जन्म तुम्हें तो देकर लाडो, जीवन फ़िर से मैं जी लूँगी
भेदभाव के तीक्ष्ण ज़हर को, तुझसे पहले मैं पी लूँगी
पर उन्मुक्त दिशा विचरण को सौम्य चतुष्पद कैसे दूँगी
पंख लगाकर सपनों वाले नभ अनंत पथ कैसे दूँगी ll

तप्त हवा की विषम आँच पर मन नारी का दरक रहा है
शून्य भावना चुप समाज में विकृत विषधर सरक रहा है
दूषित, लिजलिज रूढ़ि रेंगती, दीपित दृकपथ कैसे दूँगी
पंख लगाकर सपनों वाले नभ अनंत पथ कैसे दूँगी ll

शोर शराबा भरे डगर में रहता मन सहमा-सहमा सा
उड़ते बाज़ फ़लक पर हरदम जमता शोणित हर लम्हा-सा
हरसूं बिखरा छद्म का टुकड़ा मधुमय परिपथ कैसे दूँगी
पंख लगाकर सपनों वाले नभ अनंत पथ कैसे दूँगी ll

जर्जर, उपट, उचाट नगर में कुत्सित नज़रें रेंग रही हैं
उमके उन्मद सर्प विषैले, भ्रम जाला ले पेंग रही हैं
जलती, तपती दुर्गम पथिका मुद मंगल रथ कैसे दूँगी
पंख लगाकर सपनों वाले नभ अनंत पथ कैसे दूँगी ll

ज़हरीले जलते जंगल में ख़ूनी हाथों ने साज़िशें बाँधी
कब्रिस्तान बनी मानवता, भौतिकता की भूतही आँधी
खिले जहाँ मन का उत्सव वह अक्षय अनुपथ कैसे दूँगी
पंख लगाकर सपनों वाले नभ अनंत पथ कैसे दूँगी ll

पंकिल राह की मरघट बस्ती शत खंडित मन झुलसा प्यासा
फूँक रहा मानव को मानव आँसू पीती निष्फल आशा
चेहरा गिद्ध बदलकर घूमे दोष मनुष्य को कैसे दूँगी
पंख लगाकर सपनों वाले नभ अनंत पथ कैसे दूँगी ll

ये भी पढ़ें-

एक नया संकल्प

भविष्यफल

मिलन यामिनी