एक शिशु के लिए उसके जन्म का समय उसके व मां के लिए बहुत कष्टमय होता है। गर्भ से बाहर आते ही वह एक नए वातावरण में सांस लेता है। मां का स्पर्श और गोद उसको सुकून प्रदान करते हैं। आइये, बात करते हैं कि नवजन्मे बच्चे और उसकी मां की देखभाल के लिए किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए।

बेबी केयर टिप्स

1. शिशु का इम्यून सिस्टम बहुत ही कमज़ोर होता है, जिस कारण उसे संक्रमण का डर अधिक होता है। उसकी मां हमेशा साथ में रहती हैं तो उसका खुद की साफ-सफाई रखना बहुत जरूरी है। मौसम के अनुसार स्वच्छ कपड़े पहने और शिशु को छूने से पहले अपने हाथों को मेडिकेटिड सोप से धो लें या सेनिटाइज़ कर लें।

2. गर्भनाल बच्चे तक पोषक तत्व और ऑक्सीजन पहुंचाती हैं। जन्म के बाद इस नाल को काट कर वहां प्लास्टिक क्लिप लगा दी जाती है। नाल कटने के बाद इसकी केयर करना बहुत जरूरी है, वरना इन्फेक्शन हो सकता है। नाल सूख कर स्वयं ही गिर जाती है अत: इसको खींचने की कोशिश ना करें। उसको पानी से ही साफ करें व हमेशा सूखा रखें।

3. शिशु को स्तनपान अवश्य कराएं क्योंकि मां का पहला दूध (कोलोस्ट्रम) जोकि पीले रंग का गाढ़ा द्रव्य होता है, उसमें बहुत सी एंटीबॉडीज होती है, जो उसको कई प्रकार के इन्फेक्शन्स से बचाती है। स्तनपान कराने से पहले अपने निप्पल्स अच्छी तरह से साफ कर लें। 

4. स्तनपान के दौरान दूध के साथ कुछ हवा भी शिशु के पेट में चली जाती है, जिससे उसको गैस की समस्या हो सकती है, इसलिए दूध पिलाने के बाद तुरंत उसको कंधे से लगाकर धीरे-धीरे थपकी दें ताकि डकार आ जाये और वह आराम महसूस कर सके। 

5. नवजात को सही तरीके से गोद में लें। उसकी गर्दन को सहारा देने के लिए अपना एक हाथ या बाजू गर्दन के नीचे रखें। जब उसे कंधे से लगाएं तो भी अपना हाथ उसके सिर के पीछे रखें ताकि उसका सिर इधर-उधर ना लुढ़के। 

6. शिशु के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए सही आहार बहुत जरूरी है। जन्म से छ: महीने तक तो वह मां के दूध पर निर्भर होता है, लेकिन बाद में दूध के साथ ठोस आहार की आवश्यकता होती है।  ऐसे में उसे उबली मैश किया आलू, दाल का पानी, सूजी का हलवा या फ्रेश फ्रूट्स का जूस दे सकते हैं।  बाजार में मिलने वाले बेबी $फूड सप्लीमेंट्स भी फायदेमंद हैं, जोकि कई विटामिन व मिनरल्स से भरपूर होते हैं। 

7. जन्म से लेकर एक साल तक शिशु की त्वचा की खास केयर करनी पड़ती है, ऐसे में बेबी सोप, बेबी ऑयल, बेबी क्रीम, बेबी शैम्पू व अन्य स्किन प्रोडक्ट्स हमेशा अच्छी कंपनी के और मेन्युफेक्चरिंग डेट देख कर ही खरीदें। नहलाने से पहले नरम हाथों से किसी भी तेल से शरीर की मालिश करें, इससे उसकी हड्डियां मजबूत होंगी व त्वचा में भी चमक आएगी। 

