चरित्रहीन—गृहलक्ष्मी की कहानियां: Charitraheen Story
Charitraheen

Charitraheen Story: बस सोसाइटी  के गेट पर आ कर खड़ी हो गयी थी । सोसाइटी के सभी बुजुर्ग अत्यंत उत्साहित थे ।पूजा आज सोसाइटी के सभी बड़े -बुजुर्गों को अक्षरधाम मंदिर दिखाने ले जाने वाली थी ।वैसे तो पूजा को इस सोसाइटी में आए अभी कुछ ही महीने हुए थे , किंतु इन कुछ ही महीनों में वो सब की प्रिय बन गयी थी ।वो सदा किसी की भी मदद करने केलिए तत्पर रहती थी । चाहे वो बच्चों की पढ़ाई -लिखाई हो , खेल -कूद हो ,किसी की रसोई में मदद या फिर किसी की बीमारी में सेवा करना ..वो निस्वार्थ  भाव से सदा तत्पर रहती ।ऐसा करने में उसे आनंद आता ।अपने इसी निस्वार्थ मिलनसार व्यवहार से उसने अत्यंत कम समय में सबके हृदय में अपनी जगह बना ली थी ।सोसाइटी की औरतों से भी उसकी अच्छी जान -पहचान हो गयी थी । वे सभी पूजा के सामने तो उसके साथ मिलनसार होने का निष्फल प्रयास करती किंतु उसके पीठ पीछे वो उनके लिए एक कौतूहल भरा प्रश्न -चिन्ह बन जाती ।उनकी जिज्ञासा का विषय था उसका निजी जीवन , उसका अकेले रहना और उसका लाल रंग अर्थात् उसकी माँग में भरा लाल रंग ,माथे पर लाल बड़ी सी बिंदिया और उसके हाथों में लाल रंग की चूड़ियाँ ।वे अक्सर अपने इन्हीं प्रश्नों  उत्तर तलाशने का प्रयास करती ।पूजा इन औरतों की जिज्ञासा ,उनका उसे टेढ़ी नज़रों से देखना और उसके विषय में बातें करना …से भली -भाँति परिचित थी , किंतु वो हमेशा इन सब चीज़ों को नज़रंदाज़ करके ,अपने जीवन में मस्त रहती ।बुजुर्गों के लिए भी प्रोग्राम उसने  की सर्व-सहमति से बनाया था ।सभी को इस बात की ख़ुशी थी कि घर के सभी बुजुर्ग घूम कर आ

जाएँगे । उसने सभी बुजुर्गों की सुविधानुसार बस में व्यवस्था कर ली थी । नियत समय तक  धीरे -धीरे सभी बुजुर्ग बस में बैठ चुके थे , बस उसके सामने के फ़्लैट वाले अवतार अंकल अभी नहीं आए थे ।” “ अवतार अंकल को तो अक्षरधाम घूमने की सबसे ज़्यादा इच्छा थी और सबसे जयदा वे ही उत्साहित थे …फिर अभी तक आए क्यूँ नहीं …उनकी तबियत तो ठीक है ना ..चलो मैं ही उन्हें बुला लाती 

हूँ “ मन ही मन सोचती हुई वो उनके घर उन्हें 

बुलाने चली गयी ।

“ नमस्ते भाभी ! वो अवतार अंकल की तबियत ठीक है “ उसने विनम्रता पूर्वक उनकी बहू से पूछा 

“ हाँ ठीक है …क्यूँ …तुम क्यूँ पूछ रही हो ?” उनकी बहू ने अत्यंत बेरुख़ी से उत्तर दिया 

“ वो दरअसल अंकल अभी तक आए नहीं थे ना और अक्षरधाम जाने के लिए सिर्फ़ उनका इंतज़ार हो रहा था इसलिए ..”

