हम किसी से कम नहीं

निशक्त बच्चों के लिए सशक्त ‘स्पर्श

कुछ बच्चे अपनी शारीरिक अक्षमताओं की वजह से जिंदगी दर्द में बिता देते हैं। बच्चों के इसी दर्द को समझा सुरभि वर्मा ने और दिया ममता का स्पर्श, जिसकी छांव में उन्हें मिली उम्मीद की किरण।
सुरभि वर्मा
(डायरेक्टर- स्पर्श एनजीओ)

कैसे बढ़े कदम
सुरभि ने स्नातक में एक ऐसा विषय देखा जिसमें बच्चों की देखभाल के बारे में विस्तार से बताया गया था। ऐसे में उन्हें गूंगे- बहरे बच्चों पर और उनकी दोस्त को ऑटिज्म पर प्रोजेक्ट मिला था। ऑटिज्म पर सही और पूरी जानकारी नहीं मिल पा रही थी, इसीलिए उन्होंने ठान लिया कि वे ऑटिज्म डिसलेक्सिया के लिए काम करेंगी।

स्पेशल बच्चों के लिए खास पढ़ाई
सुरभि ने ऑटिज्म के ट्रीटमेंट और एजुकेशन के लिए ट्रेनिंग भी यूनाइटेड किंगडम से ली। उन्हें कनाडा के हेनेन सेंटर से ‘लॄनग लैंग्वेज और लविंग आईटी का सर्टिफिकेट मिला।

उपलब्धि 

सुरभि मानती हैं कि यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है कि उनके पढ़ाए बच्चे आम स्कूल का हिस्सा बन आत्मनिर्भर बनते हैं। सुरभि ने 18 महीने से 2 साल के बच्चों के लिए अर्ली इंटरवेंशन प्रोग्राम किया जो बहुत सफल रहा है।

कैसे करती हैं

काम कठिन था रेगुलर स्कूल को यह समझाना कि स्पेशल बच्चे भी उनके स्कूल में पढ़ सकते हैं। उसके बाद स्पेशल बच्चे रेगुलर क्लास जाएं इसे भी मैनेज करना। उनकी कांउसलिंग करना, वर्कशॉप करवाना। पैरेंट्स कांउसलिंग के बाद पैरेंट्स को बच्चों की रिपोर्ट भेजना।

सफलता के मूल मंत्र
अपनी जिंदगी का फैसला खुद लें। 

अपनी मेहनत करते रहें।

दिल की सुनें।

धरोहर संभालती लेखिका

धर्मेंद्र कंवर


(पुरस्कृत ट्रेवल राइटर)
पर्यटन में लेखन को एक नया आयाम दिया है धर्मेंद्र कंवर ने। साथ ही जयपुर की सांस्कृतिक विरासत को भी अपना अच्छा योगदान दे रही हैं। धर्मेंद्र एक ऐसी प्रतिभा बनकर उभरी हैं जिनके लेखन को राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय मंच भी मिला है।

सफल ट्रेवल राइटर
राजस्थान सरकार की तरफ से धर्मंद्र कंवर को बेस्ट ट्रेवल राइटर का अवार्ड मिल चुका है। लेखन में कोई बैकग्राउंड न होते हुए भी उन्होंने ग्रेजुएशन से लेखन की शुरुआत कर ली थी। उन्होंने टेलीविजन के लिए भी कई डॉक्यूमेंट्री स्क्रिह्रश्वट लिखीं। उन्होंने करीब 26 किताबें राजस्थान पर लिखीं जिसमें दो जयपुर की राजमाता गायत्री देवी की बायोग्राफी हैं।

राजस्थान टूरिज्म के लिए आई आगे
धर्मेंद्र कंवर को पर्यटन और विरासत प्रबंधन से संबंधित कई सलाहकारी समितियों में कार्य करने का अनुभव रहा है। उन्होंने राजस्थान पर्यटन के लिए कई ब्रॉशर्स और पुस्तकें तैयार की जिसमें कई पुरस्कृत भी हुई हैं।

