1- कोई दूसरा आपके लिए नहीं खड़ा होगा – जीनिआ मास्टर
(जीनिया हॉस्पिटैलिटी सोलूशन्स एलएलपी की निर्माता और सीईओ)
जिनिआ एक उद्यमी और बिजनेसमैन परिवार से हैं। जीनिया हॉस्पिटैलिटी द्वारा शुरू की गई एक सर्विस- यामास के बारे में जिनिआ कहती हैं कि यह एक ऐसीजगह है, जहां लोग सपनों को साकार कर सकते हैं। कांफ्रेंस का सेटअप हो या पॉप रेस्टोरेंट, यामास पर सब मुमकिन है।
काफी संघर्ष करना पड़ा :- जिनिआ कहती हैं, ऐसी इंडस्ट्री में जहां हर कोई अपने आपको इवेंट प्लानर ही समझता है, लोग मुझे गंभीरता से लें, इसके लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। वेंडर्स आपको नहीं पूछेंगे, क्लाइंट्स आपको बिजनेस नहीं देंगे क्योंकि आप बाजार में बिल्कुल नए हैं। पिताजी और भाई के नाम का इस्तेमाल भी विकल्प नहीं था।
चुनौती था पापा की बेटी होना :- जब पहली बार मैंने अपना बिजनेस शुरू किया तो मेरे परिवार को इसकी जानकारी नहीं थी। इसलिए नहीं कि वे इसका विरोध करेंगे, बल्कि मैं उनको बताने से पहले सुनिश्चित होना चाहती थी, क्योंकि यह बहुत बड़ा कदम था। क्योंकि मैं अपने पापा की बेटी थी, मेरी काबिलियत के बूते ग्राहक मिलना बड़ा ही चुनौतीपूर्ण था।
जिंदगी में झांकना ही सफलता का मंत्र :- अपनी जिंदगी में झांकिए, क्योंकि कोई दूसरा यह आपके लिए नहीं करेगा। कर्मचारियों का ख्याल रखिए, वे ही आपके संगठन की रीढ़ हैं। यदि अपने आपको कम्फर्ट जोन से बाहर नहीं निकाला तो आप परिपक्व नहीं हैं। आज की ‘सबसे रिस्की चीज है ‘सेफ होना। मुस्कुराइये,गहरी सांस लीजिए और धीरे-धीरे आगे बढि़ए…
जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि :- जिनिआ कहती हैं कि अगर उपलब्धि कीबात करें तो ग्लिऑन इंस्टीट्यूट ऑफ हायर एजुकेशन से मेरिट और ऑनर्स के साथ ग्रेजुएट होना। पहले कुछ ही वर्षों में फूड चेन से लेकर रेस्टोरेंट मैनेजर तक बनना। खुद की इवेंट कंपनी शुरू करना। ‘यामास-द एक्सपेरिमेंटल स्पेस शुरू करना ही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है।
2- ईमानदारी और मेहनत बहुत जरूरी – विनीता
(टाटा पावर व विरमानी ट्रस्ट की सीनियर कोर्डिनेटर )

विनीता को बाहर जाना आना पसंद नहीं था, पर जब से वो टाटा पावर व विरमानी ट्रस्ट से जुड़ी, उनके अंदर बहुत बदलाव आए। जब पहचान बनने लगी तो उनका हौंसला बढ़ा और उन्होंने बहुत सी उपलब्धियां हासिल की। पहले वो सेंटर इंचार्ज थी फिर कोर्डिनेटर बनी और अब सीनियर कोर्डिनेटर हैं।
संघर्षों का सामना जिम्मेदारी के साथ :- अनीता कहती हैं, मेरी जिम्मेदारियां तो बढ़ी, लेकिन अच्छा लगता है। बहुत सी मुश्किलें आई लेकिन फिर भी मैंने अपना काम पूरी जिम्मेदारी के साथ किया। घर की पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं थी, उसके बावजूद मैंने पूरी मेहनत और ईमानदारी से कार्य किया। टाटा पावर विरमानी ट्रस्ट से अपने परिवार की मदद की तथा टाटा पावर स्कॉलरशिप से अपनी पढ़ाई पूरी की!
