आधुनिक परिवेश में बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास की प्रक्रिया पहले की तुलना में काफी बदल गई है। आजकल बच्चों के पसंदीदा मनोरंजन खेलकूद व राजा-रानी और परियों की कहानियों की जगह कार्टून कैरेक्टर ने ले ली है। गोली-बंदूक व मार-धाड़ करने वाले इन कार्टून चरित्रों को देखकर बच्चों के मन पर वैसा ही उग्र प्रभाव पड़ता है। वे निजी जिंदगी में वैसे ही बनावटी तरीके से बात करने की कोशिश करते हैं। अपने दोस्तों, भाई-बहनों के साथ उसी अंदाज में लड़ाई-झगड़ा करते हैं और डांटने पर बड़ों के साथ बदतमीजी से बात भी करते हैं। इस बारे में फोर्टिस हॉस्पिटल,मेंटल हेल्थ व बीहेवियरल साइंस विभाग के निदेशक, मनोचिकित्सक समीर पारिख कहते हैं कि बच्चे बहुत कोमल होते हैं। आस-पास के परिवेश में होने वाली घटनाओं का बच्चे के मन व मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव पड़ता है। आजकल बच्चों की आउटडोर गेम एक्टिविटी तो लगभग खत्म सी हो गई है। उनका ज़्यादातर समय कंप्यूटर पर वीडियो गेम खेलने या फिर कार्टून देखने में गुज़रता है। इन गेम्स व कार्टूंस का उनके जहन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है जिसका परिणाम यह हो रहा है कि बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति और मानसिक बीमारियां बढ़ती जा रही हैं।

क्या हैं कारण :- आज तकनीकी उन्नति और पारिवारिक संस्था में आए परिवर्तन की वजह से खेल के मैदान का स्थान प्ले स्टेशन व टीवी ने ले लिया है। शिक्षा के लगातार बढ़ते बोझ के कारण खेलकूद और बाहरी क्रियाकलाप को वक्त की बर्बादी समझा जाने लगा है। पढ़ाई के बाद जितना समय मिलता है उसमें बच्चा या तो कार्टून देखता है या वीडियो गेम खेलता है। इसलिए बच्चों में चिड़चिड़ापन, जल्दी गुस्सा आना और बदतमीजी से बात करना आदि एक आम समस्या बनती जा रही है। हालांकि इसे माता-पिता नादानी का नाम देकर नजरअंदाज कर देते हैं। मनोचिकित्सक, डॉ. समीर पारिख का कहना है कि इस स्थिति में माता-पिता को चाहिए कि बच्चे की गलत आदतों को अनदेखा ना करें बल्कि उसके कारणों को जानने की कोशिश करनी चाहिए। हो सकता है कि खेलकूद न कर पाने या कार्टून चरित्रों के प्रभाव के कारण बच्चा स्कूल व घर में झगड़ा और बदजुबानी कर रहा है।

क्या करें :- अक्सर अभिभावक काम की व्यवस्तता और बच्चे की शैतानियों से तंग आकर उसे अकेले बैठकर कार्टून देखने देते हैं लेकिन उनको समझना होगा कि बच्चे के सही दिशा में मानसिक विकास की जिम्मेदारी भी उनकी ही है। इसलिए अगर आपका बच्चा कार्टून नेटवर्क ज्यादा देखता है या उसको देखकर बिगड़ गया है तो इन तरीकों को अपनाएं-

पहचान करें :- यदि आपका बच्चा भी हाइपरएक्टिव है और बदतमीजी करता है तो बेहद जरूरी है कि आप उसकी आदतों को पहचानें। उसके ऐसे व्यवहार के पीछे छिपे कारण को समझने की कोशिश करें। खेलकूद व बाहरी एक्टिविटीज में बच्चे की व्यस्तता बढ़ाएं। अगर बच्चे की रुचि हो तो उसे डांस क्लास ज्चाइन करवाएं।

आउटडोर गेम खिलाएं :- आउटडोर गेम खेलने के लिए बच्चे को बाहर लेकर जाएं।दिनभर टेलीविजन के सामने बैठे रहने की बजाय प्ले-ग्राउंड में खेलने से किस तरह बच्चे चुस्त-दुरुस्त रहते हैं और इसका लाभ क्या है, इस बारे में बच्चे को समझाएं। ऐसा करने से न सिर्फ बच्चे की अतिरिक्त शारीरिक ऊर्जा व्यय होगी साथ ही उसका इम्यून सिस्टम भी मजबूत होगा। आउटडोर गेम्स खेलने से बच्चे का स्टेमिना भी बढ़ता है। इससे भविष्य में दिल संबंधी बीमारी होने की आशंका भी कम हो जाती है। यदि बच्चा रोजाना एक घंटे दौडऩे, भागने या तैरने का खेल खेलता है, तो इससे बच्चे की मांसपेशियां भी मजबूत होती हैं। आउटडोर गेम्स खेलने से बच्चों में प्रतियोगिता की भावना विकसित होती है, जो बच्चों को मानसिक तौर पर मजबूत बनाते हैं, जिससे वे ज्यादा सक्रिय बनते हैं।

