Kritika Rajput win the prestigious Himachal Kesari 2025 title
Kritika Rajput

Summary: कृतिका राजपूत बनीं पहली महिला ‘हिमाचल केसरी’

हिमाचल की कृतिका राजपूत ने संघर्ष और साहस के बल पर ‘हिमाचल केसरी 2025’ का खिताब जीतकर इतिहास रच दिया। वह यह उपाधि पाने वाली पहली महिला पहलवान बनीं।

Himachal Kesari Kritika Rajput: एक लड़की को किसी खास मुकाम तक पहुंचने के लिए कितनी बाधाओं और तकलीफों का सामना करना पड़ता है, इस बारे में उससे बेहतर कोई और नहीं बता सकता है। कुछ ऐसी ही बाधाओं का सामना हिमाचल प्रदेश की निवासी कृतिका राजपूत को भी करना पड़ा, जो कुश्ती में अपना करियर बनाना चाहती थीं। लेकिन कृतिका ने हार नहीं मानी और आज वह प्रतिष्ठित “हिमाचल केसरी 2025” का खिताब जीतने वाली पहली महिला बनकर इतिहास में अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं। 

कृतिका राजपूत हिमाचल का गौरव हैं, जिन्होंने कुश्ती में लैंगिक बाधाओं को तोड़ दिया है। उनक नाम इतिहास में दर्ज हो चुका है क्योंकि वह महिला कुश्ती के क्षेत्र में एक उभरता सितारा हैं। कृतिका से पूरे देश के अनगिनत युवा एथलीटों को प्रेरणा मिल रही है। आज उनका नाम राज्य से आगे बढ़कर देश भर के अखाड़ों, जिम और घरों में गूंज रहा है। कई लोगों के लिए वह हिमाचल केसरी की उपाधि वाली चैंपियन हैं। लेकिन इसके पीछे एक ऐसी यात्रा छिपी है, जो इतनी शानदार और प्रेरणादायक है कि सबको कृतिका राजपूत की कहानी और उनकी मेहनत के बारे में जानना चाहिए।

कृतिका राजपूत उन आम लड़कियों में शामिल नहीं हैं, जिनका सपना घर के काम सीखना रहा है। कृतिका के गांव और आस पास की अधिकतर लड़कियों को जहां पारंपरिक रास्तों की ओर प्रोत्साहित किया जाता था, वहीं कृतिका को शुरुआत से ही कुश्ती ने प्रभावित और आकर्षित किया। चूंकि यह क्षेत्र पुरुषों के वर्चस्व वाला है, जिसमें सिर्फ ताकत की जरूरत थी, तो कृतिका को अधिक मेहनत भी करनी पड़ी। इस क्षेत्र में जाने और कुछ कर दिखाने के लिए विद्रोह, धैर्य और दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत थी। अच्छी बात तो यह थी और है कि कृतिका राजपूत के पास ये तीनों चीजें थीं।

कृतिका राजपूत के सुबह की शुरुआत स्कूल की किताबों से नहीं, बल्कि ऊपर की ओर दौड़ने और अपने शरीर के वजन से अधिक भारी पत्थर उठाने से होती थी। उन्हें कोच भी कम मिले, लेकिन प्रेरणा उनके अंदर कूट कूट कर भरी थी। हां, वक चीज थी उनके पास, और वह था फोन, जिसकी स्क्रीन पर वह गीता फोगट के पुराने मैच देखा करती थीं।

कृतिका की यात्रा में कुछ भी आसान नहीं था। गांव में कानाफूसी, स्कूल में मजाक, यहां तक कि घर में विरोध के स्वर भी उठे। लेकिन वह डटी रही और उठने वाले हर “नहीं” को अपना अगला पुश अप बनने दिया। कृतिका राजपूत की पहली जिला स्तरीय हार ने उन्हें नहीं तोड़ा बल्कि आगे बढ़ने और अधिक मेहनत करने की हिम्मत प्रदान की। कृतिका राजपूत ने एक इंटरव्यू में जैसा कहा था, “या तो आप जीतते हैं, या आप सीखते हैं,”। 

इस तरह कई साल बीतते गए और कृतिका राजपूत की बाधाएं भी खत्म होती गईं और वह हिमाचल केसरी चैंपियनशिप तक पहुंच गई। जब कृतिका ने 2024 की राज्य चैंपियनशिप में अपने अंतिम प्रतिद्वंद्वी को हराया, तो भीड़ में उत्साह भर गया। वह अब सिर्फ अपने लिए कुश्ती नहीं लड़ रही थी, बल्कि हिमाचल की हर उस युवा लड़की के लिए एक चेहरा बन गई थी, जो सोचती थी कि स्पोर्ट्स उनके लिए नहीं है। तब से कृतिका ने कई स्कूलों का दौरा किया है, कॉलेजों में भाषण दिया है और युवा पहलवानों के साथ प्रशिक्षण लिया है। कृतिका राजपूत अब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं को ध्यान में रखते हुए ट्रेनिंग लेती हैं। 

स्पर्धा रानी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज ने हिन्दी में एमए और वाईएमसीए से जर्नलिज़्म की पढ़ाई की है। बीते 20 वर्षों से वे लाइफस्टाइल और एंटरटेनमेंट लेखन में सक्रिय हैं। अपने करियर में कई प्रमुख सेलिब्रिटीज़ के इंटरव्यू...