हर पल चुनौतियों से भरा :- जब मुझको कोर्डिनेटर बनाया गया तो मैं डर गई, कि कैसे कर पाऊंगी क्योंकि कोर्डिनेटर बनकर मुझको 12 या 14 सेंटर तथा 350 से 400 महिलाएं देखनी थीं। अलग अलग क्षेत्र थे, घर से दूर। शुरु में मुश्किल हुई, लेकिन जब मैंने सभी से बात की तो सब ठीक हो गया।
मेहनत और ईमानदारी सफलता का मंत्र :- सफलता का मंत्र क्या है इस बारे में अनीता कहती हैं कि मेरी सफलता की कुंजी है कि मुझको कोई भी काम मिलता मैं उसको पूरी मेहनत तथा ईमानदारी के साथ करती थी चाहे वो कैसा भी काम क्यों ना हो मन लगाकर करती हूं।
जीवन की उपलब्धियां :- अनीता कहती हैं कि 28 फरवरी 2015 बेस्ट कोर्डिनेटर अवार्ड प्राप्ति 7 फरवरी 2016 बेस्ट सीनियर कोर्डिनेटर मान्यता प्राप्ति मेरी उपलब्धियों में शामिल है।
3 – माता-पिता की मेहनत को सफल करना है – अनीता भारती सिंह
(वाइस प्रिंसिपल, गवर्नमेंट स्कूल, दलित राइटर एंड सोशल एक्टिविस्ट, न्यू दिल्ली)

एक मां, कामकाजी महिला, लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता और एक शिक्षाविद के तौर पर अनीता भारती सिंह इस सबके साथ-साथ कई सामाजिक और साहित्यिक मंचों से जुड़ी हैं। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों का संपादन किया है।उनकी स्त्री विमर्श और दलित स्त्री विमर्श पर अभी तक कई पुस्तकें आ चुकी हैं। वो पिछले कई वर्षों से दलित स्त्रीवाद पर गंभीरता से काम कर रही हैं।
संघर्षों से लड़ती रही :- अनीता का जन्म एक गरीब दलित परिवार में हुआ। सात भाई-बहनों में वो पांचवीं हैं। वो कहती हैं, हम भाई-बहनों को हमारे माता-पिता ने बड़े कष्ट सहकर पढ़ाया लिखाया। पिता टेलर थे और मां घर में लिफाफे बनाती थी। हमारी आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि कभी-कभी भूखे भी रहना पड़ता था। स्कूल जाने के लिए न वर्दी होती थी न किताबें। एम.ए. दाखिले के समय भी फीस न होने के कारण पढ़ाई छूटते-छूटते बची। इन हालात में भी आत्मविश्वास में कमी नहीं आई, और यही सोचा कि जिंदगी में कुछ करना है।
चुनौतियों से जीता सफर :- अनीता कहती हैं, हाशिये के समाज की महिला होने के नाते पहली चुनौती तो यही है कि हमेशा हर दिन अपनी योग्यता प्रमाणित करनी होती है। एक सामान्य वर्ग की महिला को जो इज्जत खुद मिल जाती है वह हमें कमानी पड़ती है। हाशिये की औरतों के लिए पूर्वाग्रह ज्यादा है। आप जो काम अपने बलबूते और आत्मविश्वास से बिना किसी सहारा, चापलूसी किए करते हैं, तब आपके सामने बाधाएं खड़ी की जाती हैं ताकि आप टूटकर अपना वजूद खो दें और खुद पर भरोसा करना छोड़ दें।
काम में डूब जाना ही सफलता का मंत्र है :- अनीता कहती हैं, मैं अपने जीवन में प्रतिबद्धता, ईमानदारी, सच्चाई, लगन और मेहनत को बल देती हूं। जीवन में जो कुछ मैंने हासिल किया है, या कर रही हूं, वह इन्हीं सिद्धांतों पर चलने से मिला है। जो काम एक बार हाथ में लेती हूं, फिर नहीं देखती कि उसमें मुझे कितनी मेहनत और ऊर्जा खर्च करनी पड़ रही है। उस काम में डूबकर उसे पूरी ईमानदारी और शिद्धत से पूरा करती हूं।
हर कदम पर मिली उपलब्धि :- अनीता को अपने उत्कृष्ट शैक्षिक कार्यों के लिए सरकार द्वारा राज्य पुरस्कार और इंदिरा पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। 2004 में उन्होंने बार्सिलोना में हुए बच्चों के अंतर्राष्ट्रीय पीस कैम्प में दिल्ली स्लम के छह बच्चों के साथ भाग लिया। 2014 में उनकी पुस्तक समकालीन नारीवाद और दलित स्त्री का प्रतिरोध बीबीसी हिन्दी द्वारा आयोजित सर्वे में आलोचना की सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों में शुमार की गई। सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि पिछले कुछ समय से दलित स्त्रीवाद को स्थापित करने का जो कार्य वे कर रही हैं, वह चर्चा में है और उस पर गंभीरता से काम हो रहा है।
