शव और अंत्येष्टि संस्कार
shav aur antyeshti sanskar

Hindu Funeral Ritual: व्यक्ति का जन्म होगा कि नहीं यह निश्चित नहीं लेकिन जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। हमारे शास्त्रों में 16 प्रकार के संस्कार बताये गए हैं उन्हीं में से एक है अंत्येष्टि संस्कार। कहते हैं व्यक्ति का विधिवत संस्कार करने से उसकी आत्मा को शांति मिलती है। मृत्यु के उपरांत शव से जुड़ी कई क्रियाएं हैं जिनका हमें सही-सही ज्ञान नहीं होता। शव व अंत्येष्टिï संस्कार से जुड़े विभिन्न सवालों का जवाब दे रहे हैं पंडित श्री अशोक कुमार शर्मा जी।

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जब व्यक्ति जीवित होता है तब उसे दक्षिण में सर और पैर उत्तर में रख कर सोना चाहिए ठीक इसकी विपरीत दिशा घर में मृतक को रखने की है, सर उत्तर में होना चाहिए और पैर दक्षिण में। मृतक के शरीर को ड्राइंग रूम में रखना चाहिए या किसी भी रूम में रख सकते हैं ।

मृत्यु उपरांत मृतक के शरीर को कम से कम घर में 2 घंटे रखना चाहिए। परमात्मा के धाम पहुंचने में आत्मा को कम से कम 2 घंटे का समय लगता है। कई बार ऐसा भी होता है की सांस आने की सम्भावना भी होती है बहुत बार ऐसा सुनने में भी आता है की मृत्यु के बाद भी व्यक्ति जीवित हो गया, तो कम से कम 2 घंटे बाद ही आगे की क्रियाएं संपन्न करनी चाहिए।

ऐसा कोई नियम नहीं है ऐसा कुछ निर्धारित नहीं है की मृतक को सीढ़ी पर ही श्मशान तक ले कर जाना है। जिसको जैसा आसान लगा, जिसको जैसे चीज उपलब्ध हो गयी उसने वैसा किया कुछ लोग सीढ़ी से बांधते है, कुछ फट्टे का प्रयोग करते हैं। फिर आज तो बहुत सारे लोग एम्बुलेंस में भी मृतक को ले जाते हैं।

गंगाजल, तुलसी हम इनकी पूजा करते हैं। यह पूजनीय हैं तो ऐसा मानते हैं की यह सब करने से मृतक को परमात्मा के धाम पहुंचने में कोई कष्ट नहीं होगा। तुलसी इसलिए रखते हैं की परमात्मा के धाम पहुंचने पर वह सच ही बोले उसके मुख से झूठ न निकले। मुख में गंगाजल तब दिया जाता है जब शरीर को तैयार करके श्मशान ले जाने वाले हो तब गंगाजल मुख में देना चाहिए। जब तक मृतक को श्मशान ले जाने वाले न हों तब तक मृतक के मुख में कुछ नहीं गिरना चाहिए। और यह नियम महिला पुरुष दोनों के लिए समान है इसमें कोई भेद नहीं है। मृत्यु से पहले महिला और पुरुष है मृत्यु के बाद तो केवल शरीर है।

Hindu Funeral Ritual
Why is cotton put in the nose of the deceased?

मृतक की नाक में रुई इसलिए लगायी जाती है जिससे शरीर के भीतर हवा प्रवेश न करे और मृतक का शरीर फूले न।

घर से निकलते समय किसी दिशा का ध्यान नहीं दिया जाता पर मृतक के शरीर को घर से बाहर निकलते वक्त सर को आगे की तरफ रखना चाहिए, और पैर को घर की तरफ रखना चाहिए। श्मशान में दिशा बदल जाती है पैर आगे हो जाते हैं और सर पीछे हो जाता है। दिशा इसलिए बदल देते हैं की मृत्यु होने के बाद हमने उसकी जगह निर्धारित कर दी।

विधवा, सुहागन, लड़की, पुरुष, बच्चा ये सब जीवित के सम्बन्ध है, मृत्यु के उपरांत इनमें कोई भेद नहीं रह जाता सब एक ही रह जाते हैं। मृत्यु के बाद सबकी क्रियाएं समान है।

राम नाम सत्य इसलिए बोला जाता है क्योंकि जीवन में किसी व्यक्ति का जन्म होगा की नहीं यह निश्चित नहीं लेकिन जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। राम नाम सत्य है राम का नाम ही सत्य है, और जब सत्य बोलेंगे तभी गत्य है, तभी मुक्ति है तभी संसार में अच्छी प्रकार रह पाएंगे। घर से लेकर श्मशान पहुंचने तक राम नाम सत्य का उच्चारण करते हैं, यह इसलिए करते हैं ताकि इस बीच और कोई दूसरा विचार मन में आये ही नहीं।
‘राम नाम सत्य है,सत्य बोलो गत्य है हम सत्य बोलेंगे तभी गति संभव है, सत्य बोलेंगे तभी अच्छा हमारे साथ होगा लेकिन जीवित व्यक्ति इस बारे में नहीं सोचते।

