gardening and mental health

गार्डनिंग के हैं ढेर सारे फायदे

गार्डनिंग की सबसे ख़ास बात यह कि इससे मन को बहुत ही सुकून मिलता है। हरे भरे पौधों को देखकर मन तरोताज़ा रहता है और बहुत ज़्यादा ख़ुशी मिलती है।

Gardening Tips: शहरों की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में एक बात जो सबसे सकून देने वाली है वह यह कि आज भी लोगों को पेड़ पौधों के बीच रहना पसंद है। यही वजह है कि लोग दो-चार दिन की छुट्टी मिलते ही पहाड़ की तरफ़ निकल जाते हैं। वहाँ नदी, पहाड़, जंगल और झरनों के बीच पहुँचकर प्रकृति के प्रति प्रेम को वह महसूस करते हैं। प्रकृति के साथ इंसान का यही लगाव उसे बाग़वानी आदि के लिए भी प्रेरित करता है। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे भीड़ भरे महानगरों में भी, जहां घर बहुत छोटे हैं लोग बालकनी और टैरेस गार्डनिंग करके अपना शौक पूरा कर रहे हैं। गार्डनिंग की सबसे ख़ास बात यह कि इससे मन को बहुत ही सकून मिलता है। हरे-भरे पौधों को देखकर मन तरोताज़ा रहता है और बहुत ज़्यादा ख़ुशी मिलती है। कुछ समय के लिए ही सही ऐसे में हम अपनी सारी समस्याओं को कुछ समय के लिए भूल जाते हैं। 

पीएओएस वन जर्नल में छपी स्टडी

कुछ महीने पहले ही प्रकाशित एक रिसर्च पेपर से यह बात खुलकर सामने आयी है कि पेड़-पौधों के बीच रहने वाले लोगों की मानसिक सेहत को इससे फायदा हो सकता है और ख़ास बात यह कि यह स्टडी यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के वैज्ञानिकों ने किया है। पीएओएस वन नामक जर्नल में छपे इस स्टडी के परिणाम के मुताबिक गार्डनिंग करने से तनाव कम होता है, एंग्जायटी और डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याएं कम होती हैं। यह बात सामने आने के बाद इस पर काफ़ी चर्चा हो रही है। लोग पेड़-पौधे लगाने से अपने पारम्परिक मूल्यों को समझने का प्रयास कर रहे हैं। पहले के ज़माने में शायद इसीलिए लोग इतना पेड़-पौधे लगाते थे, शायद उनको पहले से पता था कि पेड़-पौधों के बीच रहने वाला इंसान मेंटली हेल्दी रहता है। 

कैसे होती है मेंटल हेल्थ बूस्ट

इस क्षेत्र के जानकारों का मत है कि गार्डनिंग काम नहीं एक तरह का शौक़ है। गार्डनिंग जैसी ऐक्टिविटी को पसंद करने वाला हर इंसान का कहीं ना कहीं इससे शौक़ जुड़ा होता है। ऐसे में गार्डनिंग एक ऐसी कला का माध्यम बन जाता है, जिसमें बहुत कुछ सीखने, योजनाएं बनाने के साथ साथ क्रीएटिव वर्क भी होता है। यह सारी गतिविधियां एक सामान्य इंसान के लिए मानसिक और फिजिकल रूप से एक्सरसाइज़ का काम करती हैं। वह यह सब करके ख़ुदको रिलैक्सिंग मोड में पाता है, जिससे उसकी मेंटल हेल्थ बूस्ट होती है। 

आइए गार्डनिंग करने से कुछ फायदे के बारे में जानते हैं। 

डिप्रेशन के लक्षण होते हैं कम

प्रिवेंटिन मेडिसिन रिपोर्ट द्वारा शोध किया गया जिसमें यह बात बहुत ही स्पष्ट रूप से यह बात खुलकर सामने आयी है कि गार्डनिंग करने से इंसान के डिप्रेशन और एंग्जायटी के लक्षण कम होते हैं। यही वजह है कि दुनियाभर में पेड़ पौधे लगाने संबंधित गतिविधियों में काफ़ी तेज़ी आयी है। बाग़वानी शौक़ के साथ साथ अब इंसान की ज़रूरत बनती जा रही है। कम स्पेस के बावजूद लोग बाग़वानी कर रहे हैं।

