आज यूही बैठे बैठे आंखे भर आई हैं,
कहीं से मां की याद दिल को छूने चली आई हैं।
वो आंचल से उसका मुंह पोछना और भाग कर गोदी मे उठाना,
रसोई से आती खुशबु आज फिर मुंह मी पानी ले आई है।
बसा लिया है अपना एक नया संसार,
बन गई हूं मैं खुद एक का अवतार।
फिर भी न जाने क्यों आज मन उछल रहा है,
बन जाऊं मै फिर से नादान्।
सोचती हूं, है वो मीलों दूर बुनती कढाई अपने कमरे में,
नाक से फिसलती ऐनक की परवाह किये बिना।
पर जब सुनेगी कि रो रही है उसकी बेटी,
फट से कहेगी उठकर,”बस कर रोना अब तो हो गई है बड़ी”
फिर प्यार से ले लेगी अपनी बाहों मे मुझको,
एक एहसास दिला देगी खुदाई का इस दुनियां में।
जाडे की नर्म धूप की तरह आगोश मे ले लिया उसने,
इस ख्याल से ही रुक गये आंसू।
और खिल उठी मुस्कान मेरे होठों पर…