 उपलब्धि
ट्रेवल और टूरिज्म के क्षेत्र में बेहतरीन योगदान के लिए धर्मेंद्र कंवर को महाराजा विशन सिंह अवार्ड से सम्मानित किया गया। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज की गर्वनिंग काउंसिल में निर्वाचित धर्मेंद्र पिछले 30 सालों से इंटेक से जुड़ी हैं। उनकी उपलब्धियों को देखते हुए इन्टेक जयपुर के नाहरगढ़, महारानी की छतरी, आरामबाग, केसर क्यारी, जंतर मंतर और अन्य प्रमुख स्मारकों के अतिरिक्त चौकड़ी मोदीखाना हेरिटेज वॉक को पुनस्र्थापित करने में सक्षम हो सका।

सफलता के मूल मंत्र
अपने पसंदीदा क्षेत्र पर ध्यान दें। उम्मीद ना छोड़ें। शॉर्टकट न लें और न तुरंत परिणाम की उम्मीद रखें। अगर आपमें इमानदारी है तो सफलता दूर नहीं।

दमदार जुनून
स्नेहा शर्मा
(फॉर्मूला रेसर)

16 साल की उम्र में अपने सपने को पूरा करने की शिद्दत बहुत ही कम लोगों में
देखी जाती है और वो भी तब जब करियर ही कुछ ऐसा हो जिसकी कल्पना कोई
आसानी से न कर पाए। फॉर्मूला रेसर नेहा शर्मा ने दमदार जुनून के साथ लगाई ऐसी रेस कि वो बन गई इंडियाज फास्टैस्ट लेडी।

शानदार सफर
स्नेहा शर्मा किशोरावस्था में अपने सपने को पूरा करने का जज्बा लिए रेसिंग ट्रैक पर निकल पड़ी। इससे पहले उन्होंने एक फ्लाइंग पायलट करियर बनाने के लिए मोटर स्पोर्ट से कुछ वक्त के लिए किनारा कर लिया। फुल टाइम पाइलट का काम कर रही स्नेहा ने 2014 में रेसिंग करियर में तगड़ी वापसी की। फ्लाइंग कोर्स के दौरान नेशनल टीम से उन्हें पहला ब्रेक मिला।

हुआ स्पीड से प्यार
हॉबी के तौर पर रेसिंग चुनने वाली स्नेहा को कब ट्रैक्स, कार स्पीड और कंट्रोल से
प्यार हो गया, पता भी न चला। उन्होंने इसके कोई कोर्स न होने की वजह से खुद ही प्रैक्टिस शुरू की। आज स्नेहा का आत्मविश्वास देखने लायक होता है।

उपलब्धि 

स्नेहा ने मर्सिडीज़ यंग स्टार ड्राइवर प्रोग्राम में इंडियाज़ फास्टैस्ट लेडी का खिताब लिया। रेस में 6 बार विजेता रहीं और कॄटग में 9 बार रनरअप। 2009 की जेके टायर नेशनल काॄटग चैम्पियनशिप में अपनी पहली फॉर्मूला कार रेस में फोर स्ट्रोक स्कोर हासिल किया। वह एमएआई नेशनल काॄटग चैम्पियनशिप के केटीसी के फाइनल राउंड में क्वालिफाई करने वाली अकेली महिला बनीं। 11वें जेके टायर एफएमसी काॄटग चैम्पियनशिप 2014 में उन्होंने 40 सेकेंड का लैप टाइम प्राप्त किया। इसके अलावा 2015 फोक्सवैगन वैंटो कप में एक बर्थ प्राप्त किया।

चुनौतियां
ऐसे क्षेत्र में महिलाओं की कम संख्या एक बड़ी चुनौती को दर्शाता है। रेसिंग को
बेहद चुनौतीपूर्ण करियर माने जाने की वजह से स्नेहा के माता-पिता ने उनका
समर्थन नहीं किया जिसकी वजह से स्नेहा कई बार मुश्किलों में पड़ी।

सफलता के मूल मंत्र
लैंगिक भेदभाव से दूर रहें। समय का सही सदुपयोग करें। खुद पर विश्वास रखें।
अपने सपने को पूरा करने के लिए दृढ़ रहें। 
प्रस्तुति : विजया मिश्रा