कन्धा एक सवारी है पहले कोई गाड़ियां या कोई साधन तो था नहीं, लोगों का साधन था कन्धा तो उसे लाने के लिए कन्धा दिया जाता था। अब तो कार में भी रख के लोग ले आते हैं पहले साधन नहीं थे और कन्धा देना इसलिए शुभ माना जाता था की परमात्मा का नाम मुंह से निकलेगा और व्यक्ति को इस बात का ज्ञात होगा की मेरे भी मृत्यु कल इसी प्रकार होनी है।

श्मशान में पहुंचने के बाद विधिवत सांसारिक क्रियाओं को पूरा करने की तैयारी करनी चाहिए लेकिन इन संस्कारिक क्रियाओं को पूरा करने में किसी प्रकार की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। संस्कार विधिवत करना चाहिए उसमें किसी प्रकार की कोताही नहीं बरतनी चाहिए।
विधि सबकी एक जैसे ही है। सबने आने के बाद शरीर को श्मशान में रखना होता है उसके बाद लकड़ी इकठ्ठी करनी होती है, और उनका संस्कार करना होता है। आजकल सब चीज पहले से पहले मिल जाती है नियम यही है की मन शांत हो और परमात्मा में लगा हो श्मशान में आने के बाद राजा रंक सब सामान होते हैं उसके लिए भी वही मंत्र हैं जो गरीब के लिए हैं।

Why is a pitcher filled with water and rotated?
Why is a pitcher filled with water and rotated?

अंतिम संस्कार के समय एक छेद वाले घड़े में जल लेकर चिता पर रखे शव की परिक्रमा की जाती है और इसे पीछे की ओर पटककर फोड़ दिया जाता है। कहते हैं कि जीवन एक छेद वाले घड़े की तरह है जिसमें आयु रूपी पानी हर पल टपकता रहता है और अंत में सब कुछ छोड़कर जीवात्मा परमात्मा के धाम चली जाती है और घड़ा रूपी जीवन समाप्त हो जाता। हमारा शरीर घड़े में भरे पानी की भांति समाप्त होता जा रहा है। जिस प्रकार घड़े का जल समाप्त हो गया उसी प्रकार प्राणी की मृत्यु भी हो गयी, ऐसा विचार करते हुए हमें प्रभु का स्मरण करना चाहिए।
दूसरा कारण है हमारे शरीर को अगर अग्नि लग जाये तो उसे कष्ट होता है। तो उस प्राणी के लिए हम लोग जल दान करते हुए चलते हैं इस कर्म के दो ही आधार हैं जल और परमात्मा, जल से ही सारे कर्म होते हैं, बिना जल के व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता।

अगर स्त्री की मृत्यु हुई है तो पहला अधिकार उसके पति का है और अगर पुरुष की मृत्यु हुई है तो पहला अधिकार ज्येष्ठ पुत्र का है, अगर पुत्रों की संख्या ज्यादा है तो दूसरा अधिकार सबसे छोटे पुत्र का है, उसके बाद जो समय पर उपलब्ध हो वह व्यक्ति करे। अगर पुत्र नहीं है तो पुत्री भी अग्नि दे सकती है। इसके बाद भी अगर परिवार में कोई न हो तो पुत्री का पति यानी की दामाद भी अग्नि दे सकता है उसका अधिकार भी इस कर्म को करने का बनता है, लेकिन उस स्थिति में जब और कोई घर में करने वाला न हो।

जब शरीर अग्नि में प्रवाहित हो रहा होता है इस बीच लगातार प्रभु का स्मरण करना चाहिए। गायत्री मंत्र का पाठ, ‘ऊं नामय शिवाय या श्री राम श्री राम, जय जय राम, का मन में लगातार स्मरण करना चाहिए। इस बीच व्यर्थ की बातों के बारे में नहीं सोचना चाहिए। क्योंकि इस बीच परमात्मा ने हमें अपने साथ जुड़ने का मौका दिया।

इसका कारण बस इतना है की हमारा संबंध उस व्यक्ति के साथ यही तक था और समाज में हर जगह के अलग-अलग नियम है कोई नीम के पत्ते खाता है, कहीं तिनका तोड़ना, कहीं घास, कहीं तिल्ली मिल गयी ऐसे ही कश्मीर में अग्नि का फेरा लगा कर करते हैं लेकिन यह नियम वह व्यक्ति नहीं करता जो अग्नि देता वह नीम के पत्ते नहीं खाता अग्नि देने वाले का संबंध उस व्यक्ति से 10 दिन तक रहता है।

