मां बनना हर स्त्री का सपना होता है।  9 माह के बेसब्र इंतज़ार के बाद ये सपना तब सच हो जाता है जब बच्चा मां की गोद में आकर किलकारियां भरने लगता है। आमतौर पर बच्चे का जन्म 37 से 40 हफ्ते के बीच होता है लेकिन कुछ ऐसे भी बच्चे होते हैं जो इससे पहले जन्म ले लेते हैं। ऐसे बच्चे प्रीमेच्योर बच्चे होते हैं। इन बच्चों को ख़ास देखभाल की ज़रुरत होती है क्योंकि इन बच्चों का इम्यून सिस्टम अन्य बच्चों की तुलना में ज़्यादा कमज़ोर होता है। यही वजह है कि  इन बच्चों को बीमारियां भी जल्दी होती हैं। इसलिए इन बच्चों की केयर के लिए हमें कुछ खास बातें ध्यान में रखनी चाहिए। 

                                            मां का दूध ज़रूरी है 

मां का दूध किसी भी नवजात का प्रथम आहार होता है। इसमें वो सारे पोषक तत्व मौजूद होते हैं जो बच्चे की ग्रोथ के लिए ज़रूरी हैं। प्रीमेच्योर बेबी कमज़ोरी की वजह से जल्दी स्तनपान नहीं कर पाता ऐसे में आपको चाहिए कि  बच्चे को समय -समय पर ब्रेस्ट फीड कराते रहें। यदि वो निप्पल नहीं पकड़ पाता  तो ब्रेस्ट पंप से मिल्क निकालकर बच्चे को चम्मच से पिलाएं।  इसके साथ ही थोड़ी थोड़ी देर में बच्चे को ब्रेस्ट में लगाते रहे।  

 

 
 
घर के बड़ों की मदद लें 
प्रीमेच्योर बच्चे की देखभाल करने में अन्य लोगों की  मदद लें क्योंकि इन बच्चों को एक्स्ट्रा केयर की ज़रुरत होती है। कभी-कभी टच थेरेपी भी काम आती है बच्चे को ज्यादा से ज्यादा अपने टच में रखें जैसे डायपर बदलने में दूध पिलाने में या खाना खिलाने में इससे बच्चे को ऊर्जा मिलती है। 
 
 
घर की हाइजीन मेन्टेन रखें 
घर में हाइजीन का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, क्योंकि ऐसे बच्चों को जल्दी इन्फेक्शन होने का खतरा होता है। घर में रोज़ एंटीबैक्टीरियल या एंटीसेप्टिक  लिक्विड से पोछा लगाएं और जिस बेड में शिशु को सुलाते हैं उसकी चादर रोज़ चेंज करते रहें । बच्चे को छूने से पहले हाथ अच्छी तरह साबुन या लिक्विड से धो लेने चाहिए और  जूते चप्पल लेकर घर में प्रवेश न करें। 
 
 
बच्चे को कैसे सुलाएं
प्रीमेच्योर बच्चे को सुलाते समय भी एक्स्ट्रा केयर की ज़रुरत होती है। बच्चे की हड्डियां और मांसपेशियां बहुत कमज़ोर होती हैं इसलिए डॉक्टर की सलाह लेकर ही उसको किसी भी पोजीशन में सुलाना चाहिए। बच्चे को आप अपने पेट पर भी धीरे -धीरे हिलाकर सुला सकती हैं।  
 
बच्चे के साथ समय व्यतीत करें 
मां को शिशु के साथ ज्यादा समय बिताना चाहिए उससे बात करते रहनी चाहिए।  इससे बच्चा सुरक्षित महसूस करता है  विकास बहुत तेज़ी से होता है। 
 
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