दीपोत्सव-गृ​हलक्ष्मी की कविता
Deepotsav

Diwali Poem: आज दीप जलाओ ऐसे, कहीं अंँधकार न रह जाए
जन-जन में उल्लास भरो,कोई दुखियारी न रह जाए।

शरद ऋतु की पावन बेला, हल्की शीत की है दस्तक
कार्तिक माह दिन सुहाना, भई अमावस रैन अस्तक।

तबस्सुम जग का हर कोना, रोशन दीपों का त्यौहार
बनी रंगोली मन को भावे, पूजा मिठाई और व्यवहार।

सत्य के आगे न टिका कभी, झूठ का हुआ हमेशा नाश
सत्य की याद में है यह पर्व,कहलाता त्योहारों का मास।

माटी के दीयों की गरिमा बहुत, मनाओ उससे दिवाली
हमारी एक पहल से,किसी झोपड़े में होगी खुशहाली।

बंद करो सब बम, पटाखे मिलकर इनका बहिष्कार करो
कुछ पल खुशियों के खातिर, पर्यावरण मत बर्बाद करो।

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