Rajasthani wedding ritual in hindi
Rajasthani wedding ritual in hindi

Rajasthani Wedding Traditions and Rituals: भारत को विभिन्नताओं का देश माना जाता है। यहां समाज में हर धर्म की अलग-अलग रीति-रिवाज और परंपराएं हैं। वहीं राजस्थानी शादियों की संस्कृति और ट्रेडीशन बहुत ही शानदार होता है, जिसकी वजह से यह विवाह भारत का सबसे समृद्ध और अनोखी शादियों में से एक माना जाता है। राजस्थानी वेशभूषा बहुत ही आकर्षक और रंग बिरंगा होता है, जो लोगों का मन मोह लेता है। राजस्थानी शादियों में परिधानो और परम्परागत संगीत के साथ-साथ पुरानी रीति रिवाज और परंपराएं भी इसे खास बनाती हैं। राजस्थानी शादियों की रश्मे, परंपरा और संस्कृति से भरी होती हैं।

यही कारण है कि आजकल राजस्थान एक वेडिंग डेस्टिनेशन बन चुका है, जहां बड़े-बड़े सितारे अपने शादी के दिन को यादगार बनाने के लिए यहां विवाह रचाने का फैसला करते हैं। राजस्थानी विवाह केवल एक आयोजन नहीं होता बल्कि पारंपरिक मूल्यों, रिश्तों की महत्ता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक माना जाता है। यहां की शादियों की हर रस्म का एक खास मतलब होता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी परंपराओं को आगे बढ़ाती हैं। राजस्थान में शादी से पहले भी कुछ खास तरह की रस्में निभाई जाती हैं, जिनमें तिलक समारोह गणपति स्थापना और तेलबान दस्तूर के साथ महफिल की रस्म शामिल है। राजस्थान में शादी की रस्में 2 सप्ताह तक चलती हैं। आईए जानते हैं राजस्थानी विवाह के रीति रिवाज और पारंपरिक रस्मों के महत्व के बारे में।

tilak ceremony in rajasthani wedding
tilak ceremony in rajasthan

तिलक समारोह को इंगेजमेंट या सगाई भी कहते हैं। आजकल हर धर्म में सगाई की रस्म की जाने लगी है लेकिन राजस्थान की शादियों में यह रस्म अलग तरीके से की जाती है। इस दौरान दूल्हे के घर पर दुल्हन के घर वाले आते हैं और दुल्हन का भाई होने वाले दूल्हे के माथे पर तिलक लगाता है और इस समय लड़के को कपड़े, मिठाई के साथ तलवार दी जाती है। खास बात यह है कि इस रस में केवल पुरुष ही भाग लेते हैं।

थम्ब पूजा (Thamb Pooja) प्रतीकात्मक रूप से दूल्हा और दुल्हन के परिवारों की नींव को जोड़ती है। दूल्हे की तरफ से पुजारी मंत्रोच्चार करके दुल्हन के घर के नींव के स्तंभों के लिए विशेष प्रार्थना और पूजा करते हैं। यही कारण है कि इस अनुष्ठान को थम्ब पूजा के रूप में जाना जाता है। इस रस्म के बाद औऱ शादी से कुछ दिन पहले घर पर गणपति स्थापना की जाती है। यहां के लोग मानते हैं कि भगवान गणेश की पूजा के बिना राजस्थानी शादियाँ पूरी नहीं होती हैं। शादी के दिन, दूल्हा, दुल्हन और उनके संबंधित परिवार भगवान गणेश से सभी के जीवन में समृद्धि लाने के लिए प्रार्थना करते हैं।

तिलक समारोह के बाद तेलबान दस्तूर की रस्म की जाती है, जिसे हम आमतौर पर हल्दी की रस्म के नाम से भी जानते हैं। इसमें दुल्हन और दूल्हा दोनों शामिल होते हैं और इस रस्म के दौरान लकड़ी के पीढ़े या पीठ पर वर और वधू को बैठाकर चंदन- हल्दी से बने पेस्ट को लगाते हैं। इस लेप को लगाने से दोनों की त्वचा में चमक बनी रहती है। लेकिन इस रस्म के बाद दोनों को ही घर से बाहर निकलने की मनाही होती है।