“ बाबू जी तुम्हारे साथ नहीं जाएँगे “

“ क्यूँ भाभी ..क्या हुआ ..।आप बेफ़िक्र रहिये भाभी मैं उनका पूरा ध्यान रखूँगी ।हमारे साथ हमारी पूरी टीम जाती है जिसमें डाक्टर्ज़ भी 

होते हैं । सभी के खाने -पीने का पूरा ध्यान रखा जाता है “

“ बस कह दिया ना कि वे तुम्हारे साथ नहीं 

जाएँगे क्यूँकि …”

“ क्यूँ भाभी …फिर भी बताइए भाभी आख़िर बात क्या है “ उसने बीच में टोकते हुए पूछा 

“ देखो पूजा . …हमहें इसी समाज में रहना है और हम नहीं चाहते कि की भविष्य में बातें बने …”

“ आप कहना क्या चाहती हैं भाभी “

“ देखो पूजा ..एक तो तुम अकेले रहती हो और ..”

“ क्यूँ भाभी अकेले रहना अपराध है क्या ..”

“ अपराध अकेले रहने में नही है पूजा , बल्कि तुम्हारी तरह अकेले रहने में है । तुम्हारा ये लाल रंग का श्रृंगार …. आज तक तुम्हारे पति को , परिवार को देखा नहीं और तुम …”

“ माफ़ कीजिएगा भाभी ।आप मेरे चरित्र पर ऊँगली उठा रही हैं ।पति और परिवार का साथ होना या ना होना किसी के चरित्र को परिभाषित नहीं करता । और लाल रंग तो प्रेम का प्रतीक होता है ।ये मेरे और मेरे पति के प्यार का लाल रंग है , मेरा सुरक्षा कवच है ।भाभी आज मैं अपने विषय में आपको बता देती हूँ …शायद आपकी भी जिज्ञासा पर विराम लग जाए। मेरे पति आर्मी में ऑफ़िसर थे ।शादी के कुछ बाद वो सीमा पर दुश्मनो से लड़ने गए थे और लड़ते -लड़ते अपने देश के लिए शहीद हो गए थे ।माँ -पापा ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए और ससुराल वालों ने ….ससुराल वालों ने मुझे बाँझ और मनहूस कह कर सदा के लिए ससुराल से विदा कर दिया ।मेरे पति सदेव अपने देश की सेवा के लिए तत्पर रहते थे और ये देश प्रेम और सेवाभाव मैंने उन्हीं से सीखा था ।भाभी मैं सीमा पर जाकर लड़ तो नहीं सकती किंतु दूसरों की मदद करके और बुजुर्गों के साथ रहकर  , कुछ प्रकार की सेवा तो कर सकती हूँ ।जितना मुझसे संभव हो सकता है मैं देश के लिए अपना योगदान देती हूँ ।ज़रिया चाहे कोई भी हो पर मेरे भाव सदा सच्चे हैं ।और रहा प्रश्न इस लाल रंग का ….भाभी समाज में एक अकेली औरत का रहना बहुत मुश्किल है । आप भी तो एक औरत है …ये तो आप भी भली भाँति जानती है की अकेली औरत लोगों के लिए भोग करने का पात्र बन जाती है ।सभी उसे चीरहरण की निगाहों से देखते हैं ।ऐसे में ये लाल रंग मेरी सुरक्षा करता है ,अभी भी मेरे विवाहित होने का प्रमाण बन जाता है जिस कारण मैं सुरक्षित रहती हूँ । मुझे गर्व है भाभी कि मैं एक शहीद की विधवा हूँ । अभी भी आपको मैं चरित्रहीन लगती हूँ तो आप अवतार अंकल को ……..” कहते कहते उसकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी । जैसे ही वो वापिस जाने लगी 

“ कहाँ जा रही हो पूजा …..” की आवाज़ ने उसके कदम थाम लिए 

“ पूजा अकेले ही जाओगी …अपने अवतार अंकल को अपने साथ नहीं लेकर जाओगी ।” कह कर दोनों मुस्कुराने लगी ।

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