Overview:साफ-सफाई से सेहत या नुकसान? बच्चों में एलर्जी का नया खतरा
बच्चों में एलर्जी की बढ़ती समस्या सिर्फ एक मेडिकल इश्यू नहीं, बल्कि आधुनिक जीवनशैली की चेतावनी भी है। अत्यधिक सफाई, प्रोसेस्ड फूड्स, प्रदूषण और नेचुरल एक्सपोज़र की कमी ने उनकी इम्युनिटी को कमज़ोर बना दिया है। माता-पिता अगर बच्चों को संतुलित आहार, पर्याप्त नींद, प्राकृतिक माहौल और समय पर चिकित्सा सुविधा दें, तो इन एलर्जी के मामलों को काफी हद तक रोका जा सकता है। स्वस्थ वातावरण और संतुलित जीवनशैली ही बच्चों की मज़बूत इम्युनिटी और बेहतर भविष्य की कुंजी है।
Rising Childhood Allergies-आज के बच्चे पहले से ज़्यादा एलर्जी से परेशान हैं — कभी खाने से, तो कभी धूल या प्रदूषण से। डॉक्टरों के अनुसार, इसका कारण सिर्फ पर्यावरणीय बदलाव ही नहीं बल्कि हमारी लाइफस्टाइल और अति-साफ-सुथरे रहने की आदतें भी हैं। बच्चों की इम्युनिटी अब पहले जैसी मज़बूत नहीं रह गई है, क्योंकि उन्हें शुरू से ही नेचुरल माइक्रोब्स और बाहरी तत्वों से पर्याप्त संपर्क नहीं मिल पाता। यही वजह है कि उनका शरीर सामान्य चीज़ों पर भी असामान्य प्रतिक्रिया देने लगता है, जिससे एलर्जी के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं।
हाइजीन हाइपोथेसिस और घटती इम्युनिटी का असर

डॉ. पूनम सिदाना बताती हैं कि “हाइजीन हाइपोथेसिस” के अनुसार, अगर बच्चों को बहुत ज़्यादा सैनिटाइज़्ड माहौल में रखा जाए, तो उनकी इम्युनिटी पूरी तरह विकसित नहीं हो पाती। उन्हें प्राकृतिक माइक्रोब्स से पर्याप्त एक्सपोज़र नहीं मिलता, जिससे शरीर हानिकारक और फायदेमंद बैक्टीरिया में फर्क नहीं कर पाता। जैसे ही वे बाहरी वातावरण से रूबरू होते हैं, एलर्जी की संभावना बढ़ जाती है। प्रदूषण, केमिकलयुक्त प्रोडक्ट्स, कीटनाशक और प्रोसेस्ड फूड्स भी इस खतरे को और बढ़ाते हैं। सी-सेक्शन से जन्मे बच्चों या जिन्हें स्तनपान देर से मिलता है, उनमें यह जोखिम और अधिक होता है।
बदलती जीवनशैली और खान-पान भी दोषी
डॉ. मेधा के अनुसार, शहरी जीवन, प्रदूषण और प्रोसेस्ड फूड्स की बढ़ती खपत ने बच्चों की इम्युनिटी को कमज़ोर बना दिया है। बहुत अधिक सफ़ाई और कीटाणुओं से सीमित संपर्क के कारण शरीर की प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता घटती है। वहीं, फाइबर और नेचुरल फूड्स की कमी से बच्चों का आंत स्वास्थ्य बिगड़ता है, जिससे एलर्जी के लक्षण उभरने लगते हैं। माता-पिता को बच्चों के शुरुआती लक्षण जैसे बार-बार छींक आना, त्वचा पर दाने या खाने के बाद पेट दर्द को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। समय रहते पहचान और इलाज से इस खतरे को काफी हद तक टाला जा सकता है।
Inputs by -डॉ. पूनम सिदाना, डायरेक्टर – नियोनेटोलॉजी और पीडियाट्रिक्स, सीके बिड़ला हॉस्पिटल®, दिल्ली
Input by- डॉ मेघा,पीडियाट्रिशियन, मधुकर रेनबो चिल्ड्रन हॉस्पिटल, दिल्ली
