ओशो ने मेरी समझ को विकसित किया है: Osho Lessons
Osho Life Lessons

Osho Lessons: ओशो खड़ी बोली हिंदी के सर्वाधिक जीवंत दार्शनिक और प्रखर भाष्यकार हैं। ओशो की विनोदवृति खासी आकर्षक है। पते की बात हंसते-हंसते कह जाने की कला श्रोताओं, पाठकों को उनके हृदय के साथ तत्काल जोड़ देती है। कहीं कोई दूरी नहीं। बीच का कोहरा एक दम से छट जाता है। हंसमुख, उदार दोस्त दृष्टिï सच्चे सादे की पहचान है। ओशो की भाषा कभी पांव थपक-थपक कर नहीं चलती। हमेशा हल्के पांव से तितली चाल से आगे बढ़ती है। और ठीक वहीं उंगली रखती है जहां पाठ का मर्म छुपा हो। ओशो के सब प्रमुख भाष्य मैंने पढ़े हैं-गोरख, कबीर, मीरा, नानक, दादू दयाल आदि कवियों और बुद्ध, शंकराचार्य, महावीर, नानक आदि पथ प्रवर्तकों ऌपर मेरी सूक्ष्मतक समझ विकसित करने में ओशो की बड़ी भूमिका है, पर इन सब को मैं पहले से भी कुछ तो जानती मानती थी। जो जिस विषय की आद्योपांत समझ ओशो की ही दी हुई है-वह है ‘विज्ञान भैरव तंत्र। तंत्र को लेकर मेरे मन में जो भ्रांत धारणाएं थीं, जो अज्ञात भय थे इनको पढ़ने से धुले। यह एक बड़ा दृष्टि विस्तार था। जिसके लिए मैं हमेशा उनकी कृतज्ञ रहूंगी। पाठकीय धैर्य के अभाव और मीडिया के दुष्प्रचार के कारण मूर्तिभंजक चिंतकों को अक्सरही गलत समझा जाता है, ओशो के साथ एक विशेष बात यह हो गई कि उनके अपने शिष्यों में भी कुछ ऐसे उथले लोग शामिल हो गये जिन्हें मूलाधार के आगे बढ़ना ही नहीं था। ओशो तो कभी किसी चक्र पर फसे अटके रह जाने की बात भी नहीं करते, पर कुछ लोग ‘सेक्स गुरु’ और ‘रॉल्स रॉयस’ के शोभिक राजसी के रूप में उन्हें प्रोजेक्ट करते चले गये। ओशो ने यह छवि खंडित करने की कोशिश भी न की, शायद इसलिए कि उनके चिह्नï की जो अवस्था थी, उसमें गाड़ियां, ऐश्वर्य सब खेल-खिलौने ही थे। खेल-खिलौनों को लेकर उठे विवाद उन्हें हास्यस्पद ही लगे होंगे तो उन्होंने ध्यान न दिया होगा। ओशो की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनका चिंतन प्रधान गद्य भी लालित्यपूर्ण है कहीं भी वह एक क्षण के लिए बोझिल नहीं लगता। सरल होना बहुत कठिन होता है। यह पिकासो जैसे चित्रकार के लिए ही संभव है कि वह हाथ के एक स्ट्रोक से एक दम सरल रेखा का पूर्ण शून्य खींच ले। एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर रहे ओशो, गंभीर, अकादमिक भाषा में एक से एक शोध पत्र लिख सकते थे, पर उन्हें तो जन मन तक ज्ञान गंगा उतारनी थी। इसलिए गंभीर गुत्थियां सुलझाने वाले प्रांजल गद् का सरलीकरण इन्होंने किया। दुरूह से दुरूह बात ऐसे नफीस और सरल ढंग से अन्य संत अक्सर कह नहीं पाते। जो दो एक कहते भी हैं, बस अपनी बातें कहते हैं। पूरी पौर्वात्य और पश्चिमी चिंतन परंपरा के आधार गं्रथो और आधार चिंतकों से ऐसा प्रज्ञापूर्ण चयन और उनकी पाठ गं्रथियों को खोलते हुए, उनके साक्ष्य के आलोक में जीवन जगत का मूल मर्म उद्ïघाटित करने वाली मौलिक प्रथनियों का अवगाहन शायद ही किसी ने किया हो। एक पंक्ति में यही कहूंगी कि हिंदी पट्ïी के कस्बे-कस्बे, गांव-गांव में जो थोड़े भी ऊर्जस्वी युवक, औरतें और बुजुर्ग हैं उन्हें जीवन की विकटतम घड़ियों में इनकी किसी न किसी पुस्तक ने रास्ता दिखाया है। इनकी ज्यादातर पुस्तकें ऐसे मंणिदीप पकड़ाती हैं कि पाठक, श्रोता का चित्त एक नया आयाम धारण कर लेता है और ‘खुल जा सिमसिम’ भाव से खुल जाता है। एक नये खजाने की ओर जो हमारे भीतर ही गहरा गड़ा है। मेरा बहुत भाव है कि अपने जीवन काल में मैं उन पर कुछ अवश्य लिखूं।