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दूसरों के सामने नहीं डांटें :- अकसर देखने में आता है कि माता-पिता बच्चे की बदतमीजी व बदजुबानी करने पर उसे दोस्तों और रिश्तेदारों के सामने ही डांटने- फटकारने लगते हैं, जो कि सही नहीं है। माता-पिता को यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि ऐसा करने से बच्चे की मानसिकता, आत्मविश्वास और दोस्तों व रिश्तेदारों के साथ संबंध पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है इसलिए बच्चे को अकेले में ही समझाएं, दूसरों के सामने ना डांटें। मनोचिकित्सक कहते हैं कि ऐसी स्थिति में डांटने के बजाय उनके ऐसे व्यवहार के पीछे के कारण का पता लगाना चाहिए। आसपास का माहौल और रहन-सहन ऐसा होना चाहिए ताकि वह इस तरह के व्यवहार से बाहर आ सके। 

बच्चों के साथ खेलें :- आजकल बच्चों की आउटडोर गेम एक्टीविटी तो लगभग खत्म सी हो गई है। उनका ज्यादा समय कंप्यूटर पर वीडियो गेम खेलने या फिर कार्टून देखने में गुजरता है।ऐसे समय में माता-पिता को चाहिए कि वह अपने खुद के गुस्से, चिड़चिड़ेपन और चिंताओं में सामंजस्य बनाए रखें। रोजमर्रा के जीवन में खुद को चिंता मुक्त रखने के लिए बाहर घूमने जाएं और बच्चे के साथ खेलने और नए-नए मनोरंजन के तरीके भी ढूंढे। ऐसा करने से और मिलकर खेलने से बच्चों में सहयोग की भावना विकसित होती है और बच्चे के विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

साथ में कार्टून देखें :- अगर बच्चा कार्टून देखना चाहता है तो उसके साथ बैठकर आप भी कार्टून देखें ताकि आप उस पर नजर रख सकें कि कहीं वह कोई हिंसात्मक कार्टून तो नहीं देख रहा। आपके बच्चे को कौन सा कार्टून देखना है और कौन सा नहीं, इसका चयन माता-पिता को ही करना चाहिए।

अच्छे-बुरे का फर्क समझाएं :- सारा दिन बच्चों को कार्टून न देखने दें। उनके देखने का समय निर्धारित करें। सिर्फ कार्टून ही नहीं बल्कि अच्छी व मनोरंजक कॉमिक्स और किताबें पढऩे के लिए भी बच्चों को प्रेरित करें। कार्टून में भी अच्छे-बुरे सभी तरह के किरदार होते हैं। बच्चों को इनके बीच का फर्क समझाएं।

हर सवाल का जवाब दें :- अक्सर देखने को मिलता है कि बच्चे जिज्ञासावश कई प्रकार के सवाल करते हैं और उन सवालों से तंग आकर अभिभावक उसे चुप रहने के लिए डांट देते हैं लेकिन ऐसा कभी नहीं करना चाहिए, बल्कि उसकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उसके हर सवाल का जवाब दें। यदि आपको किसी सवाल का जवाब नहीं मालूम हो तो उसकी जानकारी हासिल कर बच्चे को समझाएं।

संदेशात्मक कार्टून देखने दें :- यह बात सही है कि कुछ कार्टून में अच्छे संदेश भी छिपे होते हैं इसलिए उन्हें अपने बच्चों तक पहुंचाएं जैसे- आजकल महाभारत, रामायण, बुद्ध और कृष्ण आदि के भी कार्टून फिल्म या सीरियल आ रहे हैं। आप ये बच्चों को दिखाएं ताकि बच्चा उनमें दिए गए संदेशों से रूबरू हो सके।

मनोरोग विशेषज्ञ का सहारा लें :- यदि इन सब बातों का ध्यान रखने के बावजूद भी बच्चे के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आता है और वह उद्दंड होता जा रहा है तो जरूरी है कि बच्चे की मन: स्थिति का विश्लेषण करने के लिए मनोरोग विशेषज्ञ से सलाह करें।

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