बच्चे को उसकी करनी के कुदरती नतीजे भुगतने की जो सजा दी जाती है वे प्राकृतिक परिणाम कहलाते हैं यहा माँ-बाप का कोई दखल नहीं होता। जैसे यहाँ अगर बच्चा सब्जी-रोटी नहीं खाना चाहता तो उसे अगले खाने के समय तक भूखा रहना होगा। यदि इसे सही तरीके से करें तो यह बर्ताव सुधारने का सबसे अच्छा माध्यम हो सकता है। अगर ये इतना अच्छा साधन है तो माता-पिता अक्सर इसका इस्तेमाल क्यों नहीं करते। इसका जवाब रूबल की माँ से सुनें।
‘‘क्या बोलते हैं, डॉ. साहब, आपका दिमाग तो नहीं हिल गया? मतलब मैं रात के खाने तक उसे भूखा रहने दूँ।” मैंने हामी भरी तो वे बोली, ‘‘मैं क्या डायन हूं कि बच्चा भूखा रहे और मैं खा लूं। आप ऐसी बेरहम सलाह दे भी कैसे सकते हैं? मैं बच्चों के खाने से पहले एक निवाला सलाह दे भी कैसे सकते हैं? मैं बच्चों के खाने से पहले एक निवाला भी नहीं खाती। चाहे मुझे उसे मार कर ही क्यों न खिलाना पड़े।” मैं इस ममता के आगे बेबस रह गया।
प्राकृतिक परिणाम बच्चे को न केवल खाने के बारें में बल्कि उसकी जिंदगी के बारें में भी सबक देते हैं। ऐसे में आपको इस सवाल का जबाब देना होगा- आपके लिए क्या महत्व रखता है बच्चे के भूखा रहने से आपकी क्षणिक उदासी या सारी जिंदगी के लिए उसका अप्रसन्न व अस्वस्थ रहना। ये जान लीजिए कि उसकी अस्थायी भूख से उसके व्यक्तितव को कोई नुकसान नहीं होगा लेकिन प्राकृतिक परिणामों में आपके दखल के दीर्घकालीन प्रभाव ज्यादा नुकसान करेंगे यदि ध्यान से देखें तो जान पाएंगी कि आप ममतावश जो भी कर रही हैं, उसे आपके स्वार्थ के रूप में भी देखा जा सकता है।
कैसे?
आपकी सोच थीः-
बच्चा खाते वक्त अड़ियलपन दिखाता है (वह सिर्फ पुडिगं खाना चाहता है)
वह खाने से इंकार करता है। प्राकृतिक परिणामवश उसे भूख सताएगी
आपकी ममता उसे भूखा नहीं देख सकती। आप हार मान कर उसे पुडिगं दे देती हैं। आपके हिसाब से कहानी खत्म हो गई। इसमें नुकसान ही क्या? ज्यादा से लोग उसे बिगड़ा नबाब ही कहेगें। कहने दो?” आपकी गलतफहमी दूर करके सही तस्वीर दिखाना चाहूंगा-
मेरी तार्किक सोच हैः-
बच्चा आड़ियलपन दिखाता है नतीजन उसे भूख सहनी पड़ेगी। आप उदास हैं, आप खुद को खुश करने के लिए उसकी बात मान लेते हैं । जबकि आप जानते हैं कि ये उसके लिए अच्छा नहीं है। बच्चा अस्थायी रूप से खुश है और ये जान जाता है कि वह रो-पीट कर कोई भी जिद़ पूरी करवा सकता है।वह हमेशा जिद़ करके फास्ट फूड मांगता है- और बीमार व कमज़ोर होता है। बेचारा बच्चा दुनिया से भी यही उम्मीद रखता है। बेरहम दुनिया उसके मुंह पर तमाचा मारकर-उसका आत्मविश्वास तोड़ देती है। अवसाद ग्रस्त बच्चा मानसिक व शारीरिक रूप से असफल हो जाता है।
वह सारी जिंदगी उदास रहता है। जब आप यह सोचकर उसे खाने को कुछ देते हैं कि आप उसे भूखा नहीं रखना चाह रहें, दरअसल आप काफी स्वार्थी व्यवहार कर रहे होते हैं बस थोड़ा सा दिल न दुखे, इसी डर से आप अपने बच्चे को एक अस्वस्थ व असफल जीवन की ओर धकेल देते हैं।ठीक है, माना अभी तक आपने जो भी क्या अनजाने में किया लेकिन क्या सब जानने के बाद आप सही तरीके से पेश आएंगे?

इस सलाह पर अमल कैसे करें? सबसे पहले तो अपना दिमाग ठंडा रखें । जो भी उसे पसंद नहीं, फ्रिज में वही रखें। जब भी वह कुछ खाने के लिए मांगे, वही दें। मैं दोहराता हूँ-वही खाना, जिसे वह नापसंद करता है खाने की जगह दूध, बिस्कुट, फल या टाँफी न दें वरना ये गलत काम का इनाम देने वाली बात होगी। और परिणाम स्वरूप इस इनाम से उसके बुरे बर्ताव में वृद्धि होगी।
ठीक इसी तरह बहुत धीरे खाने वाले, जिसे एक चपाती खाने में आधा घंटा लगे, उसकी प्लेट उठा लें व सत के खाने तक, खाने को कुछ न दें। आपको खाना खत्म करने के लिए 20 या 30 मिनट का समय तय करना होगा। यहाँ आप सक्रिय रूप से ‘तर्किक परिणाम’ पर सब छोड़ रही है। पेरेंटिंग आसान नहीं होती। आपको बच्चे के भले के साथ अपनी ‘ममता’ का सतुंलन साधना होगा। एक दिन वह आपको इसी परख के लिए धन्यवाद देगा।