Social Story in Hindi: प्रणाम!
तुम कैसी हो ?आज तुम्हें पत्र लिख रहा हूं, बहुत खुश होकर! अपनी आंखों में आंसू भरकर।
तुम कहती थी ना पुलकित, उस दिन का इंतजार है जब तू डॉक्टर बन जाएगा। अम्मा बाबा की इच्छा पूरी कर लेगा! बस उसी दिन मैं गंगा नहा लूंगी और कोई इच्छा नहीं है …बस तुझे सफेद वर्दी में देखने के लिए इच्छा है!
दीदी, जानता हूं कि अब तुम्हारे तक तो मेरी बात नहीं पहुंच पाएगी क्योंकि वह नंबर जिसमें मैं फोन कर हिम्मत बटोर लेता था, वह अब मेरे पास ही है।
उसे खाली आंखों से देखता रहता हूं! नंबर डायल करता हूं पर कोई उठाता नहीं…!
मेरे किसी भी बातों का तुमपर कोई असर तो होता नहीं, तभी तो जवाब मिलता ही नहीं !
मैं खुद ही फोन उठाता हूं और खुद को समझाता हूं ..”हां पुलकित, अपना ख्याल रखा करो ।अब तो तू बड़ा हो गया है ना! तुझे तो मुझे देखना चाहिए, तुझसे अपना ख्याल नहीं रखा जाता!”
मैं अपने को समझाता हूं लेकिन वह प्यार कहां से लाऊं जो तुम्हारे मुंह से निकलकर मुझे पुलकित कर जाते थे।
मैं तो तुम्हें देखने के लिए तैयार हो रहा था दीदी लेकिन तुमने मुझे मौका ही कहां दिया! तुम्हें तो भागने की कितनी जल्दी थी!
तुम्हें याद है ना दीदी,उस दिन बाबा घर आकर कितने खुश थे। उन्होंने अम्मा को कितनी खुशी से पुकारा था “ सुमन की अम्मा , इधर आओ। देखो मैं उसकी शादी पक्की कर आया हूं। तुम्हारा होने वाला दामाद डॉक्टर है। अब तो राज करेगी मेरी बिटिया।”
मैंने कितनी मासूमियत से पूछा था “बाबा, सुमन दीदी चली जाएगी?”
“हां पुलकित!वो हंसते हुए कहा रहे थे, अब तुम्हें अपनी दीदी के बगैर जीने की आदत डालना सीखना होगा।”
“नहीं बाबा मैं दीदी के बगैर नहीं रह सकता!” मैं कैसे रो पड़ा था और तुमने मुझे अपनी गोद में कैसे छुपा लिया था।
बाबा मुझे झिड़कते हुए कह रहे थे “तुम बच्चे नहीं रहे हो…! तुम बड़ों की तरह रहना सीखो ।इस उम्र में तुम्हारी दीदी घर का पूरा काम संभाल लेती थी।”
तब तुमने भी मुझे पुचकारते हुए कहा था “तुम्हारी दीदी कहीं नहीं जाएगी!”
तब बाबा ने तुम्हें कैसे डांटा था ..”कैसी बातें कर रही हो सुमन!सदियों से यही होता आया है जिस घर में लड़की जन्म लेती है एक दिन वही घर पराया हो जाता है। ऐसी अशुभ बातें मत किया करो।”
मेरे और तुम्हारे दरमियान 11 /12 साल का अंतर था ,जिसका मैं भरपूर फायदा उठाया करता था।
मेरे स्कूल के कपड़े प्रेस करना, बैग में किताब जमाना, होमवर्क कराना, संडे के संडे मेरे मनपसंद खाना बनाना सारे काम तुम ही तो करती थी।
स्कूल से जब मैं वापस आता तो तुम्हारी आंखें खुशी से इंतजार करती रहती कि मैं स्कूल की सारी बातें एक कंमेंट्री की तरह तुम्हें सुनाता रहूं । तुम सुन सुनकर कितना हंसती थी!
वह दिन कितना मनहूस था ना दीदी, जब बाबा शादी के लिए गांव की जमीन बेचकर आ रहे थे और सब कुछ वहीं पर खत्म हो गया था ।
दो गाड़ियां आपस में भिड़ गईं थीं और तुम्हारे सपने टूटकर बिखर गए थे ।
तुम्हारे ससुराल वाले बाबा के श्राद्ध में आए थे और दस बातें सुना कर गए थे! कितनी मनहूस लड़की है!शादी से पहले अपने बाप को खा गई वह आगे और क्या-क्या करेगी?
