बिंदी, जिसे कुमकुम भी कहा जाता है, यह भारतीय महिला के श्रृंगार का अभिन्न हिस्सा है। युगों से, माना जाता है कि महिला बिंदी के बिना महिला का लुक अधूरा रहता है। कुछ परिवारों में, महिलाएं हर समय चेहरे पर बिंदी लगाए रखती हैं, जिससे त्वचा पर खुजली और लाली हो सकती है। कुछ महिलाओं में तो खुजली बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है। अगर एलर्जी न भी हो तो, कभी कभी लगातार बिंदी लगाए रखने से उस हिस्से की त्वचा पर हल्के रंग का एक धब्बा सा बन जाता है। 

बिंदी से पहले कुमकुम का इस्तेमाल किया जाता था। कुमकुम को हल्दी और चूने में रंग मिलाकर बनाया जाता है। यह आमतौर पर पाउडर और लिक्विड के रूप में उपलब्ध होती है। इसे पुरूष और महिलाएं अपने माथे पर लगा सकते हैं। लेकिन बदलते समय के साथ, पारम्परिक बिंदी की जगह स्टिकर बिंदी ने ले ली, जो आज कई रंगों, आकारों और स्टाइल्स में उपलब्ध है। इस बिंदी में इस्तेमाल की जाने वाली ग्लू त्वचा को नहीं सुहाती, जो कई महिलाओं में एलर्जी का कारण बन सकती है। 

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बिंदी से होने वाली एलर्जी के कारण

बिंदी से होने वाली एलर्जी को चिकित्सा की भाषा में बिंदी डर्मेटाइटिस कहा जाता है। आमतौर पर यह बिंदी के इस्तेमाल के कारण होती है। बिंदी में आमतौर पर पैरा टर्शरी ब्यूटाईल प्लेनोल का इस्तेमाल होता है, जो संवेदनशील त्वचा के लिए नुकसानदायक है। लम्बे समय तक इसका इस्तेमाल करते रहने से त्वचा को बहुत ज़्यादा नुकसान हो सकता है। कुछ मामलों में कैंसर तक भी हो सकता है। लेकिन उचित देखभाल और प्रबंधन के द्वारा इस समस्या का समाधान संभव है।

बिंदी एलर्जी के लक्षण

महिलाएं अक्सर शुरूआती लक्षणों पर ध्यान नहीं देतीं और बिंदी लगाना जारी रखती हैं। लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। अगर आपको इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई दें तो आपको तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

काला या सफेद धब्बा

अगर लम्बे समय तक इलाज न किया जाए तो इस हिस्से से खून बहना भी शुरू हो सकता है।

उपचार

सबसे पहले अगर आपको कोई लक्षण दिखाई दें, तो तुरंत बिंदी का इस्तेमाल बंद कर दें। हालांकि भारतीय समाज और संस्कृति में ऐसा हमेशा संभव नहीं होता। इसलिए बिंदी के स्थान पर अन्य प्रोडक्ट इस्तेमाल करें। आप बी वैक्स और तिल के तेल का मिश्रण लगाकर इसके उपर भी बिंदी चिपका सकती हैं। 

इस तरह की एलर्जी के इलाज में हल्का स्टेरॉयड भी इस्तेमाल किया जाता है। आमतौर पर टॉपिकल ऐप्लीकेशन या क्रीम के द्वारा इसका इलाज किया जाता है। लेकिन कुछ मामलों में ओरल स्टेरॉयड का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। एंटीस्टैमिनिक्स जैसे लीवोसेट्रीज़ाइन और हाइड्राक्सीज़ाइन के द्वारा भी मरीज़ को खुजली एवं असहजता से राहत मिलती है।

कभी कभी, सांस्कृतिक एवं सामाजिक धार्मिक प्रभाव का स्वास्थ्य पर बुरा असर हो सकता है। बिंदी डर्मेटाइटिस भारतीय महिलाओं में आम समस्या है, लेकिन अगर हम चिकित्सा विज्ञान की अनदेखी कर पुरानी अवधारणाओं पर टिकें रहें तो कभी कभी छोटी सी समस्या गंभीर रूप ले सकती है। इसलिए डॉक्टर के पास जाने से हिचकिचाएं नहीं, तुरंत डॉक्टर की सलाह लें। याद रखें, सही देखभाल और प्रबंधन से आप इस समस्या का इलाज कर सकती हैं।  

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input-डॉ नंदिनी बरुआ, डर्मो, पारस हॉस्पिटल गुड़गांव