लोग एंकरिंग में प्रोग्राम की शुरुआत भाईयों और बहनों के साथ करते हैं लेकिन अमीन सयानी ‘बहनों और भाईयों’ कहते थे। आपको लग रहा होगा कि यह बहुत मामूली सी बात है लेकिन नहीं आप 1952 के दौर की कल्पना कीजिए जब एक रेडियो उद्घोषक ने पुरुषों से पहले महिलाओं को रखा। यह सोच उन्हें अपनी मां से मिली थी। उनकी मां एक गांधीवादी महिला थी। उनके जीवन में गांधी जी का बहुत प्रभाव था। यही वजह है वो अपने दौर में एक बहुत प्रगतिशील महिला थीं।

आवाज के पीछे सात स की कहानी

वो एक ऐसे प्रजेंटर थे जो अपने हर एक श्रोता को अहम मानते थे। उस जमाने में उनके प्रोग्राम के लिए चिट्ठियां 9000 हजार तक आती थीं। यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है। अमीन की सफलता के पीछे उनके सात स की कहानी छिपी है। एक बार एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि वो सत्य, सरल, स्पष्ट, सभ्य, सुंदर स्वाभाविक पर फोकस करते थे।

लता जी का इंटरव्यू

उनके प्रोग्राम में बॉलीवुड के सेलिब्रेटीज आते थे। एक बार उन्होंने लता जी को अपने प्रोग्राम में बुलाया था और वो आशा भौंसले और उनके बीच की दूरी। यहां तक कि उनकी शादी को लेकर भी सवाल कर पाए थे। तब लता जी ने कहा था कि जीवन, परण और मरण एक ही बार होता है। अब जिसका नहीं हुआ वो क्या कर सकता है। उन्होंने उनसे ओपी नैय्यर के साथ उनके विवाद के बारे में भी पूछा था। हम कह सकते हैं कि उनका होमवर्क बहुत गजब का होता था। चलिए अब बारी है उन्हें अलविदा कहने की। उनके लफ्जों में ही कहते हैं। अगले जन्म फिर मिलेंगे, तब तक के लिए अपने दोस्त अमीन सयानी को इजाजत दीजिए। नमस्कार शुभरात्री, शब्बाखैर।