8. शिशु के प्राइवेट पार्ट्स की स्वछता बहुत जरूरी है। लड़का हो या लड़की, शरीर के ये हिस्से विशेष देखभाल चाहते हैं।  शिशु के अंगों को अच्छी तरह से धोएं और बेबी वाइप्स से अच्छे से पोंछ दें, ऐसा करने से बैक्टीरिया उस जगह से दूर रहेंगे। दिन में कम से कम छ: या सात बार नैप्पी बदलें। कभी- कभी शिशु को बिना नैप्पी के रहने दें ताकि उसके अंगों को हवा लगती रहे और वहां सूखा रहे। 

9. जब शिशु को बोतल से दूध पिलायें तो हर बार दूध डालने से पहले बोतल को गरम पानी में निप्पल सहित अवश्य उबालें। बोतल में दूध डालने के बाद देख लें कि दूध में कोई बब्बल ना हो वरना उसे गैस हो सकती हैं। बेबी फीडिंग बोतल हमेशा बढ़िया क्वॉलिटी की ही लें।

10. छोटे बच्चे को कभी भी हवा में ना उछालें। उसे किसी भी तरह के झटके या ज्यादा हिलने से बचाएं। ऐसा होने से सिर में खून जमने का डर बना रहता है। शिशु के सिर पर हलकी सी पपड़ी की एक परत सी जमी होती है, जो उसके सिर के ऊपरी हिस्से को सुरक्षा देती है, क्योंकि वह हिस्सा काफी नरम होता है। धीरे-धीरे पपड़ी अपने आप ही उतर जाती है। 

11. शिशु के जन्म के बाद से उसे वैक्सीन देने की शुरुआत की जाती है। नन्हे शिशु का इम्यून सिस्टम किसी भी वायरस से लड़ने में सक्षम नहीं होता, उसकी इसी क्षमता को विकसित करने के लिए और किसी भी वायरस की गिरफ्त में आने से रोकने के लिए समय-समय पर टीकाकरण जरूरी है। ये कई जानलेवा रोगों से इन्हे बचाते हैं। 

12. अगर आप कपड़े की नैप्पी का इस्तेमाल कर रही हैं तो नैप्पी लाइनर में डाल कर नैप्पी को बांधें। नैप्पी हमेशा समतल जगह पर शिशु को लिटा कर पहनाएं। डिस्पोसेबल नैप्पी का प्रयोग काम ही करें, क्योंकि कई बार ज्यादा देर तक इसको बंधे रखने से शिशु की कोमल त्वचा पर रैशेज़ आ जाते हैं।

13. बच्चे के नाखून बड़ी तेजी से बढ़ते हैं और नुकीले भी होते हैं तो समय-समय पर छोटे नेल क्लिपर से नाखून काटते रहें। शिशु को गोद में लिटाकर आराम से उससे बातें करते हुए सावधानी से यह काम करें। नाखून रह जाने की स्थिति में वह खुद को नुकसान पहुंचा सकता है।

14. शिशु के शरीर पर कोई तिल, मस्सा या बर्थमार्क हो तो उससे किसी भी तरह की छेड़खानी न करें। अपने डॉक्टर से चेक करवाएं और उनके परामर्श के अनुसार ईलाज करवाएं।

15. जन्म के बाद के 48 घंटों तक शिशु पर पूरी नज़र रखें। अगर उसकी त्वचा का रंग पीला पड़ने लगे या वह आपका दूध पीने के बाद उलटी करता रहे तो ऐसी हालत में उसे डॉक्टर के पास ले जाना जरूरी है।

16. बच्चे एक दिन में कई कपड़े खराब करते हैं। ध्यान रहे कि उनके सभी कपड़े नरम मुलायम हों और उनके कपड़ों को धोने के लिए सॉफ्ट डिटर्जंट का प्रयोग करें, जिससे उनकी कोमल त्वचा को कोई नुकसान न हो।

17. शिशु के वजन का ध्यान रखें। उसके जन्म से लेकर 16 साल तक लगने वाले टीकों की सूची संभाल कर रखें। अगर दवा पिलाई है तो दवा भी कभी पिलाना न भूलें। 

