Tyoharon par maa yaad aati hai
Tyoharon par maa yaad aati hai

Hindi Poem: हर बेटी के भीतर
एक अनसुनी धड़कन होती है —
माँ की।
जो समय के हर पड़ाव पर
धीरे से याद दिलाती है कि
“तू अकेली नहीं, मैं तेरे भीतर हूँ।”

माँ बहुत याद आती है —
क्योंकि जीवन के हर रंग, हर विधि,
उसी से तो सीखी थी।
खाना बनाना, तुलसी को जल चढ़ाना,
दीपक का रुख किस दिशा में हो —
सब उसकी ही सिखाई हुई लकीरें हैं,
जो आज भी हाथों की रेखाओं में दर्ज हैं।

त्योहार आते हैं तो लगता है —
आँगन में माँ फिर से उतर आई है।
उसकी गूँज है रसोई की महक में,
उसकी परंपरा है दीप की लौ में,
और उसकी स्मृति —
हर आरती की धुन में थरथराती हुई।

बेटियाँ जब घर सजाती हैं,
तो केवल दीवारें नहीं,
माँ की यादों को भी सँवारती हैं।
हर विधि-विधान, हर रीति-रिवाज,
माँ की उपस्थिति का पुनर्जन्म है —
जो अब बेटी के हाथों से पूर्ण होता है।

वो सोचती है —
माँ ऐसा करती थी…
और करते-करते
स्वयं माँ बन जाती है —
भाव में, कर्म में, आशीष में।

कभी-कभी,
दीप की लौ के सामने ठहरकर
वह मन ही मन कहती है —
“माँ, देखो…
मैंने सब वैसे ही किया है
जैसे तुम करती थीं।
थाली में वही मिठाई रखी है,
वैसा ही दीप सजाया है चौखट पर,
और बच्चों को भी सिखाया है —
पहले दिया जलाने से पहले
मन को शांत करना चाहिए।”

तब लगता है,
दीप की लपट ज़रा और स्थिर हो जाती है,
जैसे माँ ने भीतर से सिर पर
धीरे से हाथ रख दिया हो।

माँ कहीं गई नहीं,
वो अब हर बेटी के भीतर
धड़कती है —
स्मृति, संस्कार और स्नेह बनकर।