कन्या पूजन नहीं कर पा रहे हैं तो अपनाएं ये आसान से उपाय, प्रसन्न होंगी माता: Kanya Pujan Upay
Kanya Pujan Upay 2024

Overview: हिमालय पर्वत छोड़कर 10 दिनों के लिए पीहर आती हैं मां दुर्गा

ऐसी मान्यताएं हैं कि हर साल माता दुर्गा नवरात्रि में 10 दिनों के लिए हिमालय छोड़कर अपने पीहर यानी बंगाल आती हैं। जैसे ही दुर्गा पूजा खत्म होती है माता वापिस अपने घर यानी हिमायल की तरफ लौट जाती हैं। दुर्गा पूजा की समाप्ति के दिन अंत में भक्त माता की मूर्ति को विदाई देते हैं और उन्हें जल में प्रवाहित कर देते हैं। ऐसा माना जाता है कि माता इस तरह से वापिस अपने घर लौट जाएंगी। 

Durga Puja Navratri: नवरात्रि के 9 दिन माता दुर्गा के 9 अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है।  दुर्गा पूजा की ये खासियत है कि इस त्यौहार में हर वर्ग, जाति और लिंग के लोग मिलकर खुशियां मनाते हैं। इस त्योहार की असली धूम बंगाल में नजर आती है। असल में मान्यता है कि बंगाल में मां दुर्गा का पीहर है। शायद यही कारण है कि नवरात्रि में बंगाल में एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है।

ऐसी मान्यताएं हैं कि हर साल माता दुर्गा नवरात्रि में 10 दिनों के लिए हिमालय छोड़कर अपने पीहर यानी बंगाल आती हैं। जैसे ही दुर्गा पूजा खत्म होती है माता वापिस अपने घर यानी हिमायल की तरफ लौट जाती हैं। दुर्गा पूजा की समाप्ति के दिन अंत में भक्त माता की मूर्ति को विदाई देते हैं और उन्हें जल में प्रवाहित कर देते हैं। ऐसा माना जाता है कि माता इस तरह से वापिस अपने घर लौट जाएंगी। 

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बंगाल में दुर्गा पूजा का अनोखा तरीका

पश्चिम बंगाल में सबसे भव्य तरीके से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है। लोग अक्सर आश्चर्य करते हैं कि बंगाली लोग नवरात्रि के दौरान सबसे बड़े पैमाने पर दुर्गा की पूजा क्यों करते हैं। साथ ही लोगों के मन में ये सवाल भी आता है कि आखिर क्यों नवरात्रि के दौरान माता दुर्गा की पूजा करते हुए भी बंगाली लोग  मांसाहारी भोजन का भरपूर सेवन करते हैं। हिंदू पुराणों, परंपराओं और इतिहास के बारे में राष्ट्रीय स्तर पर सबसे प्रतिष्ठित लोगों में से एक भादुड़ी के अनुसार, चूंकि बंगाल हमेशा से नदी-तटीय प्रांत रहा है, इसलिए मछली पर आहार निर्भरता स्वाभाविक थी। बंगाली हमेशा से मछली और मांस खाते आए हैं, यही वजह है कि वे अपने देवी-देवताओं को वही व्यंजन चढ़ाते हैं। जिस तरह से एक मेहमान को हम सबसे अच्छा भोजन परोसते हैं, उसी तरह से बंगाली लोग माता दुर्गा के आने पर उन्हें बलि अर्पित करते हैं और फिर उसी बलि को प्रसाद के रूप में ग्रहण भी करते हैं। 

पीहर आती हैं माता दुर्गा

बंगाली हिंदुओं की मान्यता के अनुसार, माता दुर्गा का पीहर बंगाल है। यही कारण है कि बंगाली बड़ी ही आतुरता के साथ इस त्योहार का इंतजार करते हैं। मान्यताएं कहती हैं कि माता दुर्गा बंगाल की बेटी हैं। माता रानी विजयदशमी तक 10 दिनों के लिए केवल अपने परिवार के साथ रहती हैं। इन खास दिनों के लिए देवी माता हिमालय पर्वत को छोड़कर अपने पीहर में आती हैं। इन दौरान माता को प्रसन्न करने के लिए भक्त हर तरह से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। उनके लिए उनकी पसंद का भोग लगाने से लेकर, नृत्य, पूजा की विधि और सजावट तक का खास ख्याल रखते हैं। बंगाली इस दौरान देवी की सेवा में किसी भी तरह की कमी नहीं होने देते। हालांकि अब धीरे-धीरे ये त्योहार बंगाल के अलावा भारत के कई अन्य हिस्सो में भी मनाया जाने लगा है। 

