मंसाराम दो दिन गहरी चिन्ता में डूबा रहा बार-बार अपनी माता की याद आती, न खाना अच्छा लगता, न पढ़ने ही में जी लगता। उसकी कायापलट-सी हो गई। दिन गुजर गए और छात्रालय में रहते हुए भी उसने वह काम न किया, जो स्कूल के मास्टरों ने घर से कर लाने को कह दिया। परिणामस्वरूप […]
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निर्मला-मुंशी प्रेमचंद भाग – 11
मंसाराम के जाने से घर सूना हो गया। दोनों छोटे लड़के उसी स्कूल में पढ़ते थे। निर्मला रोज उनसे मंसाराम का हाल पूछती। आशा थी कि छुट्टी के दिन आएगा; लेकिन जब छुट्टी का दिन गुजर गया और वह न आया, तो निर्मला की तबीयत घबराने लगी। उसने उसके लिए मूंग के लड्डू बना रखे […]
निर्मला-मुंशी प्रेमचंद भाग – 9
बात कुछ न थी, मगर वकील साहब हताश होकर चारपाई पर गिर पड़े और माथे पर हाथ रखकर चिन्ता में मग्न हो गए। उन्होंने जितना समझा था, बात उससे कहीं अधिक बढ़ गई थी। उन्हें अपने ऊपर क्रोध आया कि मैंने पहले ही क्यों न इस लौंडे को बाहर रखने का प्रबन्ध किया। आजकल जो […]
निर्मला-मुंशी प्रेमचंद भाग – 6
निर्मला का विवाह हो गया। ससुराल आ गई। वकील साहब का नाम था मुंशी तोताराम। साँवले रंग के मोटे-ताजे आदमी थे। उम्र तो अभी चालीस से अधिक न थी, पर वकालत के कठिन परिश्रम ने सिर के बाल पका दिये थे। व्यायाम करने का अवकाश न मिलता था। यहाँ तक कि कभी कहीं घूमने न […]
निर्मला-मुंशी प्रेमचंद भाग -5
कल्याणी के सामने अब एक समस्या आ खड़ी हुई। पति के देहान्त के बाद उसे अपनी दुरावस्था का यह पहला और बहुत ही कड़वा अनुभव हुआ। दरिद्र विधवा के लिए इससे बड़ी और क्या विपत्ति हो सकती हैं, चौका-बर्तन भी अपने हाथ से किया जा सकता है, रूखा-सूखा खाकर निर्वाह किया जा सकता है, झोपड़े […]