18. बच्चे के रोने पर यह न समझ लें कि उसे कोई तकलीफ है। रोना भी एक व्यायाम है जिससे उसकी पसलियां खुलती हैं। उसे प्यार से चुप कराएं, अगर रोना हद से बढ़ जाये तो यह तकलीफ का संकेत हो सकता है। 

19. जन्म के बाद शिशु 16 घंटे या इससे अधिक समय तक सोता है और भूख लगने या फिर सूसू-पाटी करने पर उठता है। उसको हमेशा सीधा सुलाएं क्योंकि उल्टा सुलाने से उसे सांस लेने में कष्ट हो सकता है। बच्चे के सोने पर उसकी करवट बदलते रहें, इससे उसके सर की बनावट सही रहती है।

20. आज जबकि कोरोना वायरस के संक्रमण का डर बना हुआ है तो ऐसे में शिशु और मां को घर लाते समय सावधानी रखने की जरूरत है। अपने वाहन का इस्तेमाल आने-जाने में करें। शिशु को आरामदायक स्थिति में अपनी गोद में लें ताकि उसको कोई झटका न लगने पाए। वाहन में सवार लोग मास्क जरूर लगाएं और घर पहुंचने पर अपने हाथों को सेनिटाइज़ करें, फिर शिशु को उठायें।

21. जब बच्चे घुटनों के बल रेंगना शुरू करते हैं तो वे किसी भी चीज़ को उठाकर मुंह में डाल लेते हैं। उनकी सुरक्षा के लिए बटन, मेडिसिन टेबलेट्स जैसी अन्य वस्तुओं को उनकी पहुंच से दूर रखें। उनको घायल होने से बचाने के लिए नोकदार फर्नीचर को उठा दें।

प्रसव के बाद मां की देखभाल 

1. प्रसव के बाद आपको शारीरिक पोषण की आवश्यकता सबसे अधिक होती है ताकि आप अपने शिशु की देखभाल कर सकें। अपनी डाइट में संतुलित आहार जिसमे अनाज, कार्बोहोइड्रेट्स, डेयरी उत्पाद और फ्रेश फ्रूट्स व हरी सब्जियां शामिल करें। फाइबर से भरपूर आहार से कब्ज़ जैसी समस्या नहीं होगी। दूध को प्राथमिकता दें और पानी भी पियें क्योंकि आपको ब्रेस्टफीडिंग करवानी है।

2. रात को शिशु को बार-बार स्तनपान करने के कारण मां की नींद पूरी नहीं हो पाती है तो थकान से बचने के लिए बच्चे के साथ ही आप भी थोड़ा सो लें। दरअसल आपका शरीर प्रसव के दौरान काफी कुछ झेल चुका होता है और प्रसव के बाद योनि में लगे टांके, पीरियड्स स्टार्ट होना और हार्मोनल असंतुलन की वजह से भी थकान रहती है, अत: पर्याप्त नींद आवश्यक है।

3. अगर वजाइनल टीयर है तो दर्द से बचाव के लिए दर्द-निवारक क्रीम का प्रयोग या वहां सिंकाई कर सकती हैं। ऐसी हालत में शौच के दौरान कब्ज होने पर बहुत दर्द हो सकता है। सॉफ्ट तकिये या पेडेड रिंग पर बैठें ताकि घाव पर कोई प्रेशर न पड़े।

4. प्रसव के बाद आपको पीरियड्स की शुरुआत हो जाती है, जोकि कुछ दिनों या हफ्तों में खत्म हो जाती है। ब्लड के साथ निकलने वाली गंदगी आपके गर्भाशय को अंदर से बिलकुल क्लीन कर देती है। हैवी फ्लो से निपटने के लिए हैवी ड्यूटी पोस्टनेटल सेनिटरी पैड्स को यूज़ करें। 

