Mantras For Study: मानव जीवन मनुष्य के लिए एक ऐसी पुंजी है जो उसको कई यौनियों के बाद मिलता है। लेकिन उस जीवन को जीने के लिए हमारे अंदर सकारात्मकता का भाव होना बेहद जरूरी होता है। हम स्वयं जैसी भावना रखते है वैसे ही भावना हमारे बच्चों के अंदर विकास होती है। लेकिन आजकल माता-पिता के लिए एक बेहद समस्या बनी हुई है कि उनके बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लगता है। इसके लिए जरूरी है कि आप बच्चे के सामने सकारात्मक माहौल बनाएं। साथ ही संस्कृत के कुछ श्लोक जो ज्ञान से परिपूर्ण है। जो हमें जीवन जीने का सही मार्गदर्शन करते है हमारे अंदर शिक्षा के प्रति सकारात्मक भाव को विकसित करते है। आज इस लेख में हम आपको कुछ श्लोकों के बारे में बताएंगे, जिनका मतलब समझाते हुए बच्चों को सिखाएं। इन मन्त्रों का जाप करने से बच्चे का पढ़ाई में अच्छे से मन लगने लगेगा।
काम क्रोध अरु स्वाद, लोभ शृंगारहिं कौतुकहिं।
अति सेवन निद्राहि, विद्यार्थी आठौ तजै।।
भावार्थ: इस श्लोक का हिंदी में अर्थ है कि हमें काम, क्रोध, स्वाद, लोभ, शृंगार, मनोरंजन, अधिक भोजन और नींद आदि से बहुत ज्यादा प्रेम नहीं होना चाहिए। इन्हें त्याग देना चाहिए। तभी आप शिक्षा के सही मायने समझ पाएंगे।
विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम्।।

भावार्थ: जब आप शिक्षा प्राप्त करते हैं तो आपके अंदर विवेक और नम्रता का विकास होता है। साथ ही आपको किसी भी क्षेत्र में एक अच्छा स्थान प्राप्त होता है। जब आपको एक सही पद मिलता है तो आप उससे अच्छा धन भी कमाते हैं। इसलिए अगर आपको एक सफल जिंदगी चाहिए तो पढ़ाई ही मूल आधार है।
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
भावार्थ: इस श्लोक में बताया गया है कि हमारे लिए हमारे गुरू से बढ़कर कोई नहीं है। क्योंकि गुरू हमें सही मार्गदर्शन देते है। गुरू ही विष्णु जो हमारे रक्षक है। गुरू ही जीवन आए कष्टों में से निकलने का मार्गदर्शन देते हैं। गुरू ब्रह्मा का ही रूप है जो धरती पर अवतरित है। इसलिए गुरू को सादर प्रणाम।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनंरू।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं।।
भावार्थ: हमेशा ध्यान रखें कि अपने से बड़े बुजुर्गों की सेवा पर ध्यान दें। क्योंकि जो बड़े बुजुर्गों की सेवा पर ध्यान देते दें उन्हें विद्या, आयु, यश और बल प्राप्त होता है। इसलिए हमेशा बड़े बुजुर्गो की सेवा जरूर करें।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगारू।।
भावार्थ: कभी भी कोई इच्छा करने से कोई कार्य पूरा नहीं होती है हमें उसके लिए मेहनत करनी पड़ती है। जैस-सोए हुए शेर के मुंह में अपने आप हिरण नहीं आ जाता उसके लिए शेर को हिरण का शिकार के लिए मेहनत करनी पड़ती है।
न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।
भावार्थ: ये एक ऐसा धन है इसे न कोई चोर चुरा कर ले जा सकता है। और न ही राजा इसे छीन सकता है। साथ ही भाइयों में इसका बंटवारा नहीं हो सकता है। इसे न संभालना मुश्किल होता है। साथ ही इसको खर्च करने पर कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है। वो है विद्या, यह सभी धनों में से सर्वश्रेष्ठ धन है।
षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता।।
भावार्थ: वे मनुष्य ही पतन की वजह बनते है, जिनके अंदर है नींद, थकान, भय, क्रोध, आलस और कार्य को टालने की आदत होती है। इसलिए बच्चों को इन सभी से दूर रखें और उन्हें इसके इन सब चीजों पर पढ़ाई में पढ़ने वाले नतीजे के बारे में बताएं।
काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।
भावार्थ: अगर किसी बच्चे को विधार्थी होने का महत्व बताना है तो इस श्लोक के भाव को बताएं। कि एक विधार्थी में पांच चीजे होनी चाहिए। उसमें कौवे की तरह कुछ नया जानने की हमेशा इच्छा होनी चाहिए। बगुले की तरह ध्यान और एक्राग्रता। साथ ही कुत्ते जैस नींद जो एक ही आहट में खुल जाए। साथ ही अल्पहारी जो जब खाने की आवश्यकता हो तभी खाए। और गृहत्यागी।
देवो रुष्टे गुरुस्त्राता गुरो रुष्टे न कश्चनरू।
गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता न संशयः।।
भावार्थ: देवता रूठ जाए तो गुरू आपकी रक्षा कर सकते है। लेकिन अगर गुरू रूठ जाए तो उस त्यक्ति के पास कोई नहीं होता है। गुरू ही आपकी रक्षा करते है। इसका अभिप्राय की अगर विश्व व भाग्य किसी से विमुख हो जाए तो गुरू की कृपा से सब सही हो जाता है। गुरू आपकी सभी मुश्किलों को दूर करते हैं।
रूप यौवन सम्पन्नाः विशाल कुल सम्भवाः।
विद्याहीनाः न शोभन्ते निर्गन्धाः इव किंशुकाः।।
भावार्थ: अगर आप सुंदर है और आपने उच्च कुल में जन्म लिया है लेकिन उसने शिक्षा प्राप्त नहीं की है तो वह उस फूल के समान है जो दिखता तो सुंदर है लेकिन उसमें खुशबू नहीं होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य की असली खुशबू और पहचान शिक्षा और ज्ञान है।
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।
भावार्थ: जिन लोगों का दिल छोटा होता है वह हमेशा मेरा-तेरा करते रहते है लेकिन जिनका दिल बड़ा होता हैं वह पूरी धरती को अपना परिवार मानते है।
मूर्खस्य पञ्च चिह्नानि गर्वो दुर्वचनं मुखे।
हठी चौव विषादी च परोक्तं नैव मन्यते।।
भावार्थ: बच्चों को शिक्षा दी जाती है कि उनका व्यक्तित्व बेहद मायने रखता है। तो जरूरी है कि वह इस श्लोक पर ध्यान दें। सबसे पहले उनको अहंकार नहीं करना चाहिए फिर कड़वी बात करने से बचे, और ज्यादा जिद्दी न बने और हमेशा गंदा सा चेहरा न बनाए रखे साथ ही किसी का कहना न मानना ये आपके व्यक्तित्व पर असर डालता है इसलिए इन सभी से बचें।
दुर्जनरू परिहर्तव्यो विद्यालंकृतो सन।
मणिना भूषितो सपर्रू किमसौ न भयंकररू।।
भावार्थ: कई बार गलत लोग भी शिक्षा प्राप्त कर लेते है लेकिन ऐसे लोगों से बचना चाहिए। जैसे मणि युक्त सांप भी भयंकर होता है। इसका मतलब है कि जो लोग गलत है वह बुद्धिमान है भी तो भी उनकी संगत सही नहीं है। इसलिए ऐसे से लोगों से सदैव बचना चाहिए क्योंकि लोग बेहद खतरनाक होते हैं।