एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग… यूं तो 1973 में आई फिल्म दाग का यह गाना आपके आस-पास मौजूद कई लोगों पर सटीक बैठता है। लेकिन कई घरों में सासू अम्मा पर भी एक दम फिट बैठता है। यह वह सासें होती हैं जिनके दो चेहरे होते हैं। यानी वह अपने घर में ही दोहरी जिंदगी जी रही होती हैं। इसका अंदाजा सास बहू के बीच चल रही है रस्सा कशी से आसानी से लगाया जा सकता है। इस श्रेणी में आने वाली सास का एक चेहरा वह होता है जो दुनिया के लिए होता है यानी प्यारी, भोली, दयालू वगैहरा-वगैहरा। पर बहू के लिए सास का चेहरा अलग हो सकता है। टिपकल सास के गुणों में अक्सर लोग इस खूबी को शामिल करते हैं। यानी सास गुस्सैल, बुराई करने वाली, ईशालू होती है। कई बार तो सास का बर्ताव इतना अजीब होता कि वह मानों वह सिर्फ और सिर्फ बहू की खामियों पर आंखें गड़ाए बैठी हो। ऐसे में मुमकिन है कि सास का यह बर्ताव सिर्फ और सिर्फ बहू के सामने हो। इस प्रवृत्ति की सासें अक्सर दूसरों के सामने बहूओं के साथ खास अच्छा व्यवहार करती नजर आती हैं।
सास बहू का ऐसा रिश्ता यकीनन अनकहे कैसेलपन से भरा होता है। ऐसे में न सिर्फ इन दोनों के मनों में दूरी आ जाती है बल्कि इसका असर घर के पूरे महौल पर भी पड़ता है। कई बार सास का बर्ताव को बहू को कटघरे में ला देता है। सवाल उठता है कैसे? वो ऐसे कि जब भी बहू अपनी आप बीती किसी से भी साझा करती है तब उस शख्स का बहू की बात पर यकीन कर पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। शायद सास के लिए ऐसा करना मुमकिन हो पाता है कि क्यूंकि वह बहू को अपना ही नहीं पाती या यूं कहें कि बहू बेटी नहीं होती।
उपाय है यह
आपको यह मानकर चलना है कि वह ऐसी ही हैं। उनके दोहरे चेहरे को उनके स्वभाव का हिस्सा मानिए और उनकी कही बातों को नजरअंदाज करना सीख लीजिए। अपनी बात को रखने या फिर खुद को साबित करने के लिए जुगत लगाइए। बात को सीधे-सीधे कहने या अपना विरोध दर्ज कराने के बजाए बात को रेशम के कपड़े में लपेट कर वक्त, मौका और मिजाज देखते हुए रखिए। अपनी बात को किसी के भी सामने मत रख दीजिए। ध्यान रखिए कि जिस भी शख्स से आप अपने मन की बात साझा कर रही हैं वह विश्वास पात्र हो साथ ही वह आप दोनों के स्वभावों से परचित हो।
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