Janmashtami Dahi Handi: भगवान श्रीकृष्ण की नटखट लीलाओं से हम सभी भली भांति परिचित हैं। धरती पर बढ़ रहे अधर्म को रोकने और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने भाद्रपद महीने में श्रीकृष्ण के रूप में धरती पर जन्म लिया। धर्म ग्रंथों में वर्णित कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बाल्यावस्था में अद्भुत लीलाएं रची और कई असुरों का वध किया और अपने भक्तों का उद्धार भी किया। श्रीकृष्ण के जन्म के पर्व के रूप में जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस साल श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार 2 दिन मनाया जायेगा। गृहस्थी वाले लोग बुधवार, 6 सितंबर 2023 और वैष्णव धर्म को मानने वाले लोग जैसे साधु, संत और महात्मा आदि गुरुवार, 7 सितंबर को जन्माष्टमी की पूजा और व्रत कर सकेंगे। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर कई स्थानों पर दही हांडी फोड़ने का आयोजन किया जाता है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु दही हांडी का उत्सव देखने के लिए इकट्ठे होते हैं। आज इस लेख से हम जानेंगे कि जन्माष्टमी का त्योहार क्यों मनाया जाता है और जन्माष्टमी के दिन दही हांडी क्यों फोड़ी जाती है।
श्रीकृष्ण के जन्म का पर्व है जन्माष्टमी

पंडित इंद्रमणि घनस्याल के अनुसार, श्रीमद्भागवत पुराण में यह बताया गया है कि मथुरा के राजा कंस को यह आकाशवाणी सुनाई दी थी कि उनकी बहन देवकी के गर्भ से जन्में आठवें पुत्र के द्वारा कंस का वध होगा। इसी कारण कंस ने माता देवकी और उनके पति वासुदेव जी को अपने कारागार में बंद कर दिया। देवकी की सात संतानों को कंस ने मार दिया था। देवकी के आठवें पुत्र भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में रोहिणी नक्षत्र और वृषभ राशि में हुआ था। श्रीकृष्ण को कंस से बचाने के लिए वासुदेव जी ने आधी रात को ही श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद बाबा के पास छोड़ दिया। श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में नंद बाबा और उनकी पत्नी माता यशोदा ने सभी गोकुलवासियों के साथ मिलकर श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाया। इसीलिए श्रीकृष्ण के जन्म के दिन को जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है।
जन्माष्टमी के दिन दही हांडी उत्सव और उसका महत्व

श्रीकृष्ण कथाओं से यह पता चलता है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने बचपन में बहुत ही चंचल और नटखट थे। श्रीकृष्ण को दूध, दही और माखन बहुत अधिक पसंद थे इसीलिए अपने बचपन में श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ गोकुल की गलियों में सभी गोपियों के घरों से दही, माखन और मिश्री चुराकर खाते थे। इसीलिए गोकुल की सभी गोपियां दही और माखन को एक मटकी में भर के मटकी को ऊपर लटका देती थी। भगवान श्री कृष्ण अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक पिरामिड जैसी आकृति बनाते और ऊपर लटकी हुई उस मटकी को फोड़ कर उसमें से दही माखन निकाल कर खा जाते थे। श्रीकृष्ण की इसी बाल लीला के प्रतीक के रूप में आज भी दही हांडी या मटकी फोड़ने का उत्सव मनाया जाता है।
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