Social Media Reels Effects: क्या आप भी मोबाइल को हाथ में लिए घंटों बैठे रहते हैं और उसे स्क्राॅल करते रहते हैं?, क्या आप भी एक के बाद एक घंटों तक रील्स देखते रहते हैं? क्या रील्स देखने के कारण अक्सर आपके काम पेंडिंग रह जाते हैं? क्या रील्स देखते-देखते आपको भी समय का ध्यान नहीं रहता और अक्सर आप सोने में लेट हो जाते हैं? अगर हां, तो मान लीजिए आपको रील्स का एडिक्शन हो गया है। चिंता की बात तो ये है कि जिसका एडिक्शन टीनएजर्स में ज्यादा है और यह उनके लिए घातक हो सकता है।
टीनएजर्स पर पड़ता है गहरा असर

आपने महसूस किया है कि आजकल टीनएजर्स घर और बाहर के कामों में ज्यादा रुचि नहीं लेते। घर के किसी फंक्शन में चाहे कितने भी मेहमान मौजूद हों, वे एक कोने में बैठे मोबाइल देखते रहते हैं। किसी से बात करने में वे सहज महसूस नहीं करते। कहीं न कहीं ये सोशल मीडिया का साइड इफेक्ट और एडिक्शन ही है। यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना के न्यूरोसाइंटिस्ट की ओर से 12 से 15 साल की उम्र के टीनएजर्स पर की गई एक स्टडी में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इस स्टडी में टीनएजर्स का ब्रेन स्कैन किया गया। जिससे यह पता चला कि जो टीनएजर्स सोशल मीडिया पर बार-बार रील्स चेक करते हैं, उनके ब्रेन में विशेष प्रकार के बदलाव होने लगते हैं। इन बदलावों के कारण टीनएजर्स ज्यादा सेंसिटिव हो जाते हैं, जिससे उनके फोकस करने की क्षमता पर असर पड़ता है।
ऐसे होता है केमिकल लोचा

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में सामने आया कि सोशल मीडिया पर रील्स या फिर फीड्स इस तरीके से बनाए जाते हैं कि लोग उन्हें ज्यादा से ज्यादा देखें। जब आप ये रील्स देखते हैं तो ब्रेन में फीलगुड केमिकल डोपामाइन सक्रिय होता है। यह न्यूरो केमिकल्स धीरे-धीरे व्यक्ति में लत को बढ़ाता है और लोगों को सोशल मीडिया का एडिक्शन हो जाता है। हमारा ब्रेन इन्हीं रील्स को देखकर खुशी महसूस करता है, जो आगे चलकर परेशानी का कारण बन जाता है।
इन इशारों को समझें

क्या आपने भीड़ में चलते टीनएजर्स को बहुत ज्यादा हाथ या पैर हिला कर बात करते हुए देखा है। कई बार उनकी यह हरकतें आपको अजीब लग सकती हैं। लेकिन शोध बताते हैं कि हो सकता है कि ऐसे टीनएजर्स मास साइकोजेनिक इलनेस का शिकार हों। इस डिसऑर्डर में नर्वस सिस्टम हाइपर एक्टिव हो जाता है और उसका बॉडी के विभिन्न अंगों पर नियंत्रण ही नहीं रहता। ऐसे में उन्हें पता ही नहीं चलता कि उनके हाथ-पैर कितना हिल रहे हैं।
फोकस करने में आती है परेशानी

स्टडी में सामने आया है कि जो टीनएजर बहुत ज्यादा रील्स देखते हैं। उनके ब्रेन का हिस्सा इससे बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार रील्स देखने से मस्तिष्क जल्दी-जल्दी चीजों को देखने का आदि हो जाता है। ऐसे में टीनएजर्स की पढ़ाई पर इसका बहुत ही उल्टा असर पड़ता है। उनका दिमाग भटकने लगता है और वे स्टडी पर या किसी भी अन्य काम पर फोकस नहीं कर पाते।
बढ़ जाता है ओबेसिटी का खतरा

