असल में पूरी कथा तो और भी अजब-गजब है, जिसने छोटे-से निक्का को पहले कंप्यूटर-उस्ताद और फिर पक्का जासूस बना दिया।
इसमें निक्का के पापा देवलकर साहब का भी बड़ा योगदान है। उन्होंने जब से कंप्यूटर खरीदा है, दफ्तर से आते ही चाय पीकर घंटा-डेढ़ घंटा अपने कंप्यूटर पर काम करना उन्हें अच्छा लगता। फिर रात में सोने से पहले कंप्यूटर पर देर तक उनकी उँगलियाँ नाचतीं।
पास ही निक्का अपना होमवर्क कर रहा होता था। मगर पापा को इतनी तल्लीनता से कंप्यूटर पर काम करते देख, कुछ चकरा सा जाता।
वह अपने आप से कहता, ‘अरे वाह! यह कंप्यूटर तो कंप्यूटर न हुआ, पापा का एक मजेदार खिलौना हो गया।…जैसे मैं अपने खेल-खिलौनों से खेलता हूँ और उनके बगैर मुझे चैन नहीं पड़ता। ऐसे ही लगता है, पापा दफ्तर से आते ही कंप्यूटर-कंप्यूटर खेलते हैं। आखिर यह कंप्यूटर है क्या बला? क्या मैं भी पापा की तरह इस पर अपनी उँगलियाँ नहीं चला सकता?…’
देवलकर साहब ने बेटे की दिलचस्पी देखी तो हँसकर बोले, “अच्छा चलो निक्का, तुम खेलना ही चाहो तो कंप्यूटर पर कुछ खेल खेल लो।”
और पापा ने किस्म-किस्म के गेम्स अपने कंप्यूटर में डलवाए। निक्का को सचमुच लगा कि एक अनोखा खिलौना उसे मिल गया है, जो बोलता है, चलता है, दौड़ता-भागता है और घड़ी-घड़ी अपना रूप बदलता है। इन खेलों में निक्का का इतना मन लगा कि उसके पापा को कभी-कभी टोकना पड़ता कि “निक्का बेटा, पढ़ाई पहले, खेल बाद में!…”
लेकिन कंप्यूटर से निक्का की दोस्ती कम होने के बजाय और बढ़ने लगी।
और फिर पड़ोस में रहने वाले कंप्यूटर साइंटिस्ट सुशांत वर्मा से दोस्ती होते ही, निक्का ने कंप्यूटर की सारी तकनीकें और राज जान लिए। अब वह कंप्यूटर के आगे बैठता तो उसे लगता, वह कोई गेम नहीं खेल रहा, वाकई हवा में उड़ रहा है। होते-होते हुआ यह कि देवलकर साहब को कंप्यूटर पर कोई मुश्किल आती तो निक्का उछलकर कहता, “मैं ठीक कर दूँ, पापा?…” और लो, निक्का का हाथ लगते ही झट पापा का कंप्यूटर फिर चालू। वे हँसकर कहते, “निक्का तो वाकई कंप्यूटर उस्ताद हो गया है!”
पिछले चार-पाँच सालों से तो हालत यह थी कि निक्का को सपने भी कंप्यूटर के ही आते। लिहाजा कंप्यूटर की कोई भी मुश्किल उसके लिए खेल थी। इस मामले में वह अपने पूरे मोहल्ले का बेताज बादशाह या हीरो बन गया था।
पर गोपालपुर का यह निक्का कंप्यूटर उस्ताद एक दिन देश के एक जाने-माने जीनियस चोर को यों एकाएक धर दबोचेगा, यह तो किसी ने नहीं सोचा था। बल्कि इसकी कल्पना तक मुश्किल थी।
“अब तुम्हारा काम खत्म हो गया है कालिया!…” उस हाईटेक चोर को अपने जाल में जकड़ने के बाद निक्का ने हँसते हुए कहा तो बाजी पलट चुकी थी। फिर ‘कालिया’ ने खूब तिलमिलाहट के बाद कैसे किया समर्पण, यह खुद में एक रोमांचक किस्सा है!…
‘प्रभात समाचार’ के संवाददाता देबू सरकार ने हास्यपूर्ण टोन में लिखा था।
लोग पढ़ रहे थे और हँस रहे थे। साथ ही हर होंठ पर निक्का जासूस की तारीफ के शब्द थे।
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
