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एक स्त्री की वसीयत-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: एक स्त्री की वसीयतहाँ  मर रही थीवो अंदर ही खाट परदुनिया बाहरउसकी वसीयत पूछ रही थीवसीयत तो लिखी हुई थीआकाश परदर्द की स्याही सेबचपन उसकानीम के पेड़ पर बना झूला हीदेख पायाजवानी कमरेंकी दहलीज़  ही देख पाईउसके खुबानी गालो कीरंगत बढ़ने से पहले ही वो ब्याह दी गईप्रेम का व्याकरण अधूरा ही रह […]

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