क्या है नवरात्रि और मां दुर्गा की कहानी

ऐसा माना जाता है कि माता दुर्गा ने इन्ही दिनों में महिषासुर का वध किया था। यही कारण है कि कोलकाता में नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी स्वरुप को पूजा जाता है। दुर्गा पूजा पंडालों में माता की ऐसी ही प्रतिमा भी लगाई जाती है, जिसमें वो महिषासुर का वध करती नजर आती हैं। देवी महिषासुर पर त्रिशूल से वार करते हुए अपने शेर के साथ नजर आती हैं। 

खास तरीके से दी जाती है मां दुर्गा को विदाई

इसके अलावा माता की विदाई को भी बहुत ही खास ढंग से पूरा किया जाता है। नवरात्रि की नवमी तिथि के दिन हवन पूजन के बाद ही माता को विदाई दी जाती है। वहीं हिंदू मान्यताओं के अनुसार कभी भी माता रानी को गुरुवार के दिन विदा नहीं किया जाता। देवी दुर्गा को शिव की पत्नी होने कारण देवी स्वरूप हैं, लेकिन हिमायल में रहने के कारण वो पृथ्वीवासियों के लिए बेटी का स्वरूप भी हैं। भक्त माता रानी को अपनी बेटी की तरह पूजते हैं। ऐसे में उनकी अगवानी और विदाई दोनों ही बेटी की तरह किया जाता है। जब उनकी विदाई होती है, तो उन्हें अपने ससुराल जाने से पहले खोइंछा भी दिया जाता है। जिसमें उन्हें श्रृंगार सामग्री, वस्त्र, मिठाई, चावल, जीरा, धन बांधकर दिया जाता है। 

गुरुवार को क्यों नहीं दी जाती माता को विदाई

मान्यताओं के अनुसार, कभी भी बेटी को गुरुवार के दिन विदा नहीं किया जाता। इसी तरह से माता को भी कभी गुरुवार के दिन विदा करके विसर्जित नहीं किया जाता। इसके पीछे भी एक पौराणिक मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि गुरुवार के दिन बेटी को विदा करने से पीहर वाले गरीब हो जाते हैं। इससे मायके वालों को कई तरह की परेशानियां उठानी पड़ती हैं। गुरुवार का दिन खाली दिन माना जाता है। ऐसे में लक्ष्मी स्वरूप बेटियों को गुरुवार के दिन घर से कभी भी विदा नहीं किया जाता। इससे बेटी के साथ-साथ घर की खुशहाली भी चली जाती है। यही कारण है कि माता दुर्गा को भी गुरुवार के दिन विदाई नहीं दी जाती है। यदि किसी भी साल नवमी के दिन गुरुवार पड़ता है, तो उसके अगले दिन उनकी विदाई की जाती है। 

बोधोन क्रिया के बाद होती है विदाई

बंगाल में माता की विदाई से जुड़े कई रीति-रिवाज हैं, जो आज भी माने जाते हैं। इसी तरह से बोधोन नाम का एक रिवाज है। जिसमें सबसे पहले बेल के पेड़ के नीचे बैठकर बोधोन क्रिया का आयोजन किया जाता है। इस क्रिया में भगवान शिव से माता रानी को वापिस से मृत्युलोक ले जाने की अनुमति मांगी जाती है। ये प्रथा उसी तरह से है, जिस तरह से बेटी को ससुराल भेजने से पहले जमाई से आज्ञा ली जाती है। उसी तरह से भोलेनाथ से भी माता रानी को वापिस ससुराल ले जाने की आज्ञा मांगी जाती है। इस क्रिया के बाद ही माता रानी की प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। इसके बाद माता का भव्य श्रृंगार किया जाता है। इस श्रृंगार के साथ उन्हें धुनुची नाच करके प्रसन्न किया जाता है। माता की विदाई में धुनुची नाच का खास महत्व है। कहा जाता है इससे वातावरण में मौजूद नकारात्मकता दूर होती है। ये सारी क्रिया पूर्ण होने पर माता रानी फिर से महादेव के पास हिमालय में लौट जाती हैं।

मेरा नाम निक्की कुमारी है। मैं पिछले 2 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम कर रही हूं। मैंने अब तक कई बड़े मीडिया हाउस के साथ फ्रीलांसर के तौर पर काम किया है। मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की है। मुझे...