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चित्त की समता – आनंदमूर्ति गुरु मां

वृक्ष के सिर्फ पत्ते और शाखाएं निकाल देने से वृक्ष का अन्त नहीं होता। इसी तरह जब तक मनुष्य अपने स्वरूप के मूल तक नहीं पहुंचता, ‘मैं’ कौन हूं इसका ज्ञान प्राप्त नहीं करता, तब तक ना अज्ञान दूर होगा और ना ही परमात्मा की प्राप्ति होगी।

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अध्यात्म की यात्रा- श्री श्री रविशंकर

ध्यान से देखें तो जीवन अपने में ही एक तपस्या है, आग में झुलसने जैसा है। जिनसे हम घृणा करते हैं, उनसे तो परेशान हैं ही, वास्तव में जिन्हें हम प्रेम करते हैं, उनकी ओर से भी कई तरह की परेशानियां झेलने को मिलती हैं। कैसी विडम्बना है? कोई मार्ग नहीं सूझता ना?

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आत्मसंयम का अभ्यास

यदि आप मानसिक व्यसनी हैं, तो अपना उपचार करने का प्रयत्न करें; परन्तु इस बीच कम- से-कम आप दूसरों को संक्रमित या प्रभावित करने की चेष्टा न करें, क्योंकि इसमें चाहे आप सफल हों या न हों, आप सम्भवत: अपने लिए और मुश्किलें पैदा कर लेंगे।

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शक्तिपात एक दोहरी घटना है

प्रश्न- ओशो, क्या केवल शक्तिपात के माध्यम से कुंडलिनी सहस्रार तक विकसित हो सकती है? उसके सहस्रार पर पहुंचने पर क्या समाधि का एक्सप्लोजन हो जाता है? यदि शक्तिपात के माध्यम से कुंडलिनी सहस्रार तक विकसित हो सकती है, तो इसका अर्थ यह हो जाएगा कि दूसरे से समाधि उपलब्ध हो सकती है!

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