18 से 24 साल की उम्र के युवाओं पर की गई एक स्टडी के अनुसार सोशल मीडिया का ज्यादा उपयोग करना स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक है। जो यंगस्टर्स सोशल मीडिया के एडिक्शन में हैं उनमें सी रिएक्टिव प्रोटीन की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। यह प्रोटीन ना सिर्फ यंगस्टर्स का वजन बढ़ाता है, बल्कि उनमें डायबिटीज, कैंसर और हार्ट संबंधी बीमारियों का खतरा भी बढ़ा देता है। इतना ही नहीं रील्स के एडिक्ट यंगस्टर ईटिंग डिसऑर्डर का भी शिकार हो जाते हैं। रील्स देखते देखते वे कितना खाना खा रहे हैं, उन्हें इसका अंदाजा ही नहीं लगता। रील्स देखने में वे इतना बिजी रहते हैं कि फिजिकल एक्टिविटी करना बंद कर देते हैं, जिससे उनमें मोटापे का खतरा बढ़ने की आशंका रहती है।
रील्स के एडिक्शन से बचने के लिए उठाएं ये कदम

ऐसा नहीं है कि रील्स का एडिक्शन नहीं छोड़ा जा सकता। हालांकि शुरुआती दौर में यह कुछ परेशानी भरा हो सकता है। लेकिन यकीन मानिए इससे टीनएजर्स और यंगस्टर्स की जिंदगी में बड़ा बदलाव हो सकता है। वे अपने भविष्य के फैसले ले पाते हैं और अपना गोल सेट कर पाएंगे। इसके लिए कुछ जरूरी कदम उठाना जरूरी है।
सोशल मीडिया से खुद बनाएं दूरी
अगर आप भी महसूस करते हैं कि आप भी रील्स देखने के एडिक्ट हो चुके हैं तो सबसे पहला कदम यह है कि आप सोशल मीडिया से दूरी बनाएं। यानी आप सिर्फ यूट्यूब, इंस्टाग्राम से ही दूरी न बनाएं, बल्कि ट्विटर और फेसबुक से भी दूर रहें। आप खुद किसी भी ऐप या फिर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी फोटो या वीडियो शेयर नहीं करें। क्योंकि ऐसा करने पर आप बार-बार उसपर आए लाइक्स और कमेंट देखेंगे। कहीं ना कहीं आप फिर से रील्स देखना भी शुरू कर देंगे।
तय करें एक्टिव और पैसिव एक्टिविटी की लिमिट
किसी भी ऐप को देखने के लिए उसके समय को दो हिस्सों में डिवाइड करें। पहला एक्टिव स्क्रीन टाइम और दूसरा पैसिव एक्टिव स्क्रीन टाइम। एक्टिव स्क्रीन टाइम वो है जिसमें आप सोशल मीडिया पर जो भी एक्टिविटी देख रहे हैं, उससे कुछ ना कुछ नया सीखते हैं। यह आपके लिए बेहतर हो सकता है, क्योंकि इससे आप कुछ न कुछ नया जानते हैं। वहीं वैसिव एक्टिविटी का मतलब यह है कि आप सिर्फ अपना मन लगाने के लिए रील्स और फीड्स देख रहे हैं। जिससे ना सिर्फ आपका समय बर्बाद होता है, बल्कि आपका ब्रेन भी बिना वजह एक्टिविटी में व्यस्त है।
अपनी हॉबी को दें पूरा समय
मोबाइल छोड़कर अपनी हॉबीज को समय देना रील्स एडिक्शन से मुक्ति का सबसे आसान और सफल तरीका है। जब आप अपनी पसंद का काम करेंगे तो आप अपने आप ही मोबाइल से दूरी बना लेंगे। या फिर मोबाइल छोड़ने में आपको कम परेशानी होगी। ऐसे में आप फिर से अपनी हॉबी को पूरा समय देना शुरू करें। ऐसा करना आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा। इससे आपका माइंड भी रिलैक्स रहेगा।