जिस तरीके से आजकल हर शादियों में लेडिज संगीत सेलिब्रेशन किया जाता है। वैसे ही राजस्थानी शादी में महफिल करते हैं, जो शाम के समय होती है। इसमें महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी भाग लेते हैं और डांस-गाने के साथ खूब मस्ती करते हैं। इसके साथ ही मेहंदी सस्म भी होती है, जिसमें दुल्हन और घरवालों को महंदी लगाई जाती है। यह समारोह न केवल दुल्हन के लिए बल्कि दूल्हे के लिए भी शुभ माना जाता है। मेहंदी लगाना जरूरी होता है।

राजस्थानी शादियों में जनेऊ संस्कार एक खास तरह की रस्म होती है, जिसमें शादी से एक दिन पहले वर को जनेऊ पहनाते हैं। इस संस्कार को हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक समझा जाता है। जिसे हिंदू धर्म में वर के द्वारा धार्मिक और सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने का प्रतीक माना जाता है। ‌इस दौरान दूल्हे को फैमिली ट्रेडीशन और धर्म से जुड़े नियमों का पालन करने के लिए दीक्षा दी जाती है।

इस समारोह या प्रथा में वधू के मामा अपने घर से उसके औऱ उसके परिवार वालों के लिए कपड़े, गहने आदि भेंट लेकर आते हैं, जिसे आशीर्वाद के रूप में देखा जाता है। यहां तक कि दुल्हन के फेरे का जोड़ा भी मामा ही लेकर आते हैं, जो शादी में सात फेरे के समय दुल्हन पहनती है।

विवाह के दिन से पहले दूल्हे के रिश्तेदार वधू के लिए गिफ्ट लेकर जाते हैं, जिसे पल्ला दस्तूर कहा जाता है। इनमें दुल्हन के लिए गहने, कपड़े और साज-सज्जा के समान शामिल होते हैं, जो वह अपनी शादी की रस्मों के दौरान पहनती है। ‌

Royal Rajput Dastoor Ceremony
Royal Rajput Dastoor Ceremony

राजस्थानी वेडिंग्स में घोड़ी चढ़ने की रस्म देखने लायक होती है। बैंड-बाजा, नाच-गाना और आतिशबाजी के साथ बारात निकलती है, जिसमें जश्न और उत्साह का एक शानदार दृश्य देखने को मिलता है। इसके बाद दुल्हन के परिवार वाले पारंपरिक तरीके से बारात का स्वागत करते हैं, जिसमें दूल्हे की आरती उतारकर भव्य तरीके से उसका वेलकम किया जाता है।

ये एक ऐसी ही रस्मी प्रथा है जहां लोग देवी पार्वती की पूजा करते है। देवी की एक मूर्ति दुल्हन के घर ले जाई जाती है और दूल्हे के परिवार द्वारा भेजे गए कपड़ों और गहनों से उसे सजाया जाता है।

shadi ke 8 phere in rajasthan
shadi ke 8 phere in rajasthan

हिंदू विवाह में सात फेरे के साथ ही शादी संपन्न होती है लेकिन राजस्थानी शादियों में 7 नहीं बल्कि 8 फेरे लेने की पुरानी परंपरा चली आ रही है, जो आज भी कायम है। यहां होने वाले आठवें फेरे को छतरी का फेरा कहते हैं। माना जाता है कि यह फेरा दुल्हन और दूल्हे की लंबी उम्र और उनके बीच सामंजस्य और प्रेम बनाए रखने का प्रतीक होता है। यह आठवां फेरा राजस्थानी शादियों को बेहद खास बनाता है।

फेरे संपन्न होने के बाद दुल्हन की विदाई की रस्म आती है, जो सबसे भावुक करने वाला पल होता है। यह वह समय होता है जब माता-पिता और अपने घर वालों को दुल्हन अलविदा कहती है। जब दुल्हन कार में बैठ जाती है तो गाड़ी चलने के पहले पहिए के नीचे एक नारियल रखा जाता है और वर अपनी वधु को कोई एक गहने पीस देता है।

विदाई के कुछ समय बाद लड़की जब अपने मायके वापस आती है तो उसे पग फेरना के नाम से जाना जाता है। पग फेरना की रस्म बेटी के शादी के बाद पहली बार माता-पिता के घर लौटने का प्रतीक होती है। पग फेरना रस्म के बाद दुल्हन को फिर से ससुराल जाना पड़ता है।

प्रतिमा 'गृहलक्ष्मी’ टीम में लेखक के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हैं। डिजिटल मीडिया में 10 सालों से अधिक का अनुभव है, जिसने 2013 में काशी विद्यापीठ, वाराणसी से MJMC (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की। बीते वर्षों...