वे लोग सहानुभूति प्रकट करने आए थे और शादी तोड़कर चलते बने थे! और अम्मा उनके पीछे पीछे मिन्नतें कर बिछीं जा रहीं थीं लेकिन वे लोग नहीं ही माने।
और तुमने हल्दी लगे हुए कपड़े वैसे ही उतार कर रख दिया था और मां के लिए ढाल बन गई थी और मेरे लिए तुम वृक्ष की छाया ।अपने सपने तुमने मेरे लिए कुर्बान कर दिए यह कहकर” एक बार जो शादी टूट गई वह नहीं हो सकती… मेरा मन टूट गया है। मां, मुझे अब शादी करने के लिए मत कहना। जिस दिन मेरा मन करेगा मैं शादी कर लूंगी।”
तुम पढ़ाई में तेज थी। सरकारी स्कूल में टीचर बन चुकी थी।
“पुलकित मेरा सपना तुम हो।मैं चाहती हूं कि तुम डॉक्टर बनो।”
तुम्हारी बातों का जादू मुझपर चल गया था।
मैं भी पढ़ाई में जुट गया था।
वह दिन कितना खुशनसीब था, जब मैंने मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया था। तुम तो ऐसे रो रही थी जैसे विदा होकर लड़की अपने ससुराल जाती है ! बहती आंखों से तुमने मुझे अपनी आंखों के काजल का टीका लगाया था “पुलकित, खूब अच्छी तरह से पढ़ो और खूब नाम कमाओ। खूब पैसे कमाओ!”
तुम्हारी दुआ लग गई थी। देखो, आज मैं अपने मेडिकल कॉलेज एसोसिएशन का प्रतिनिधि चुना गया हूं।
हो गई ना खुश!!
मैं कितनी खुशी से तुम्हें यह बताना चाहता था मगर अब तो तुम किस दुनिया में चली गई हो पता ही नहीं!
हर साल बरसी बीत जाती है मगर तुम्हारा मुस्कुराती हुई तस्वीर बोलती ही कहां है?
लोग कहते हैं कि मेरे हुए लोग जिससे प्यार करते हैं वो उसके सपने में भी आते हैं…मगर कभी सपने में भी तुम नहीं आती हो। पता नहीं मुझे भूल गई या तुम्हें मेरा ख्याल ही नहीं ।
पर तुमने मुझे क्या से क्या बना दिया। तुमने पढ़ा लिखा कर मुझे आज कहां पहुचा दिया…।
दीदी, अगर मेरा बस चले तो मैं अपनी जिंदगी से उस लम्हे को ही हमेशा हमेशा के लिए मिटा दूंगा जिसने मुझे आपसे हमेशा के लिए दूर कर दिया था।
उस दिन कैसे हादसा हो गया था!! अचानक ही डैम लिकेज के कारण शहर में ही पानी भर गया था। तुम उस समय अपने स्कूल में ही थी।कई लोगों को तो रेस्क्यू कर लिया गया था लेकिन उस हादसे में…!
लगता नहीं है दीदी कि उस हादसे को एक साल पूरे होने जा रहे हैं।
तुम तो पानी में डूब गई लेकिन मेरा दिल सूख गया हमेशा के लिए।
तुम जो चाहती थी वो मैंने कर दिखाया। तुम खुश तो हो ना, मेरी इस उपलब्धि पर!
कितनी बार कहती थी तुम पुलकित के चेहरे पर उदासी अच्छी नहीं लगती! तुम और उदासी दोनों एक दूसरे के दुश्मन हैं।
…दीदी, मेरे फोन की घंटी बज रही है ..!अब मैं जा रहा हूं अपनी उपलब्धि हासिल करने…अपने सिर पर ताज पहनने।
मैं कितना बेबस हूं, बता नहीं सकता। तुम कहती थी ना तुम अपने आप को कभी अकेले मत समझना…! प्लीज तुम आज आ जाना!
अम्मा तो साथ होकर भी नहीं है। उनकी शून्यता मैं कभी खत्म नहीं कर सकता।
बस तुम्हारा इंतजार है…! तुम आ जाओ हवा बनकर ही सही ताकि मैं उसमें तुम्हारी खुशबू महसूस कर सकूं!
