स्नान और ध्यान का पर्व मकर संक्रांति: Makar Sankranti Festival
Makar Sankranti Festival

Makar Sankranti Festival: वसंत के आने के पूर्व तैयारी का पर्व है मकर संक्रांति। यह पर्व हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन सूर्य अपना अयन बदलता है। क्या महत्त्व है मकर संक्रांति का तथा कौन सी हैैं इस पर्व से जुड़ी कथाएं आइए जानते हैं-

Makar Sankranti Festival: उत्तरायण होने का अर्थ

मकर संक्रांति अंग्रेजी श्ग्रेगोरियन कैलेंडर्य की 14 जनवरी को ही आती है, इसलिए इसकी आगमन पद्धति अन्य त्योहारों से भिन्न है। मकरादि छह तथा कर्कादि छह राशियों का भोग करते समय सूर्य देव क्रमशरू उत्तरायण और दक्षिणायन में रहते हैं। इसी दिन से सूर्य देव के उत्तरायण होने से देवताओं का ब्रह्म मुहूर्त प्रारंभ हो जाता है। अतरू उत्तरायण होने पर वे देवताओं के अधिपति तथा दक्षिणायन होने पर पितरों के अधिपति होते हैं। सूर्य के उत्तरायण होने के विषय में गीता के आठवें अध्याय के 24वें श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं-
श्अग्निज्र्याेतिरहरू शुक्लरू षड्मासा उत्तरायणम।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनारू।।्य
अर्थात् जो ब्रह्मवेत्ता योगी उत्तरायण सूर्य के छह मास, दिन के प्रकाश, शुक्ल पक्ष आदि में प्राण त्यागते हैं, वे ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।

मकर संक्रांति का प्रारंभ

प्रचलित लोक कथा के अनुसार मकर संक्रांति पर्व का प्रारंभ गुरु गोरखनाथ द्वारा हुआ। गोरखनाथ मंदिर में इस दिन खिचड़ी मेला लगता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने शंखासुर का वध करके त्रिवेणी में स्नान किया था तभी से स्नान का महत्त्व बढ़ने लगा। ऐसी भी मान्यता है कि आज ही के दिन श्रीकृष्ण ने मामा कंस द्वारा भेजी गई लोहिता नाम की राक्षसी का वध किया था। इस घटना के फलस्वरूप मकर संक्रांति के दिन पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर आदि उत्तर भारतीय राज्यों में लोहड़ी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।

पूरा दिन होता है पुण्य काल

मकर संक्रांति का पूरा दिन पुण्य क ाल के रूप में मनाया जाता है। तीर्थराज प्रयाग और गंगा सागर का मकर संक्रांति पर्व विशेष रूप से प्रसिद्ध है। शिव रहस्य ग्रंथ में वर्णित है कि इस दिन तिल का दान महाफलदायी है। कहा जाता है कि आज के दिन सूर्याेदय से पूर्व स्नान करने से दस हजार गोदान का फल प्राप्त होता है। इस दिन खिचड़ी दान, वस्त्र दान, गुड़-तिल, गोदान आदि से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

