karma

Karma: वेदों में केवल ईश्वर की प्रार्थना और उपासना पर जोर नहीं दिया गया है, बल्कि ऐसे कर्म करने की सलाह दी गई है, जिनसे लोक-परलोक को सुधारा जा सके। ‘कर्म’ शब्द संस्कृत के ‘कर्मन’ से बना है, जिसका अर्थ ‘क्रिया’ होता है। भारतीय दर्शन के अनुसार, इसे कार्य करने के मौलिक नियम के रूप में परिभाषित किया गया है। किसी कार्य को करने के पीछे छिपे इरादे ही व्यक्ति का भविष्य तय करते हैं।

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क्या है लोक-परलोक ?

अक्सर लोग लोक-परलोक का अर्थ यही निकालते हैं कि उनके जीवन में जो कुछ भी दिख रहा है, वह लोक है। उदाहरण के तौर पर घर, परिवार और समाज आदि के बीच नित्य उठना-बैठना और कार्य करना। परलोक का आशय है मृत्यु के बाद का कोई ऐसा संसार, जहां इस धरा से भिन्न जीवन हो। परलोक का विभाजन स्वर्ग और नर्क के रूप में किया जाता है। पूजा-पाठ और दान-दक्षिणा में विश्वास करने वाले लोग अपने कार्यों के जरिए लोक-परलोक सुधारने का प्रयास करते हैं।

कैसे कर्म करने चाहिए?

जब हम कोई अच्छा काम करते हैं तो मन में प्रसन्नता होती है और आत्मविश्वास बढ़ता है। इसके ठीक अलग अगर हमने कोई गलत काम किया हो तो मन डरता है। गलत कामों का एक असर घर-परिवार के सदस्यों पर भी यह पड़ता है। छल-प्रपंच या किसी गलत इरादे से प्राप्त की गई वस्तु या धन का जब घर के अन्य सदस्य उपयोग करते हैं, तो उनके अंदर भी नकारात्मकता का बीजारोपण होता है। इसलिए समय-समय पर हमें अपने कार्यों का आत्ममुल्यांकन जरूर करना चाहिए। जीवन में सदाचार का रास्ता अपनाकर ही हम पद, प्रतिष्ठा और पैसा कमा सकते हैं और अपना आचरण सुधार सकते हैं। जब कोई कार्य करने के बाद मन दुखी होने लगे तो समझ लेना चाहिए कि लोक-परलोक, दोनों बिगड़ रहे हैं।

भाग्य और कर्म में अंतर

मनुष्य अपने अच्छे­-बुरे कर्म, दोनों से ही परिचित होता है। वह जो भी चुनता है, उसकी स्वतंत्र इच्छा (कर्म) पर निर्भर करता है और यह इच्छा उसके भाग्य को बनाती या बिगाड़ती है। कर्म स्पष्ट रूप से भाग्य से अलग है। आपके कर्म ही भाग्य को परिवर्तित कर सकते हैं। जन्म कुंडली में भी भाग्य अडिग है, लेकिन कर्म लचीला है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, किसी के अच्छे कर्म उसके बुरे भाग्य को भी सुधार सकते हैं और बुरे कर्म अच्छे भाग्य को खराब कर सकते हैं।

ज्योतिष शास्त्र में कर्म का सिद्धांत

जब हम अपने कर्म की बात करते हैं, तो उस कार्य  की बात करते हैं जो हमारे द्वारा अतीत में किया गया है। आपके द्वारा किए गए सद्कर्म भूतकाल के लाभकारी कार्यों का परिणाम होते हैं और अगर जिवन बुरे दौर से गुजर रहा है तो संभव है कि पिछले जन्म के बुरे कार्यों के फलस्वरूप ऐसा हो रहा है। ध्यान रहे कि जब आप किसी की तारीफ करते हैं तो आप उनके अच्छे कर्म का प्रभाव ग्रहण करते हैं और जब आप किसी की बुराई करते हैं तो आप उसके बुरे कर्मों का प्रभाव आप पर भी पड़ रहा होता है।

कर्म फल की इच्छा न करें

एक बार जब आप कोई कार्य करते हैं तो उसका परिणाम आपके पक्ष में आएगा या नहीं, इसकी इच्छा छोड़ दें। आपकी यह सोच कार्य को आसान बना देते हैं। उदाहरण के तौर पर जब कोई व्यक्ति कोई काम सिर्फ इसलिए करता है, क्योंकि उसे वह काम पसंद है और उसकी यह इच्छा भी होती है कि दूसरा भी उसके कार्य का आनंद उठाए, तब वह कार्य उसको नहीं उलझाता नहीं है। कर्म से अपेक्षा ही आपको उलझाती है। जहां भी आप किसी अपेक्षा के बिना कर्म करते हैं, आपका अनुभव क्या होता है और जहां आप किसी उम्मीद से कर्म करते हैं, वहां आपका अनुभव कैसा होता है। यह अनुभव ही आपके लोक-परलोक को सुधार सकता है।

महिलाएं सबसे बड़ी कर्मयोगी

भारतीय संस्कृति में महिलाओं को पुरुषों से बेहतर कर्मयोगी माना जाता है। घर-परिवार में पति और बच्चों के साथ एक गृहस्थ जीवन का दायित्व निभाना एक पूर्णकालिक काम है। माताएं, बहनें और पत्नियां जब घर में खाना पकाती हैं तो चाहे वे उसे खुद खाएं या न खाएं, वे अपने परिवार को सबसे पहले खिलाना चाहती हैं। वे जो कुछ भी करती हैं, उसके लिए किसी फल की इच्छा नहीं करतीं।

Disclaimer : यहां लेख केवल मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।