Summary: किस्मत ने साथ दिया विवेक का
अचानक एक जोर का धमाका हुआ। बहुत तेज़ आवाज़ आई। सड़क पर अचानक एक ऊंटगाड़ी आ गई, जिसमें लंबे-लंबे लोहे के सरिए लदे हुए थे...
Vivek Oberoi Accident: विवेक ओबेरॉय इन दिनों अपनी नई फिल्म ‘मस्ती 4’ को लेकर चर्चा में हैं। रितेश देशमुख और अफताब शिवदासानी के साथ ये ट्रायो फिर से एक बार दर्शकों को हंसाने आ रहा है। लेकिन हंसी-मज़ाक की इस वापसी से पहले विवेक ने अपने करियर का एक बेहद डरावना पल याद किया। एक ऐसा हादसा, जिसमें उनकी जान बाल-बाल बची थी। यह घटना उनकी 2002 की फिल्म ‘रोड’ की शूटिंग के दौरान हुई थी। अगर किस्मत साथ न देती तो शायद आज कहानी कुछ और होती।
बार-बार चेतावनी देने के बाद भी हुआ हादसा
मैशेबल को दिए एक इंटरव्यू में विवेक ने बताया कि शूटिंग के दौरान उन्हें राजस्थान में काफी सफर करना पड़ता था। उस दिन वे बीकानेर से जैसलमेर जा रहे थे। रात का समय था – सड़कें बिल्कुल खाली थीं, ड्राइवर गाड़ी को तेज चला रहा था, लेकिन अंधेरा बहुत था। विवेक बार-बार ड्राइवर को समझा रहे थे कि धीरे चलाओ, विजिबिलिटी कम है, रात में स्पीड खतरनाक हो सकती है।विवेक कहते हैं, “मैंने ड्राइवर को शायद 15–20 बार बोला – धीरे चला, रात है, कुछ दिख नहीं रहा। मैं आगे वाली सीट पर बैठा था। उस हादसे के बाद मैंने कभी फ्रंट सीट पर बैठना पसंद ही नहीं किया।”
ऊंटगाड़ी के सरिए सेकंड भर में कार में घुसे

इतनी चेतावनियों के बावजूद भी आखिर जो होना था वो हो गया। विवेक बताते हैं, “मैंने सीट थोड़ा पीछे कर ली थी और अचानक एक जोर का धमाका हुआ। बहुत तेज़ आवाज़ आई। सड़क पर अचानक एक ऊंटगाड़ी आ गई, जिसमें लंबे-लंबे लोहे के सरिए लदे हुए थे। वो सरिए सीधे हमारी कार के शीशे में घुस गए। अगर मेरी सीट सीधी होती, तो वो सरिए मेरे शरीर में सीधे घुस जाते।” विवेक बताते हैं कि सरियों की वजह से वो हिल भी नहीं पा रहे थे। कार का आधा हिस्सा उन्हीं सरियों से भरा पड़ा था। लेकिन चमत्कार ऐसा कि उन्हें एक खरोंच तक नहीं आई। वो कहते हैं,“मैं बिल्कुल बच गया। ऐसा लगा जैसे मौत बस छूकर निकल गई। उसी दिन तय कर लिया कि अब कभी रात में ट्रैवल नहीं करना।”
जब ड्राइवर को उतारकर खुद गाड़ी ले उड़े
विवेक ने इंटरव्यू में बताया कि ऐसा पहली बार नहीं था जब ड्राइवर की हरकतों से उनकी जान खतरे में पड़ी हो। एक और घटना सुनाते हुए बोले, “एक बार मैं एक ड्राइवर के साथ था। वो भी बहुत तेज चला रहा था। कई बार समझाया…धीरे चलाओ लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। मैंने उससे कहा कि कार रोको, वॉशरूम जाना है। जैसे ही वो नीचे उतरा, मैं उसकी साइड गया, चाबी निकाली, और गाड़ी लेकर सीधा निकल गया। उसको वहीं छोड़ दिया।” ये सुनकर हंसी भी आती है, लेकिन सोचने पर वाकई ऐसा लगता है कि विवेक की तरह ही ड्राइविंग को बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है।