5. ब्रेस्ट में दूध ज्यादा चढ़ आने से वे सख्त हो जाते हैं, जिस वजह से बहुत दर्द होता है। ऐसे में आप गरम पानी में तौलिया भिगो कर और निचोड़ कर दोनों तरफ ब्रैस्ट पर रखकर सेंक दे। शिशु को दोनों ओर से स्तनपान करवाएं। अगर ज्यादा तकलीफ हो तो ब्रैस्ट पंप से एक्स्ट्रा मिल्क निकाल दें। 

6. इस समय में त्वचा में ढीलापन और बालों का गिरना आम बात है। मालिश एक ऐसी क्रिया है, जिसके द्वारा शरीर और बालों को आराम पहुंचाया जा सकता है। हलके हाथों से की गई मालिश से रक्त-संचार में सुधार होता है, तनाव और दर्द में आराम मिलता है और शरीर मजबूत होता है। 

7. पेट से जब शिशु बाहर आता है तो पेट की त्वचा जोकि पहले कसी होती है, एकदम से ढीली हो जाती है। समय के साथ त्वचा में पहले जैसी कसावट तो आ जाती है लेकिन स्ट्रेच मार्क्स सा$फ नज़र आने लगते हैं। अगर उसी वक्त से उनकी देखभाल शुरू कर दी जाये तो ये जल्दी ही मिट जाते हैं। 

8. अगर आपका सिजेरियन प्रसव हुआ है, तो आपको अतिरिक्त केयर की जरूरत है। टांकों की ठीक से केयर न की जाये तो इन्फेक्शन हो सकता है। चार- पांच महीनों तक भार उठाने या कोई भी भारी काम करने से बचें। टांके वाली जगह को सा$फ व सूखा रखें। डॉक्टर द्वारा दी गई दर्दनिवारक दवाओं को समयनुसार लें। शिशु को दूध पिलाने और अन्य कामों के लिए दूसरों की हेल्प लें।

9. चालीस दिनों तक मां का आराम करना जरूरी होता है। इस दौरान उसको ताकत देने के लिए देसी घी, आटे, गोंद, कमरकस, डॉयफ्रूट्स व अन्य गरम तासीर वाली चीज़ों को मिलाकर पंजीरी बनाकर खिलाने की परम्परा काफी पुराने समय से चलती आ रही है। इसको खाने से गर्भाशय की गंदगी बाहर निकल जाती है और शरीर भीतर से स्ट्रांग हो जाता है। 

10. सात या आठ हफ्तों के बाद अपना चेकअप करवाने जरूर जाएं। उस वक्त आपका ब्लड प्रेशर, वजन और योनि का चेकअप किया जाता है। आपको अपने साथी के साथ कब मिलान करना है, इस बारे में भी डॉक्टर से पूछ सकती हैं। जब भी सेक्स करें तो संयम से काम लें और अपने पेट पर भार न पड़ने दें। 

11. कोरोना महामारी के चलते डॉक्टर से ऑनलाइन अपॉइंटमेंट लें और टाइम का पता कर लें। मास्क लगाना न भूलें व भीड़ से बचें। 

12. कई बार मां के स्तनों में काम दूध आता है, जिस कारण शिशु भूखा रह जाता है। वह थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद रोने लगता है। ऐसे में मां को अपने आहार में मेथी, पालक, ओट्स व मिल्क को शामिल करना चाहिए। अपने शिशु को बोतल वाले दूध की शुरुआत करें ताकि उसका पेट भर जाये। 

13. प्रसव के बाद आने वाले पीरियड्स जब खत्म होते हैं तो बहुत कम माएं होती हैं जिनके पीरियड्स रेगुलर हो जाते हैं। स्तनपान कराने वाली मां के पीरियड्स कई महीनों या एक साल के बाद तक भी शुरू नहीं होते। स्तनपान के बंद होते ही पीरियड्स रेगुलर हो जाते हैं। इसका एक नुकसान यह होता है कि कभी-कभी गर्भ ठहरने का डर लगा रहता है। वैसे तो कहा जाता है कि स्तनपान सबसे उत्तम गर्भनिरोधक है फिर भी एहितयात के तौर पर प्रेगनेंसी टेस्ट करवाते रहना चाहिए।