ब्राह्मण सुव्रत की कथा

Makar Sankranti Festival
Makar Sankranti Festival 2023

पद्मपुराण की एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर सुव्रत नाम का ब्राह्मण रहता था। वह वेद-पुराण का ज्ञाता तो था ही, ज्योतिष, तंत्र विद्या, योग शास्त्र और तर्क शास्त्र में भी पारंगत था। इतना सब कुछ होने के बावजूद उसने इन विधाओं का प्रयोग धर्म प्रचार की जगह धन कमाने के लिए किया। वह धन प्राप्ति में इतना पागल हो गया कि चांडाल से भी स्वर्ण मुद्राएं ले लीं। बुढ़ापे के दिनों में वह सोचने लगा कि मरने के बाद इस धन का क्या होगा? क्योंकि परलोक के लिए तो उसने कुछ भी नहीं किया, फिर उद्धार कैसे होगा? इसी दौरान चोर चोरी करके उसका सारा धन ले गए। मगर वह इस चोरी से परेशान नहीं हुआ, क्योंकि धन की नश्वरता का तो उसे ज्ञान था ही। वह अपने उद्धार की सोचने लगा तो उसे शास्त्रों में लिखा स्मरण हो आया कि माघ माह में जो शीतल जल में डुबकी लगाता है, वह न सिर्फ पाप मुक्त हो जाता है, अपितु स्वर्ग लोक को भी प्राप्त होता है।
सुव्रत तुरंत नर्मदा में स्नान के लिए निकल पड़ा। कहते हैं कि वह नौ दिनों तक श्रद्धापूर्वक नर्मदा के जल में स्नान करता रहा। दसवें दिन उसके प्राण निकल गए। उसके बाद सुव्रत के लिए एक दिव्य विमान आया, जो उसे स्वर्ग लोक ले गया। माघ स्नान ने उसे मोक्ष दिला दिया और स्वर्ग लोक भी। माघ स्नान की हर तिथि हर दिन एक पर्व के समान है। इसलिए पूरे मास में स्नान करना चाहिए। अगर किसी कारणवश पूरे मास न नहा सकें तो पूरे माह में तीन दिन या एक दिन का किया स्नान भी पुण्यदायी है। प्रातरूकाल में सूर्याेपासना इस मंत्र के साथ करनी चाहिए-
श्नमो विवस्वते ब्रह्मणा भास्वते विष्णुतेज से।
जगत्सवित्रे शुचये सवित्रे कर्मदायिने।।्य

भीष्म पितामह ने की थी उत्तरायण की प्रतीक्षा

महाभारत की एक कथा के अनुसार इच्छा मृत्यु प्राप्त भीष्म पितामह ने 56 दिनों तक शर शैया पर इसलिए पड़े रहना उचित समझा, क्योंकि तब दक्षिणायन था और सूर्य के दक्षिणायन में वह प्राण त्यागना नहीं चाहते थे। सूर्य के उत्तरायण होने पर माघ माह की शुक्ल अष्टमी को उन्होंने प्राण त्यागे थे।

क्या कहते हैं धर्मग्रंथ?

हमारे प्राचीन ग्रंथों में मकर संक्रांति के संदर्भ में अनेक उल्लेख मिलते हैं। शिव रहस्य ग्रंथ में तिल के दान का महात्मय बताया गया है तो ब्रह्मांड पुराण के अनुसार यशोदा ने ताम्बूल दान करके कृष्ण के समान तेजस्वी पुत्र प्राप्त किया। इसलिए अनेक क्षेत्रों में स्त्रियां आज भी पुत्र प्राप्ति की इच्छापूर्ति के लिए विशेष रूप से दान करती हैं। इस बात का उल्लेख पद्मपुराण में भी मिलता है। भविष्योत्तर पुराण में कृष्ण-अर्जुन के संवाद में सूर्य देवता को त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के गुणों से विभूषित किया गया है, जिसका अर्थ है सूर्य उदय काल में ब्रह्मा, मध्याह्न काल में महेश्वर और सायं काल में विष्णु रूप है। तंत्र शास्त्र के अनुसार सूर्य उपासना से सात पीढ़ी से चली आ रही दरिद्रता का अंत होता है। मनुस्मृति में कहा गया है कि सूर्य से वर्षा, वर्षा से अन्न और अन्न से प्रजा का जन्म होता है। वेदों में सूर्य देव की आराधना इस प्रकार की गई है- श्हे सूर्य देव आप अन्नदाता और अन्नपूर्णा हैं। आपकी किरणें वनस्पतियों द्वारा भोजन बनाने में सहायक हैं। आपके प्रकाश के अभाव में पत्ते पीले पड़ जाते हैं। गायत्री मंत्र में सूर्य को सविता के रूप में संबोधित किया गया है।
इस प्रकार मकर संक्रांति पर्व भगवान भुवन-भास्कर की उपासना तथा स्नान दान का पर्व है, जिससे सुख-समृद्धि, सहयोग की भावना, धन-धान्य तथा स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।