जानिये कुंभ मेले के पीछे की क्या है पौराणिक कहानी?: Mythology of Kumbh
Mythology of Kumbh

आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग

इस मेले में करोड़ों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं और संगम या पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। जिसे आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है।

Mythology of Kumbh: कुंभ मेला हमारे देश का सबसे बड़ा और पवित्र धार्मिक आयोजन है। यह हर 12 वर्षों में चार पवित्र स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। इस मेले में करोड़ों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं और संगम या पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। जिसे आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है। कुंभ मेले की परंपरा सदियों पुरानी है, और इसके पीछे एक गहरी पौराणिक कथा छिपी हुई है। यह कथा समुद्र मंथन और अमृत के बंटवारे से जुड़ी हुई है।

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Mythology of Kumbh
Story of Samudra Manthan

कुंभ मेले की पौराणिक कहानी की जड़ें समुद्र मंथन की घटना में निहित हैं जो हिंदू धर्मग्रंथों, विशेषकर श्रीमद्भागवत और विष्णु पुराण में वर्णित है। एक बार असुरों और देवताओं के बीच यह तय हुआ कि वे मिलकर समुद्र मंथन करेंगे और उसमें से निकलने वाले अमृत को समान रूप से बांटेंगे। समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और वासुकि नाग को रस्सी के रूप में उपयोग किया गया। मंथन के दौरान समुद्र से अनेक दिव्य वस्तुएं और प्राणी निकले। जैसे कामधेनु गाय, कल्पवृक्ष, विष, और अंत में अमृत से भरा हुआ कुंभ। अमृत के साथ देवताओं और असुरों के बीच विवाद शुरू हो गया।

अमृत कुंभ के प्राप्त होने के बाद देवता और असुर इसे हासिल करने के लिए आपस में भिड़ गए। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। विष्णु जी ने मोहिनी रूप धारण किया और असुरों को धोखा देकर अमृत कलश देवताओं को सौंप दिया। अमृत कलश को सुरक्षित रखने के लिए देवताओं ने इसकी रक्षा का जिम्मा गरुड़, इंद्र, चंद्रमा और सूर्य को सौंपा। असुरों ने इसे हासिल करने की कोशिश की और इस दौरान अमृत से भरा कुंभ चार स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक पर रखा गया। संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें इन चार स्थानों पर गिर गईं। कहा जाता है कि जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं वे स्थान पवित्र हो गए और कुंभ मेले की परंपरा की शुरुआत यहीं से हुई।

Puja
Astrological and Spiritual Importance

कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि इसका गहरा ज्योतिषीय महत्व भी है। कुंभ मेला तब आयोजित होता है जब बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा एक विशेष खगोलीय स्थिति में आते हैं। इसे कुंभ योग कहा जाता है। यह संयोग हर 12 वर्षों में बनता है और इन स्थानों को पवित्रता प्रदान करता है। कहा जाता है कि इन विशेष दिनों में इन पवित्र नदियों में स्नान करने से आत्मा के सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कुंभ मेले की परंपरा का उल्लेख महाकाव्य महाभारत और अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। आदि शंकराचार्य ने भी कुंभ मेले को संगठित रूप दिया और इसे जनमानस तक पहुंचाया। मेला भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और परंपरा का जीवंत उदाहरण है। इस आयोजन के जरिए भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की जड़ें और गहरी होती हैं। कुंभ मेला, जहां लाखों श्रद्धालु आस्था और भक्ति के साथ इकट्ठा होते हैं, केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि मानवता और आध्यात्मिकता का सबसे बड़ा उत्सव है।

संजय शेफर्ड एक लेखक और घुमक्कड़ हैं, जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में हुआ। पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और मुंबई में हुई। 2016 से परस्पर घूम और लिख रहे हैं। वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन एवं टोयटा, महेन्द्रा एडवेंचर और पर्यटन मंत्रालय...