कई जगहों पर आप पाएंगे कि अस्पतालों में फूल और पौधों को लगाने और उनकी देखभाल में मरीजों को भी हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। दरअसल, बागवानी करते समय मिट्टी के सम्पर्क में आना होता है, जो एक तरह से एंटी-डिप्रेशन की दवा की तरह असर करती है। इससे दिन प्रतिदिन के तनाव और डिप्रेशन को कम करने में मदद मिलती है। 

स्ट्रेस से मिलती है राहत

दिन प्रतिदिन की भागदौड़ भरी जिंदगी में समय का अभाव आम बात हो गई है। ना तो लोगों को योग और ध्यान के लिए समय मिलता है और ना ही एक्सरसाइज का। ऐसे में इंसान चाहता है कि सुबह शाम कुछ समय पेड़ पौधों के साथ के साथ ही बिता ले, वह दुनिया की सारी बातों को भूलकर उनकी देखभाल में लग जाता है। खाद, पानी देता है, वह ग्रो कर रहे हैं कि नहीं इस बात पर ध्यान देता है। सुबह शाम की यह एक्टिविटी उसके लिए बाग़वानी का काम करती है।

अगर थैरेपीज़ आदि के लिए समय नहीं मिल पा रहा हो, तो रोजाना 10-20 मिनट गार्डनिंग करने में समय बिताएँ, गार्डनिंग नहीं कर पा रहे हैं तो किसी पार्क या फिर ऐसी जगह पर समय बिताएँ जो पेड़ पौधों से घिरी हुई हो। दिल और दिमाग़ दोनों के स्वास्थ्य पर गहरा फ़र्क़ पड़ता है, इससे तनाव जैसी समस्याओं से राहत मिलती है।

ब्रेन फंक्शन होता है बेहतर

बागवानी बहुत ही आरामदायक मगर दिल दिमाग़ का काम है। यह एक ऐसा काम है जिसे हम जितना मन से करते हैं, उतना ही दिमाग़ भी इसकी देखभाल पर लगाते हैं। इस बात की निगरानी रखनी होती है कि पौधों का ग्रोथ अच्छे से हो रहा है कि नहीं, यह भी देखना होता है कि किसी पौधे को कोई बीमारी धो नहीं। समय से पौधे में फल या फूल लग रहे हैं कि नहीं, यह सब करने से दिमाग के कार्य करने की क्षमता बढ़ती है। इंसान का फोकस और एकाग्रता का स्तर बढ़ता है। इससे हम किसी भी चीज़ को बेहतर तरीक़े से समझ अथवा जान पाते हैं। इन सबसे पढ़ने-लिखने वालों, ऐसे लोग जो दिमागी मेहनत करते हैं, खाकर बच्चों को पौधरोपड और बाग़वानी करने का बहुत अधिक लाभ होता है।

बढ़ता है आत्मविश्वास

एक तरह से देखा जाए तो बाग़वानी एक तरह का शौक़ है लेकिन इसमें इतना कुछ शामिल होता है की हमारा मन बहुत ही संतुलित रहता है, दिमाग़ अच्छे से वर्क करता है, जिसका असर कहीं ना कहीं हमारे दिन प्रतिदिन के कार्यकलाप और आत्मविश्वास पर भी पड़ता है। यही वजह है कि बाग-बगीचों में काम करने, पौधों को पानी देने और उनकी देखरेख जैसे काम करने से लोगों को खुशी मिलती है, उनका सेल्फ कॉन्फिडेंस बढ़ता है। इस संदर्भ में हम सबने कहीं ना कहीं यह ज़रूर महसूस किया होगा कि अपने लगाए पौधों को महज़ देखकर ही इतनी ख़ुशी मिल जाती है जैसे कोई अपना हमें देखकर मुस्कुरा रहा हो और यह ख़ुशी तब तो और भी ज़्यादा बढ़ जाती है, जब इस पर फल या फूल लगते हैं। 

संजय शेफर्ड एक लेखक और घुमक्कड़ हैं, जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में हुआ। पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और मुंबई में हुई। 2016 से परस्पर घूम और लिख रहे हैं। वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन एवं टोयटा, महेन्द्रा एडवेंचर और पर्यटन मंत्रालय...

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