मध्यप्रदेश के शारदा मंदिर का रहस्य
इस मंदिर को लेकर कई तरह के दावे किये जाते है जो रहस्यों से भरे हुए है।
Maihar Mata Temple: मध्यप्रदेश में यूँ तो बहुत से मंदिर है लेकिन आज हम बात सतना जिले में बसे मैहर माता मंदिर की करने जा रहे है। इस मंदिर को लेकर कई तरह के दावे किये जाते है जो रहस्यों से भरे हुए है। कहा जाता है कि मंदिर के कपाट बंद होने के बाद सुबह मंदिर के कपाट खुलने से पहले आज भी सदियों पुराने राजा आल्हा और उदल माता की सबसे पहले पूजा करते है। लेकिन दावा ये भी है कि आज तक इनको कोई नहीं देख पाया है और जो देख लेता है वो जिंदा नहीं बचता है। इस मंदिर से जुड़ी आपको इन राजा की कहानी बताएँगे। इससे पहले ये जानते है कि आखिर ये मंदिर कहां बसा हुआ है और इस मंदिर की क्या ख़ास बात हैं?
क्यों हैं मंदिर ख़ास?
मैहर माँ शारदा का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है जो मध्यप्रदेश के त्रिकुट पर्वत की मालाओं की बीच जमीन से 600 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। इस ऐतिहासिक मंदिर को माता के 108 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि यहाँ माता सती का हार आकर गिरा था। इसी कारण इस मंदिर का नाम शारदा माता मंदिर पड़ा। इस मंदिर की ख़ास बात ये है कि ये एक ऐसे पर्वत पर बसा है जो त्रिकुट के बिलकुल मध्य में स्थित है। इस मंदिर पर पूरे 1052 सीढियाँ है। इसके साथ ही मंदिर के कई रहस्य है जो मंदिर की प्राचीनता और ऐतिहासिकता के बारे में बताते है। चलिए हम आपको बताते है कि आखिर इस मंदिर से जुड़ी ऐतिहासिक कहानी क्या है?
मंदिर से जुड़ी ऐतिहासिक कहानी
बुंदेलखंड में आल्हा और ऊदल नाम के दो भाई हुआ करते थे कहा जाता है कि आल्हा ने माता शारदा की 12 साल कड़ी तपस्या की थी जिसके बाद उसे अमर होने का वरदान प्राप्त हुआ था। वहां की ये मान्यता है कि आज भी आल्हा ऊदल घोड़े पर सवार होकर सबसे पहले मंदिर पहुंचता है और माता की पूजा आरती करता है। बहुत सारे ऐसे साक्ष्य पाए गए है जिससे ये तो सिद्ध होता है कि रोजाना कोई शक्ति माता के मंदिर में प्रवेश करती है और पूजा करती है। लेकिन आजतक इन आल्हा ऊदल को कोई नही देख पाया है। कई वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने इसके पीछे का कारण, रहस्य जानने का प्रयास किया है लेकिन आज तक वो नही जान पाए है।
कहा ये भी जाता है कि आल्हा और ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था पृथ्वीराज चौहान भी माता शारदा के भक्त थे। आल्हा ऊदल ने ही जंगलो के बीच जाकर माता के मंदिर की खोज की थी और वहां 12 साल तक तपस्या की जिसके बाद शारदा माता ने खुश होकर उन्हें अमरत्व का वरदान दिया था। ये ऐतिहासिक मंदिर 559 में बना था, माता वैष्णो देवी की तरह ऊंचे पर्वत पर स्थित होने के कारण इसे वैष्णो देवी धाम की ही तरह मान्यता प्राप्त है।
कैसे पहुंचे मंदिर ?
इस मंदिर आने के लिए आप डायरेक्ट सतना के रेलवे स्टेशन तक ट्रेन से आ सकते है। यहाँ से उतरने के बाद आपको 20 से 50 रूपये प्रतिव्यक्ति पर ऑटो या रिक्शा मिल जाएगा, जो सीधा आपको मंदिर तक पहुंचा देगा। स्टेशन से मंदिर की दूरी मात्र दो किमी ही है। आप चाहे तो मंदिर के आसपास होटल लेकर आराम करने के बाद अपनी चढ़ाई कर सकते है।