14. नार्मल डिलीवरी के बाद पेट में क्रैम्प्स आना सामान्य है। ब्रेस्टफीडिंग के वक्त शरीर से ऑक्सीटोसिन रिलीज़ होता है, जिस कारण ऐसा होता है। अगर दर्द अधिक हो रहा है तो डॉक्टर की सलाह से दवा ली जा सकती है।

15. शिशु को जन्म देने के दो महीने बाद हल्के व्यायाम की शुरुआत की जा सकती है। शिशु के साथ प्लेसेंटा और काफी मात्रा में फ्लूइड भी आपके शरीर से बाहर निकल आता है, जिससे आपका वजन कम हो जाता है। यूट्रस को सामान्य आकार में आने को थोड़ा वक्त लगता है अत: सब्र रखें। वजन कम करने के चक्कर में बेवजह प्रेशर न डालें। 

16. इन दिनों में आपका मूड हार्मोनल बदलाव की वजह से स्विंग होता रहता है। इससे बचने के लिए अपनी सोच को पॉजिटिव रखें। अच्छी बुक्स पढ़ें, म्यूजिक सुनें और किसी पैरेंट ग्रुप में शामिल हो जाएं। अपने बच्चे से बातें करें, लोरी सुनाएं और दिमाग को शांत रखें।

17. अगर मां को खांसी-जुकाम हो जाये तो शिशु को फीड कराते समय मास्क पहने और हाथों को मेडिकेटिड साबुन से सा$फ करें। दूध पिलाने से पहले और बाद में अपने निप्पल्स को अच्छी तरह से सा$फ करें।

18. प्रसव के बाद पेट की लटकती स्किन को सही करने के लिए पोस्टपार्टम बेली बेल्ट यूज़ करें। यह आपके पेट को सहारा देने के साथ बोन्स को भी स्पोर्ट देती है। जब आप बच्चे को दूध पिलाती हैं तो ये बेल्ट लोअर बैक को भी सहारा देती है। इसके इलावा नॄसग टॉप भी एक बेहतर विकल्प है, जिसमें ब्रेस्ट के पास दोनों तरफ ओपनर्स होते हैं, जिनसे शिशु को कहीं भी दूध पिला सकती हैं।

19. शिशु के जन्म के बाद कई बार आपको दोबारा से गर्भ ठहरने की सम्भावना हो सकती है। अत: अपनी डॉक्टर से सलाह लेकर उनके द्वारा बताया गर्भ निरोध का तरीका अपनाएं। 

20. शिशु को आपके दूध के जरिये पोषण मिलता है तो हमेशा पौष्टिक खाना खाएं। भारी खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें क्योंकि इससे शिशु को पेट सम्बन्धी समस्या हो सकती है। अगर शिशु के पेट में दर्द हो तो गरम पानी में थोड़ा सा हींग पाउडर मिलाकर घोल लें और उसकी नाभि के चारों ओर  लेप लगा दें, थोड़ी ही देर में आराम आ जायेगा।

21. आप मालिश हमेशा सरसों, तिल, जैतून या बादाम के तेल से करवाएं। आयुर्वेद में इन तेलों को प्रसव के बाद की मालिश में बहुत फायदेमंद बताया गया है। इनकी रोज़ाना मालिश रक्त संचार और ताकत  बढ़ाने में अद्भुत काम करती है।

अगले गर्भधारण के लिए दोनों बच्चों के बीच तीन वर्ष का अंतराल अवश्य रखें ताकि आप मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार हों, साथ ही अपनी और बच्चों की देेखभाल के लिए पर्याप्त समय निकाल पाएं।

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