अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा अक्सर कहती हैं कि आत्मविश्वास सफलता के लिए सबसे जरूरी है। इसके बाद आपको किसी और चीज की जरूरत पड़ेगी ही नहीं। ये बात बिलकुल ठीक भी है। आत्मविश्वास के साथ किया गया काम सफल होने की गारंटी तो देता ही है। आप फिर कैसे भी दिखते हों, कैसे भी बोलते हों, आत्मविश्वास से किया गया छोटा काम भी बड़ा लगता है। बच्चों को ये बात बताने और समझाने के लिए जरूरी है कि उन्हें बचपन से ही आत्मविश्वास बनाए रखने की सलाह दी जाए। उन्हें आत्मविश्वास बना कर रखने के तरीके बताए जाएं और उन्हें फॉलो करने के टिप्स भी। बच्चों में आत्मविश्वास के बीज का रोपण करने के लिए क्या करना होगा, जान लीजिए-
घर के छोटे-मोटे काम-
बच्चों में आत्मविशवास बनाए टखने और उन्हें इसका पाठ पढ़ाने का अच्छा तरीका है कि उन्हें घर के छोटे-मोटे कामों की जिम्मेदारी दे दी जाए। इन कामों को रोज समय से करने का फायदा ये होगा कि उन्हें खुद से बड़ों वाले काम करने की ज़िम्मेदारी महसूस होने लगेगी। उनको लगेगा कि हां, उन्हें भी जिम्मेदार माना जाता है। वो देखिएगा बहुत लगन से काम निपटाएंगे और ज़िम्मेदारी के साथ काम पर्फेक्टली करेंगे। उनको दिए जाने वाले कामों में पेड़ों में पानी डालना, डस्टिंग करना या फिर फ्रिज के लिए बोतलें भरना शामिल किया जा सकता है। 
खेलें साथ, मिले साथ-
आत्मविश्वास के लिए जरूरी है कि बच्चा आपकी अटेंशन को समझे। बच्चे को आप अटेंशन अपनी मौजूदगी से दिखा सकती हैं। इसके लिए आप पूरे दिन का कुछ समय बच्चे के साथ खेलने में जरूर लगाएं। इस दौरान पूरे मन से उसके साथ खेलें। बच्चे को जब आपकी अटेंशन मिलेगी तो उसको लगेगा कि कोई उसके साथ है। और ये साथ उसे आत्मविश्वास का अहसास दिलाएगा। उसको पेरेंट्स का साथ मिलेगा तो आत्मविश्वास का पारा भी बढ़ता जाएगा। 
उसकी सुनना जरूरी है-
अक्सर घरों में ऐसा होता है, जब परिवार में बच्चों की बातें नहीं सुनी जाती हैं। बच्चे को नासमझ और बुद्धू भी मान लिया जाता है। लेकिन यहीं पर पेरेंट्स गलती करते हैं। अगर आप भी एशिया करती हैं तो सोचिए जरा, कोई आपकी बात ना सुने तो कितना बुरा और अकेलापन महसूस होता है।  बच्चों को भी ऐसा ही लगता है। उनका आत्मविश्वास तुरंत जीरो हो जाता है इसलिए जब भी बच्चा आपसे बात करना चाहे तो उससे आंखों में आंखें डाल कर बात करें। उसको अहसास दिलाएं कि जब वो कुछ भी कहना चाहेगा, आप उसके पास आ जाएंगी। आंखों में आंखें डालने से बच्चे को ये पता चलेगा कि आप उसकी बातें सच में सुन रही हैं। ना कि बहाना कर रही हैं। 
मेहनत की प्रशंसा-
जब-जब आपने कुछ बहुत मेहनत से किया था, ठीक तब ही जब किसी ने आपकी तारीफ की थी तो आपको कैसा लगा था। बहुत अच्छा है न। रिजल्ट फिर कैसा भी आया हो लेकिन किसी की प्रशंसा भर से आपका दिल खुश हो जाता था साथ में आगे फिर से मेहनत करने के लिए भी दिल फिर से उत्साहित हो जाता है। बच्चे के साथ भी ऐसा ही होता है। आप बच्चे के रिजल्ट नहीं बल्कि उसकी ओर से की गई मेहनत की प्रशंसा कीजिए। फिर चाहे एक बार डांटने के बाद सुधार करने हुए रोज अपनी टेबल सही करना हो या फिर अपना कमरा साफ रखना। बच्चे को छोटी से छोटी बात के लिए प्रोत्साहित जरूर करें। 
बच्चे को बचाएं बिलकुल नहीं-
मां होने के नाते अक्सर ही आप की कोशिश रहती होगी कि बच्चे को किसी भी तरह का कष्ट बिलकुल न हो। लेकिन आपकी केयर हर दफा नहीं होनी चाहिए। हर दफा ऐसे काम नहीं हो सकता है। बच्चे को कभी न कभी किसी न किसी काम के लिए मेहनत तो करनी ही होगी। ठीक इस वक्त उन्हें बचाने ना आएं। जैसे टीचर ने उसे ऐसा काम करने के लिए दिया है जो काफी कठिन है और उसको करते हुए वो खुद को थका हुआ महसूस करने लगता है। तो उसको ये न समझाएं कि ‘अरे छोड़ो इसे’,’मेरा बच्चा परेशान हो गया’। बल्कि उसे वही काम आसान तरीके से करने का आइडिया दिया जा सकता है। मतलब आपको बच्चे को संघर्ष करने देना है। उससे बचाना नहीं है। 
चुने वो खुद-
बच्चे को अपने लिए समान चुनने का मौका दीजिए। जैसे टीशर्ट का कलर, लंच का खाना आदि। हां ये बात भी सही है कि बच्चे को कमान नहीं थमाई जा सकती है। इसलिए ऐसा करते हुए आप आप बच्चे को विकल्प दीजिए। विकल्प ताक वो चुने आपके बताए विकल्पों में से ही। जैसे लंच में उससे पूछे क्या खाओगे लेकिन साथ में दल-चावल, सब्जी रोटी और सूप का विकल्प दे दें। वो बस उन्हीं में से बताएगा। लेकिन चुनाव करने की ज़िम्मेदारी उसे खुशी देगी और आत्मविश्वास भी। इस तरह वो समझेगा कि उसकी बात की भी वैल्यू है। ना कि छोटा बच्चा मानकर उसे इगनोर कर दिया जाता है। 

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