आयुर्वेद में रस चिकित्सा को षडरस चिकित्सा भी कहा जाता है क्योंकि रस 6 प्रकार के होते हैं, जिनके गुणों एवं संतुलन से हमारा स्वास्थ्य निर्मित व प्रभावित होता है। किस रस में कौन से गुण हैं तथा क्या है उनका प्रभाव? आइए जानते हैं।
रस 6 प्रकार के होते हैं- मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त और कषाय।
01. मधुर, मीठा होता है, यह शरीर में कफ को बढ़ाता है।
02. अम्ल, खट्टा, लहसुन की तरह तेज जलन वाला होता यह शरीर में कफ एवं पित्त को बढ़ाता है।
03. लवण, नमकीन होता है, यह शरीर में पित्त को बढ़ाने वाला होता है।
04. कटु, चरपरा होता है, यह शरीर के पित्त को बढ़ाता है।
05. तिक्त, कड़वा होता है, यह शरीर में वात को बढ़ाता है।
06. कषाय, कसैला व फीका होता है, यह शरीर में वात को बढ़ाता है। इन छ: में से कोई एक रस हमारे भीतर बढ़ा होता है और रोग मिटाना है, तो उस रस को कम करना होता है। यदि मधुर रस से परेशानी हो रही है, कफ बढ़ रहा है, तो आपको सबसे नीचे के रस को अपने भीतर बढ़ाना होगा अर्थात् कसैला रस लो तो मीठे रस का प्रभाव तेजी से कम होगा।
मीठा अर्थात् कफ; तो मधुर से परेशान हो तो उससे दूर के रस कटु – तिक्त – कषाय का प्रयोग बढ़ाओ आपको शीघ्र मुक्ति मिलेगी। ऐसी औषधि, ऐसी सब्जी, फल फूल ले जो कसैले प्रभाव के निकट के हों।
अम्ल प्रभाव से मुक्ति चाहिए तो भी नीचे के रस डालो – अर्थात् कड़वा लो, कसैला लो। मधुर पदार्थ अम्ल कफ बढ़ाएंगे, लवण कटु पित्त बढ़ाएंगे, तिक्त कषाय वात बढ़ाएंगे नीचे वाले वात देंगे – अर्थात् यदि वात से परेशान हो तो ऊपर का रस मधुर या अम्ल को लेना चाहिए।
रस के स्वाद को समझकर इसका आवश्यकतानुसार उपचार करना चाहिए।
1 क्रम के रस से रोग है तो 4 या 5 या 6 क्रम के रस का प्रयोग बढ़ाना चाहिए –
यदि मधुर रस से रोग है, और मधुर रस सेवन ही बढ़ा के रखा है तो रोग और बढ़ जाएगा। मान लो आप मधुर रस का प्रभाव मिटाने को कषाय रस का सेवन बढ़ाते हो तो इससे मधुर का प्रभाव तो मिटेगा परन्तु कषाय रस वायु बढ़ाता है।
वायु रोगी की यदि वायु बढ़ी तो उसका जीना दूभर हो जाएगा तब आप साथ में कुछ वायु कम करने वाली चीजें भी लें।
हो सके तो घर की सभी सब्जियों, फलों व आसपास के पेड़ों की पत्तियों के रस के स्वाद को चखा करें, मसालों के रस को समझें ताकि आवश्यकतानुसार उनका प्रयोग किया जा सके।
जैसे यदि आप पित्त से परेशान हो रहे हो और पास में तिक्त रस वाला कडुवा नीम है, तो फट से नीम की पत्ती तोड़ों और पित्त से तुरंत राहत पाओ।
हमने आयुर्वेद में हर पदार्थ का नाम सोच समझकर रखा है, जो उनके गुणधर्म को समझाता है जैसे –
अजवायन = अज वायु न – वायु उत्पन्न न होने दे – अज वाय न, तो वायु परेशान करे तो अजवायन का सेवन करें। वायुकारक दाल या सब्जी में अजवायन का छौंक दें।
धनिया = दाह नहीं आ – दाहनीआ – धनिया और सत्य है धनिया दाह – गर्मी को रोकता है। पित्त, गर्मी परेशान करे तो धनिए का सेवन करें। यह त्रिदोष नाशक है, अर्थात् सब्जी उष्ण प्रकृति की बन रही है, तो अधिक धनिया डाल के उसे ठंडी प्रकृति की कर लें।
हल्दी = हल दाह ई – यह थोड़ी सी दाह देती है।
लहसुन = लौ है सुन – इसमें लौ है।
जीरा = जरा – यह जरा ,जला देता है – अग्नि देता है।
मैथी = जैसे किसी को मधुमेह है, तो मैथीदाना लाभ देता है। भीगी मैथी कसैली होती है, और मधुमेह रोगी मीठे रस से परेशान है – तो मैथी मीठे रस को कम करती है, इससे रोगी को राहत मिलती है; अंगों को कुछ माह राहत मिलती रहे तो रोग नष्ट हो जाता है।
अपना रोग देखें और उसके अनुसार रस – पदार्थ का सेवन करें-
3 क्रम के रस से परेशान हो तो रस 1 या 6 का सेवन करें पर ध्यान रहे 6 प्रकार का रस 1 क्रम के रस का घोर शत्रु है; किन्तु इसका अधिक सेवन वायु बढ़ाएगा।
अब यदि आप वायु के भी रोगी हो तो कुछ वायु मिटाने वाली चीजें भी साथ में लेनी पड़ सकती हैं, जैसे काली मिर्च ,हींग आदि। कुछ माह आप इसपे अच्छे से चिंतन कर लो। आपको 80′ जीवन में दवाई नहीं लेनी पड़ेगी। आप घर की सब्जी, मसाले, फल, दूध आदि से ही अपना उपचार कर लोगे।