श्मशान में किसी का जाना वर्जित नहीं है, वर्जित बस इसलिए रखा गया है कि महिलायें, बच्चे कमजोर दिल के होते हैं। इस बीच कोई बेहोश हो जाए, किसी को कुछ हो जाये तो कर्म को करने में हमें दिक्कत आएगी, जिससे अंतिम संस्कार हम सहजता से नहीं कर पाएंगे। दूसरा कारण यह है की स्त्री कामनी का रूप है तो लोगों का ध्यान उनकी और आकर्षित न हो जाये अगर हमारा ध्यान उधर चला गया तो हम परमात्मा के ध्यान से हट जायेगा। मनाही नहीं है पहले भी जैसे महिलायें श्मशाम और घर के बीच का जो रास्ता होता था, जहां हम पिंड रखते थे या मटकी फोड़ते थे वहां तक साथ आती थी वहां से वापस हो जाती थी। श्मशान तक कोई नहीं आता था लेकिन अब लोगों के पास साधन भी हो गए रास्ते के बीच रखने की क्रिया भी समाप्त हो गयी तो श्मशान तक आ भी जाते हैं।

हिंदुस्तान है लोगों को यह आस रहती है की मरने के बाद भी आदमी शायद जीवित हो जाए। सांप के काटने या पानी में डूबने से अगर किसी की मृत्यु होती है तो हम उसे प्राकृतिक मृत्यु नहीं मानते इसे अकाल मृत्यु मानते हैं। लोग जल में विसर्जन इसलिए कर देते हैं की शायद कोई ऐसा मिल जाए जो शव को ठीक कर दे।

जिस व्यक्ति का हम अंतिम संस्कार करते हैं उस व्यक्ति को कोई रोग हो सकता है तो ऐसे में जो व्यक्ति अंतिम संस्कार में शामिल होने आये हैं उनको किसी प्रकार की तकलीफ न हो उसके लिए घर पर आकर जल का चीटा मारते हैं, स्नान करते हैं शरीर की शुद्धि करते हैं। इसलिए हमारे ऋषि मुनियों ने ये नियम बना दिया कि शव दाह के बाद शरीर की शुद्धि करना जरूरी है।

सूर्योदय के बाद कोई समय सीमा नहीं है सूर्यास्त होने से पहले आप कभी भी अंतिम दाह कर सकते हो। हमारे ऋषि मुनियों ने प्रत्येक चीज पूरे नियम से बनायी थी। अंतिम संस्कार की पूरी क्रिया को सही तरह से करने में कम से कम 5 घंटे का समय लगता है। श्मशान में पहुंचने पर मटके की क्रिया, पिंड की क्रिया, और अन्य क्रियाओं में एक डेढ़ घंटा लग जाता है, फिर अग्नि देते-देते दो घंटा लग जाता है। उसके बाद अग्नि संस्कार में भी समय लग जाता है। यदि कोई रोग ग्रस्त शरीर है तो उसको जलने में अधिक समय लगता है। और जितने भी मांसाहारी जीव हैं वह रात में ही सक्रिय होते हैं। और परमात्मा ने रात बनायी ही विश्राम करने के लिए है। रात को हमारे परमात्मा भी सोते हैं। इसलिए सूर्य अस्त होने के बाद अंतिम संस्कार करना ही नहीं चाहिए।

मृतक के शरीर के चारों ओर हल्दी लगा देने से चीटियां या अन्य कीड़े मकोड़े भी नहीं आते। आजकल वैसे भी शरीर को कोई नुकसान न पहुंचे उसके लिए कई सारी सुविधाएं मौजूद हैं जैसे फ्रीजर है, मोर्चरी है, इसमें रख दो कई साधन हैं। पहले के समय में लोग शरीर के पास बारी-बारी से बैठते थे और उसका ध्यान रखते थे।

बच्चे का जब तक दांत न निकल आये, वह भोजन ग्रहण न करने लगे तभी तक है, उसका अग्नि द्वारा अंतिम संस्कार नहीं करते। उसके बाद अग्नि संस्कार कर सकते हैं, लेकिन जो पूरी क्रिया है उसमें वर्णों के अनुसार बदलाव देखने को मिलता है जैसे ब्राह्मïणों में 12 साल बाद पूरी क्रिया की जाती है। वैश्यों में 18 साल, क्षत्रियों में 21 साल, शुद्रों में 25 साल की आयु रखी गई है।

जिस बच्चे का जन्म अभी कुछ ही समय पहले हुआ हो उसको अग्नि देने में कष्ट हो सकता है। उस कष्ट से बचने के लिए उसे जल में बहा दिया जाता है। अग्नि संस्कार की प्रक्रिया थोड़ी लम्बी होती है। बच्चे का सहन न कर पाएं।

यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी हो और हमें उसका शरीर न मिला हो जैसे कोई पानी में डूब गया हो, बम से फट गया, कोई किसी किसी त्रासदी में मर गया जिसके उम्मीद न हो वापस आने की उन लोगों का पुतला दाह संस्कार किया जाता है। उसकी मृत्यु हो गयी तो उसकी गति कैसे होगी अंतिम संस्कार तो हुआ नहीं, उसके लिए पुतला दाह संस्कार करते हैं।